भारतीय संस्कृति और सभ्यता की बात की जाती है, तो इसके सबसे प्राचीनतम अवशेष सिन्धु घाटी की सभ्यता, जिसको करीब 3500 ईसा पूर्व का माना जाता है कि बात जरूर होती है। यह सभ्यता दुनिया की सबसे बड़ी सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। यह सभ्यता अफगानिस्तान (Afghanistan) से लेकर भारत के गुजरात राज्य तक फैली हुई थी, जिसके अवशेष आज भी हमें दिखाई देते हैं। इस सभ्यता की खोज सबसे पहले सर अलक्जेंडर कनिंघम (Sir Alexander Cunningham) ने की थी, जब उन्हें सन 1870 के करीब इस सभ्यता से सम्बंधित एक मिट्टी का बना हुआ सील (Seal) प्राप्त हुआ था। उस समय तक इस सभ्यता के विषय में किसी को किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त नहीं थी।
इस सभ्यता का सबसे पहला उत्खनन सन 1920 में हड़प्पा (Harappa) नामक स्थल पर शुरू हुआ, इस उत्खनन में बड़े ईंट के बने शहरों की जानकारी प्रकाश में आई तथा उसी समय में यह अज्ञात सभ्यता पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध हो गयी। इस सभ्यता के विषय में हमें जो भी जानकारियाँ प्राप्त हैं, वो यहाँ के उत्खननों से प्राप्त सामग्रियों के आधार पर ही सम्बंधित है। सिन्धु सभ्यता के पतन के करीब 500 वर्ष के बाद भारत का सबसे प्राचीन दस्तावेज लिखा जाना शुरू हुआ, जिसे 'ऋग्वेद संहिता' के नाम से जाना जाता है। अब यह प्रश्न जरूर उठता है कि क्या ऋग्वेद के पहले भारत में किसी भी प्रकार के लेखन कला का विकास नहीं हुआ था? भारत में प्राचीन काल से ही लिपि का विकास हो चुका था परन्तु यह अन्य बात है कि आज तक उस लिपि को पढ़ा जाना संभव नहीं हो पाया है। इस लिपि को सिन्धु सभ्यता लिपि या हड़प्पा लिपि के नाम से जानते हैं। मेरठ शहर के समीप ही बसे आलमगीरपुर से सिन्धु सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं, यदि लिपियों की बात की जाए तो इस स्थल से प्राचीन ब्राह्मी लिपि में लिखे कई अभिलेख भी मिले हैं। मेरठ से ही प्राप्त एक अशोक स्तम्भ जिसपर ब्राह्मी लिपि में अभिलेख अंकित हैं, वर्तमान समय में दिल्ली में स्थित है। सिन्धु सभ्यता की लिपि पर करीब एक शताब्दी से कार्य किया जा रहा है परन्तु इसको अभी तक पढ़ा जाना संभव नहीं हो पाया है। यह संभव है कि यदि सिन्धु सभ्यता की लिपियाँ पढ़ ली गयीं, तो सिन्धु सभ्यता से जुड़े अनेकों तथ्य सामने आयेंगे। सिन्धु सभ्यता की लिपियों को यदि देखे तो इसके सबसे प्राचीनतम अभिलिखित प्रमाण 3500-2700 ईसा पूर्व से सम्बंधित हैं तथा इसके सबसे पहले प्रमाण रावी और कोट दिजी के बर्तनों पर मिलते हैं। यहाँ से प्राप्त बर्तनों पर मात्र एक प्रकार का चिन्ह अंकित मिलता है। इस प्राप्ति से यह पता चलता है कि यह सिन्धु सभ्यता के लेखन के एकदम शुरूआती चरण का है। हड़प्पा काल के पूर्ण शहरी होने के उपरान्त (2600-1900 ईसा पूर्व) के समय पर यह और भी विकसित हुई तथा इसके अनेकों लेख हमें प्राप्त हुए हैं। प्राप्त लेखों में 5 से लेकर 26 संकेत मिलते हैं। सिन्धु सभ्यता में लेखन कार्य मुहरों द्वारा छापा तकनीक से किया जाता था तथा ये मिटटी के बर्तन, कांस्य के औजार, शंख की चूड़ियों आदि पर प्राप्त होता है। एक बड़ी संख्या में सिन्धु सभ्यता के लेखन, सील आदि पर प्राप्त होते हैं। सिन्धु सभ्यता में इन संकेतों का प्रयोग व्यापार में भी किया जाता था, जिसका प्रमाण मेसोपोटामिया से प्राप्त सिन्धु सभ्यता के मिट्टी के स्टैम्प (Stamp) देते हैं। सिन्धु लिपि के अभी तक करीब 400 मूल संकेतो की प्राप्ति हो चुकी है, जिसमे से केवल 31 ऐसे संकेत हैं जिनका प्रयोग 100 से अधिक बार हुआ है और ज्यादातर संकेतों का प्रयोग कम ही हुआ है। पुरातत्वविदों का मानना है कि सिन्धु सभ्यता में लेखन का कार्य ताड़ के पत्तों आदि पर किया जाता था, जिसके कारण आज तक वे प्राप्त नहीं हुए। कई पुरातत्वविदों का मानना है कि इन 400 संकेतों को 39 तक के प्राथमिक संकेतों तक माना जा सकता है।.सिन्धु सभ्यता की लिपि को इसलिए भी नहीं पढ़ा जा सका है क्यूंकि इस सभ्यता के पतन के बाद यह पूर्ण रूप से लुप्त हो गई थी। इसके अलावा यहां पर कोई द्विभाषी अभिलेख नहीं प्राप्त हुआ है। इस लिपि को नहीं पढ़ा जा पाने का एक अन्य कारण इसमें अत्यंत ही कम संकेत का होना भी है। तमाम कारकों के चलते यह लिपि आज तक नहीं पढ़ी जा सकी है परन्तु इस लिपि को पढ़ने की कोशिश निरंतर जारी है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.