विभिन्न स्थानों में समय-समय पर अनेक उत्खनन कार्यों का संचालन होता है। मेरठ के निकट स्थित सिनौली महत्वपूर्ण उत्खनन स्थलों में से एक है, जहां किये गये उत्खनन कार्यों से विभिन्न सभ्यताओं की विशेषताओं की जानकारी प्राप्त हुई है। कुछ वर्ष पहले किये गये उत्खनन कार्य में यहां से कई वस्तुओं के साक्ष्य प्राप्त हुए, जिनमें मिट्टी के बर्तन, मानव कंकाल, दफन स्थल और कई कलाकृतियों जैसे ताबूत, तलवार, खंजर, कंघी, गहने, रथ आदि का पता लगाया गया। रथ की खोज प्राचीन सभ्यताओं जैसे मेसोपोटामिया, ग्रीस आदि का संकेत देती है, जहां इनका प्रयोग व्यापक रूप से होता था। ताबूतों पर मानवजनित आकृतियां - सींग और पीपल के पत्ते वाले मुकुट पाये गये, जिन्होंने शाही समाधि की संभावना का संकेत दिया। उत्खनन से प्राप्त तलवार, खंजर, ढाल आदि ने जहां एक योद्धा आबादी के अस्तित्व की पुष्टि की वहीं मिट्टी और तांबे के बर्तनों, अर्ध-कीमती मनकाओं आदि ने एक परिष्कृत शिल्प कौशल और जीवन शैली की ओर इशारा किया। इन सभी महत्वपूर्ण साक्ष्यों के चलते सिनौली अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित स्थल बन गया। उत्खनन में मिट्टी के बर्तन भी प्राप्त हुए। मिट्टी के बर्तनों का भारतीय इतिहास के साथ गहरा संबंध है, जिसमें टेराकोटा (Terracotta) और सेरामिक (Ceramic) की ललित कला अभी भी जीवित और अच्छी स्थिति में है।
भारत में प्राचीन कला और संस्कृति को समझने का एक समृद्ध इतिहास है, जिसे देश के कई कारीगरों ने आज तक संरक्षित किया है। मेरठ बड़ी मात्रा में मिट्टी के बर्तनों का उत्पादन करता है, जो विभिन्न कलाओं और उनकी विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है। विभिन्न उत्खनन के माध्यम से यहाँ हस्तिनापुर के कई टेराकोटा (बर्तन, आभूषण आदि) कला और शिल्प भी खोजे गए हैं। टेराकोटा सिर्फ आजीविका या कौशल का साधन नहीं है, यह एक कला है, जो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पीढ़ियों से चली आ रही है। भारत में टेराकोटा का उपयोग सदियों से किया जाता रहा है।
परंपरागत रूप से, इसे चार महत्वपूर्ण तत्वों - वायु, पृथ्वी, अग्नि और जल के संयोजन के कारण एक रहस्यमय सामग्री के रूप में देखा जाता है। यह सिंधु घाटी सभ्यता जोकि 3300 से 1700 ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में थी, के बाद से भारतीय निर्माण और संस्कृति का मुख्य आधार रहा है। कई प्राचीन टेराकोटा कलाकृतियों को भारत में पाया गया, जिनमें अक्सर देवताओं का चित्रण दिखाई दिया। अब तक की सबसे प्रसिद्ध एवं सबसे बड़ी टेराकोटा की मूर्ति तमिलनाडु में बनाया गया अयनायर घोड़ा (Ayanaar horse) है। टेराकोटा का उपयोग आज भी घरों और अन्य स्थानों के लिए मिट्टी के बर्तनों और कला के लिए किया जाता है। राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्र अपने सफेद रंग के टेराकोटा मर्तबान या जार (Jar) के लिए प्रसिद्ध हैं, जबकि मध्य प्रदेश को अलंकृत टेराकोटा छत के लिए जाना जाता है। पारंपरिक टेराकोटा पॉट (Pot) सबसे प्रतिष्ठित टेराकोटा वस्तुओं में से एक है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर घर में पौधों या छोटे पेड़ों के लिए किया जाता है। वे विविध आकार में उपलब्ध हैं, जिन्हें या तो सादा रखा जा सकता है या फिर अलंकृत किया जा सकता है। मिट्टी के बर्तनों का भारतीय इतिहास के साथ गहरा संबंध है तथा टेराकोटा और सिरेमिक की ललित कला अभी भी जीवित और सुदृढ़ है। यह प्राचीन शिल्प भारत में विभिन्न कला रूपों की समझ को दर्शाता है और यह कला न केवल युगों तक जीवित रही है, बल्कि समय के साथ व्यापक भी हो गयी है। नवीन आकृतियों और रंगों के साथ प्रयोग कुछ ऐसी विशेषताएं हैं, जो इन कलाओं को प्रमुख