हम में से अधिकांश ने लोगों को यह कहते हुए अक्सर सुना होगा कि, इस वर्ष काफी भीषण गर्मी हुई है। ऐसे ही भारतीय शहरों में भी असामान्य रूप से उच्च तापमान की वजह से होने वाली गर्मी से संबंधित मौतों में वृद्धि भी देखी गई है। हालांकि, भारत में ग्रीष्म लहरें काफी आम हैं लेकिन हाल के वर्षों में ये लहरें अधिक बारंबार, तीव्र और लंबी हो गई हैं, जो आंशिक रूप से शहरी ऊष्मा द्वीपों के प्रभाव के कारण हो रही हैं। जहां भारत में बहुत तेज़ी से शहरीकरण हो रहा है, इस तेजी से शहरीकरण के परिणामस्वरूप भूमि के उपयोग में भी काफी परिवर्तन देखा जा सकता है। पिछले चार दशकों में, दिल्ली में निर्मित क्षेत्र में 30.6% की वृद्धि देखी गई, जबकि खेती वाले क्षेत्रों में 22.8% और घने जंगल में 5.3% की कमी आई है। इस बढ़ते शहरीकरण का प्रभाव न सिर्फ बढ़ते प्रदूषण की ओर इशारा करता है बल्कि ये ‘शहरी ऊष्मा द्वीप’ के क्षेत्रों में भी वृद्धि की ओर संकेत करता है। शहरी ऊष्मा द्वीप के प्रभाव को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में से मेरठ में भी देखा जा सकता है। 1818 में पहली बार वर्णित शहरी ऊष्मा द्वीप, आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में उच्च वायुमंडलीय और सतह के तापमान की घटना को संदर्भित करता है। शहरी ऊष्मा द्वीप गर्मियों और सर्दियों के दौरान सबसे अधिक रूप से दिखाई देते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं: सतह शहरी ऊष्मा द्वीप और वायुमंडलीय शहरी ऊष्मा द्वीप। सतही शहरी ऊष्मा द्वीप की माप भूमि की सतह के तापमान के आधार पर की जाती है, जबकि वायुमंडलीय शहरी ऊष्मा द्वीप की माप हवा के तापमान के आधार पर की जाती है। शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव का मुख्य कारण भूमि की सतहों का संशोधन है, दरसल अधिक खुली जगह, पेड़-पौधों और अधिक घास से परिपूर्ण गांवों की तुलना में शहरों में पत्थर के फर्श, सड़क और छत बनाने में उपयोग होने वाली बजरी, डामर और ईंट जैसी सामग्रियाँ अपारदर्शी होती हैं और प्रकाश को संचारित करने में असमर्थ होती हैं।
इसकी उत्पत्ति में अन्य योगदान कारक पानी, प्रदूषण और ऊर्जा के गंदे स्रोतों पर निर्भर आर्थिक गतिविधि है। ब्लैक कार्बन एयरोसोल (Black Carbon Aerosol) या वाहनों के उत्सर्जन से कालिख और कुछ घरों में खाना पकाने के लिए कोयले और लकड़ी को जलाने से बड़ी मात्रा में सौर विकिरण होता है। केवल ये ही नहीं, जनसंख्या भी तापमान की वृद्धि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे ही कहीं जनसंख्य में वृद्धि होती है वैसे ही उस क्षेत्र का औसत तापमान भी बढ़ता रहता है। इसके साथ ही शहरों में मौजूद उद्योगों और वाहनों से होने वाला प्रदूषण वहां की हवा की गुणवत्ता को भी कम कर देता है और उपनगरों की तुलना में यहां पदार्थों के महीन कण और धूल भी अधिक होते हैं।चित्र सन्दर्भ:
शहरी गर्मी द्वीप चित्रण(youtube)
भारत में शहरी सिटीस्केप(youtube)
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