सुगंध या गंध एक ऐसी धारणा है, जिसे मनुष्य अपने जीवन काल में बहुत ही समय से देखते आ रहा है। मनुष्य अपने विकास के समय से ही सुगंध या गंध के प्रति सजग रहा है तथा उसके अन्दर इससे जुड़ी हुई धारणा का जन्म हुआ है। मनुष्य का सुगंध से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण रिश्ता है और यह हमें इत्र आदि के इतिहास को देखने से पता चल जाता है। प्राचीन काल में घरों आदि के सामने विभिन्न उद्यानों का निर्माण किया जाता था, जहाँ पर पुष्पों के माध्यम से सुगंध का प्रबंध किया जाता था। आज वर्तमान समय में शहरों के निर्माण में यह बिंदु सोचनीय हो जाता है कि आखिर शहरीकरण किस प्रकार से सुगंध के वातावरण को ख़त्म कर रहा है। शहरीकरण के कारण प्रदुषण में वृद्धि होती है और यही प्रदुषण हम मनुष्यों के सूंघने की क्षमता को कम करने का कार्य करता है। कारा हूवर (Kara Hoover) जो की अलास्का विश्वविद्यालय (University of Alaska) के जैव विज्ञानी हैं, उनका कथन है कि मनुष्य जितने अधिक शहरी माहौल में रहेगा उसके सूंघने की क्षमता उतनी ही कम होगी। गंध न लेने की क्षमता का बढ़ना वास्तव में हमारी उम्र और स्वास्थ के ऊपर एक गहरा बुरा असर छोड़ती है। वर्तमान समय के शहरी जीवन और ग्रामीण जीवन में इस अंतर को आसानी से देखा जा सकता है।
हूवर का कथन यह भी है कि जो लोग पारंपरिक रूप से रहते हैं या पारंपरिक माहौल में रहते हैं, वे वास्तव में गंध का पता आसानी से लगा सकते हैं तथा वे इस पर्यावरण के साथ ज्यादा जुड़ने में सफल हो पाते हैं। इस विषय पर कई शोध किये गए हैं, जिनमें से एक शोध में एक किसान को मेंथोल और गाजर का बीज दिया गया, जिसे वो सूंघ कर आसानी से बता दिया और वहीँ काफी हद तक शहर में निवास करने वाले लोग यह नहीं बता पाये। हमारा मेरठ शहर ऐतिहासिक रूप से एक औद्योगिक शहर के रूप में विकसित हुआ है तथा यह वर्तमान समय में भी अपनी विकास की गति को बढ़ाये हुए है, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि यहाँ पर बहुत ही बड़ी मात्रा में कचरे का उत्पाद हो रहा है। मेरठ शहर में कचरे का इस तरह से अम्बार लग रहा है कि यहाँ पर खाली पड़ी जमीनों पर कचरे फेंके जा रहे हैं। इन कचरों में एक बार प्रयोग में लायी जाने वाली प्लास्टिक (Plastic) की थैलियाँ और अन्य हानिकारक कचरे शामिल हैं। इसी कारण यहाँ से बहने वाली हिंडन नदी वर्तमान समय में एक नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है। मेरठ शहर में कचरा प्रबंधन अत्यंत ही लचर है और इसी कारण से यहाँ की सड़कों पर भी बड़ी मात्रा में हमें कचरा देखने को मिलता है। अभी हाल ही में एक और निर्णय ने यहाँ की आबोहवा में जहर घोलने का कार्य किया है और वह यह है कि अब गाजियाबाद का भी दो सौ टन कचरा मेरठ में ही फेंका जाएगा। यह निर्णय यहाँ के वातावरण के लिए अत्यंत ही नुकसानदेय होने वाला है। वर्तमान समय में भारत में कुल 62 मिलियन (Million) टन कचरा हर साल हो रहा है, जिसका निराकरण किया जाना अत्यंत ही आवश्यक बिंदु है। मेरठ के ही एक नागरिक आयुष मित्तल द्वारा ‘स्वच्छ मेरठ’ नामक कार्य किया जा रहा है, जिसके तहत यहाँ के कचरे का पुनर्चक्रण एवं निराकरण करने की कोशिश कि जा रही है। वास्तव में हर मेरठ वासी को यहाँ के कचरे से निपटने के लिए कचरे के पुनर्चक्रण और उसके समुचित प्रबंधन की ओर जोर देने की आवश्यकता है। कचरा मुक्त मेरठ रहने योग्य स्थान के रूप में विकसित हो सकता है और यह तभी संभव होगा जब यहाँ पर आम लोग भी कचरा प्रबंधन की और अग्रसर होंगे। एक दुर्गन्ध विहीन क्षेत्र स्वास्थ और शरीर के लिए अत्यंत ही उत्तम स्थान के रूप में माना जाता है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.