बनाते हैं। भारत में पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, हरियाणा, दिल्ली, ओडिशा और असम में टेराकोटा कला आज भी पनप रही है। टेराकोटा की तरह ही सिरेमिक कला स्वदेशी शिल्प से सजावटी वस्तु के रूप में एक उत्कृष्ट कला है। वर्तमान समय में सिरेमिक मिट्टी के पात्र कला बाजार में धूम मचा रहे हैं। चीनी मिट्टी से बने फूलदान हमेशा से कीमती रहे हैं, एक कला के रूप में चीनी मिट्टी की चीज़ें बहुत परिष्कृत है, हालांकि भारत में यह बहुत नवजात है। वर्तमान समय सिरेमिक निर्माण कार्य से जुडे लोगों के लिए एक अच्छा समय है क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, अल्प अवधि में तेजी से वृद्धि कर रही है। कलाकार अब इस माध्यम का विभिन्न तरीकों से उपयोग करते हैं। सिरेमिक में नए और रोमांचक काम ने लोगों को प्रेरित किया है।भारत में टेराकोटा और सिरेमिक पात्रों को ढूंढना अपेक्षाकृत आसान है। यह कुछ स्थानीय शिल्प भंडारों एवं बड़े व्यवसाय संघ जहां फर्श और टाइल्स (Tiles) का सौदा होता है, में आसानी से मिल सकते हैं। इसका एक अन्य विकल्प बगीचा केंद्र (Garden center) भी है। इसके अलावा एक बुनियादी किट (Kit) के साथ घर पर भी मिट्टी के बर्तन बनाने का प्रयास किया जा सकता है। यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगी कि लगभग हर भारतीय घर में किसी न किसी तरह के मिट्टी से प्राप्त उत्पाद का उपयोग किया जाता है, जैसे पानी के भंडारण के लिए बर्तन और घड़े, पौधों और फूलों को उगाने के लिए मिट्टी के बर्तन, घरों को रोशन करने के लिए सभी आकार और सुंदर डिजाइन (Design) के लैंप (Lamp) या दीये, मर्तबान, विभिन्न प्रकार के बर्तन आदि। त्यौहारी मौसम के दौरान इन वस्तुओं की अधिक मांग होती है। उदाहरण के लिए, दीवाली के त्यौहार के दौरान, हिंदू घरों को बड़ी संख्या में दीपों से सजाया जाता है और विभिन्न प्रकार के बर्तन खरीदे जाते हैं। इन पारंपरिक वस्तुओं के प्रति दीवानगी अब न केवल शहरी भारत में बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों में भी बढ़ रही है, इसलिए कलाकारों द्वारा इन कलाओं का संरक्षण किया गया है। मिट्टी से बनी वस्तुओं की मांग लगातार बढ़ती जा रही है और लोग अपने बगीचों और अंदरूनी हिस्सों को मिट्टी से बनी वस्तुओं से सजाना पसंद कर रहे हैं। समय के साथ विलुप्त होते जा रहे अन्य पारंपरिक हस्तशिल्पों के विपरीत, टेराकोटा का भविष्य उज्ज्वल, लाभदायक एवं सरकार द्वारा अच्छी तरह से संरक्षित है और मांग में इतनी अधिक है कि कलाकारों को लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अधिक श्रम करने की आवश्यकता है।
चित्र सन्दर्भ:
1.सिनौली की उत्खनन खोज (youtube)
2.टेराकोटा हनुमान (wikimedia)
3.गुप्ता वंश से टेराकोटा मूर्ति (wikimedia)
संदर्भ:
https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/asi-unearths-first-ever-physical-evidence-of-chariots-in-copper-bronze-age/articleshow/64469616.cms
https://mediaindia.eu/art-culture/terracotta-clay-art-an-ancient-indian-craft-still-going-strong/
https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/human-skeleton-potteries-found-during-excavation-at-baghpats-sinauli/articleshow/67714955.cms
https://economictimes.indiatimes.com/magazines/panache/ceramic-works-are-finally-finding-a-new-audience-market-and-status/articleshow/66101770.cms?from=mdr
https://www.floma.in/guides/overall-home/the-history-of-terracotta-in-india-and-how-you-can-use-it-in-your-home
https://contentwriter.in/terracotta-art-india/
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