प्राचीन भारतीय कलाओं पर कई प्रभावों को हम सीधे तौर पर देख सकते हैं, भारतीय कला अनेकों वर्षों के सतत प्रयोग से ही विकसित हुयी है। प्राचीन भारत का प्राचीनतम कला का उदाहरण हमें मिर्जापुर से प्राप्त होते हैं जो की उत्तरपुरा पाषाणकाल से सम्बंधित है। भारतीय कला पर एक बड़ा प्रभाव सिकंदर (Alexander) के आगमन के बाद से पड़ा इस प्रभाव को हेलेनिस्टिक (Hellenistic) प्रभाव के नाम से जाना जाता है।
यह वास्तविकता में भारतीय कला पर यूनानी (Greek) प्रभाव को प्रदर्शित करता है। 4थी शताब्दी ईसा पूर्व का समय भारतीय कला के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण रहा और यह वही समय था जब भारतीय कला पर यूनानी कला का प्रभाव पड़ना शुरू हुआ। सिकंदर के भारत आगमन के बाद यूनानी सेनापतियों आदि का भारत में ठिकाना बस गया तथा यहाँ पर यूनानी राजदूतों आदि के साथ वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित हुए। भारतीय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने यूनानी राजदूत की बेटी से भी शादी रचाई थी। भारत में ग्रीको-बक्ट्रियन (Greco-Bactrian), इंडो-ग्रीक (Indo-Greek), मौर्य कला, ग्रीको-बुद्धिज़्म (Greco-Buddhism) आदि कलाएं हैं जिनपर यूनानी प्रभाव हमें बड़ी आसानी से देखने को मिलता है। इन्ही कलाओं के मिश्रण का ही नतीजा है की मौर्य कला में हमें इतनी बारीकी देखने को मिलती है। कला के प्रमाणों की बात की जाए तो इसमें सिक्कों को नहीं भूला जा सकता है, प्राचीन भारत में आहत सिक्के या पञ्च मार्क सिक्कों (Punch mark Coin) का प्रचलन था जिनपर कोई अभिलेख नहीं होता था बल्कि उनपर विभिन्न प्रकार के चिन्हों का अंकन देखने को मिलता है, ये सिक्के करीब 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान प्रचलित हुए थे, इसी दौरान प्राचीन भारत के अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) और वर्तमान पाकिस्तान (Pakistan) के भागों से कई यूनानी सिक्के भी इसी समय काल के प्राप्त हुए हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कई विद्वान प्राचीन आहत सिक्के पर यूनानी प्रभाव की बात करते। सिकंदर के आक्रमण के उपरान्त चन्द्रगुप्त मौर्य के पास एक अत्यंत ही सुनहरा मौक़ा आया और उन्होंने नन्द वंश पर विजय प्राप्त की तथा एक अत्यंत ही बड़े भू भाग पर अपना शासन व्यवस्था की शुरुआत की। चन्द्रगुप्त ने यवनों से, शकों से, किरातों से, पारसीको से तथा बाहिल्को से इनका सम्बन्ध स्थापित हो गया। वर्तमान पाकिस्तान के सिरकप नामक स्थान तक यूनान की सीमाएं लगी हुयी थी और यहीं से भारत में यूनानी कलात्मक प्रभावों का आगमन आना शुरू हो जाता है यह कला वैसे तो सम्राट चन्द्रगुप्त के शासनकाल से ही आनी शुरू हो जाती है परन्तु अशोक का समय आने पर यह कला यहाँ पर अत्यंत ही रम जाती है तथा इसके विभिन्न बिन्दुओं को हम भारतीय कला में देखना शुरू कर देते हैं, इनमे से अशोक के स्तंभों पर तथा पाटलीपुत्र शहर के भवनों पर पुष्प के तंतुओं का प्रयोग प्रमुख है।
पाटलिपुत्र से प्राप्त विभिन्न अवशेष इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि यह अवशेष भारतीय कला पर हेलेनिस्टिक प्रभाव को दर्शाते हैं। भारतीय कला पर हेलेनिस्टिक प्रभाव 4-5वीं शताब्दी ईस्वी तक जारी रहा। हांलाकि इस कथन पर विभिन्न विद्वानों का विभिन्न मत है कुछ विद्वानों की माने तो वे इस कला पर हेलेनिस्टिक कला के प्रभाव की बात को स्वीकारते हैं तो वहीँ कुछ विद्वान् इसे पूर्ण रूप से भारतीय संयोजन ही मानते हैं। अधिकाँश विद्वानों का यही मत है की मौर्य कला ग्रीक और फारसी कला (Persian Art) से प्रभावित थी जिसमे विशेष रूप से मूर्तिकला और वास्तुकला हैं। बौद्ध कला में ग्रीको बौद्ध कला अत्यंत ही महत्वपूर्ण है, इस प्रकार की मूर्तियों में शारीरिक बनावट और वस्त्रों आदि के पहनावें इस बात की सिद्ध करते हैं।
कुषाण कला के माध्यम से इस बात को सत्यता प्रदान की जा सकती है की भारतीय कला पर हेलेनिस्टिक कला का गहरा प्रभाव था। मौर्य कला के अलावां यह मथुरा कला भी थी जिसपर इस कला का प्रभाव बड़े पैमाने पर पडा। गुप्त साम्राज्य के दौरान भी इस कला को देखा जा सकता है।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में ग्रीको-बुद्धिस्ट बुद्धिस्ट (Greco-Buddhist) कला से प्रभावित टेराकोटा से बनाया गया शाक्यमुनि बुद्ध के सिर का चित्रण है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में पुष्कलावती से प्राप्त एथेंस (Athens) मुद्रा का चित्रण है। (Wikipedia)
3. तीसरा चित्र हेलेनिस्टिक कला से प्रभावित पाटिलपुत्र के स्तम्भों को प्रदर्शित करता है। (Wikipedia)
4. चौथे चित्र में स्फिंक्स ऑफ़ नेक्सस (Sphinx of Naxos) और अशोक स्तम्भ का चित्र है। (Youtube)
सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Hellenistic_influence_on_Indian_art
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Mauryan_art
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Greco-Buddhist_art#Southern_influences
4. http://www.hellenicaworld.com/Greece/Art/Ancient/en/GrecoBuddhistArt.html
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Palmette
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