धरती पर रहने वाले हर मनुष्य के लिए यह जानना बहुत रोचक होता है कि आखिर इस पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई, कैसे इसका विकास हुआ तथा कैसे सभी जीव अस्तित्व में आये? आदि। इन्हीं सब रोचक जिज्ञासाओं के परिमाणस्वरूप कॉस्मोलॉजी (Cosmology) या ब्रह्मांड विज्ञान का विकास हुआ। कॉस्मोलॉजी खगोल विज्ञान की एक शाखा है जो, बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) से लेकर आज तक और भविष्य तक में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास का अध्ययन करती है। यह ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विकास और सम्भावित या अंतिम परिणाम का एक वैज्ञानिक अध्ययन है। किन्तु दुनिया में केवल भौतिक विज्ञानी और ब्रह्मांड विज्ञानी ही एकमात्र ऐसे नहीं हैं, जो इस रहस्यमय ब्रह्मांड में हमारे स्थान की व्याख्या करने का प्रयास कर रहे हैं। इनके अलावा धार्मिक ब्रह्माण्ड विज्ञान भी धार्मिक दृष्टिकोण से ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विकास और सम्भावित परिणाम या अंतिम भाग्य का स्पष्टीकरण करता है जिसमें कि एक निर्माण मिथक, निर्माण मिथक के बाद विकास, वर्तमान संगठनात्मक रूप और प्रकृति, तथा अंतिम भाग्य पर विश्वास या मान्यताएं शामिल हैं। धर्म या धार्मिक पौराणिक कथाओं में विभिन्न परंपराओं का उल्लेख है जो बताती है कि कैसे और क्यों सब कुछ इस तरह से है और सभी का अपना महत्व है। धार्मिक ब्रह्माण्ड विज्ञान दुनिया के संदर्भ में ब्रह्मांड की स्थानिक स्थिति या खाके का वर्णन करता है जिसमें लोग आमतौर पर निवास करते हैं और कभी-कभी ये प्राचीन विचार आधुनिक ब्रह्मांड का इतनी अच्छी तरह से वर्णन करते हैं कि उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
विभिन्न धर्मों में धार्मिक ब्रह्मांड विज्ञान के सन्दर्भ में अनेक विश्वास हैं। प्राचीन इस्रालियों का विश्वास है कि ब्रह्मांड एक सपाट डिस्क (Disk) के आकार की पृथ्वी से बना जोकि पानी पर तैर रहा था। इनके अनुसार ऊपर स्वर्ग है तथा अधोलोक नीचे है। मनुष्य जब जीवित रहता है उस दौरान पृथ्वी पर रहता है और मृत्यु के बाद अधोलोक चला जाता है। अधोलोक नैतिक रूप से तटस्थ या उदासीन है। केवल हेलेनिस्टिक समय में (Hellenistic times -330 ईसा पूर्व के बाद) यहूदियों ने ग्रीक विचार को अपनाना शुरू कर दिया जिसके अनुसार अधोलोक दुष्कर्मों के लिए सजा का स्थान है तथा धर्मियों को स्वर्ग में एक नये जीवन का आनंद प्राप्त होगा। इस्लाम धर्म में मान्यता है कि परमात्मा ने ही उस ब्रह्मांड को बनाया जिसमें पृथ्वी का भौतिक वातावरण और मानव शामिल हैं। इसका मुख्य लक्ष्य आध्यात्मिक उत्थान के लिए ध्यान और चिंतन हेतु प्रतीकों की एक पुस्तक के रूप में ब्रह्मांड की कल्पना करना है। ब्रह्मांड विज्ञान के सन्दर्भ में कुरान के कुछ उद्धरण के अनुसार ब्रह्मांड को परमात्मा ने शक्ति के साथ बनाया है, तथा वही इसका विस्तारक है। एक अन्य उद्धरण के अनुसार 'हमने हर जीवित चीज़ को पानी से बनाया है। क्या वे तब विश्वास नहीं करेंगे?'
अन्य भारतीय धर्मों की तरह बौद्ध धर्म का भी मानना है कि, ब्रह्मांड का कोई शुरूआती बिंदु नहीं है और न ही इसका अंत है। बौद्ध धर्म के अनुसार धरती का हर अस्तित्व, शाश्वत है। यह मानता है कि कोई रचनाकार भगवान नहीं है। बौद्ध धर्म ने ब्रह्मांड को अविरल और हमेशा प्रवाहमान माना है। ब्रह्माण्ड विज्ञान बौद्ध धर्म के समसरा (Samsara- मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र जिसमें भौतिक दुनिया में जीवन बंधा हुआ है) सिद्धांत की नींव है। इनका विश्वास है कि सांसारिक अस्तित्व का पहिया या चक्र पुनर्जन्म और पुनर्मृत्यु पर काम करता है, जिसमें जीव का बार-बार जन्म होता है और बार-बार मृत्यु। प्रारंभिक बौद्ध परंपराओं में, समसरा ब्रह्माण्ड विज्ञान में पांच चीजें शामिल थी जिनके माध्यम से अस्तित्व के पहिये को पुनर्नवीनीकृत किया जाता था। इसमें नर्क (निर्या), भूखे भूत (प्रेतास), जानवर (तिर्यक), इंसान (मनुष्य), और देवता (स्वर्गीय देव) शामिल थे। बाद की परंपराओं में, इस सूची में असुरों को भी जोड़ा गया। हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान के अनुसार, ब्रह्मांड को चक्रीय रूप से बनाया गया और नष्ट किया गया है। यह ब्रह्मांड विज्ञान समय को चार युगों में विभाजित करता है, जिनमें से वर्तमान काल कलियुग है। हिंदू वैदिक ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, ब्रह्मांड की कोई शुरुआत नहीं है, क्योंकि इसे अनंत और चक्रीय माना जाता है। अंतरिक्ष और ब्रह्मांड का न तो प्रारंभ है और न ही अंत है, बल्कि यह चक्रीय है। पुराणिक हिंदू ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार, कई ब्रह्मांड हैं, प्रत्येक अराजकता से जन्म लेता है, बढ़ता है, क्षय होता है और अततः फिर से जन्म लेने के लिए अराजकता में मर जाता है। ब्रह्मा का एक दिन 4.32 बिलियन वर्ष के बराबर होता है जिसे कल्प कहा जाता है। प्रत्येक कल्प को चार युग में विभाजित किया गया है। ये युग कृत (या सतयुग), त्रेता, द्वापर और कलियुग हैं। ऋग्वेद ब्रह्मांड विज्ञान भी कई सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए हिरण्यगर्भ सूक्त में कहा गया है कि एक सुनहरा बच्चा ब्रह्मांड मं पैदा हुआ था और वह ही इसका निर्माणकर्ता था, जिसने पृथ्वी और स्वर्ग की स्थापना की।
वैदिक साहित्य में एक लोक की अवधारणा विकसित हुई है। विशेष विशेष धारणाओं से प्रभावित होकर ब्रह्मांड के लिए यह शब्द घूमंतू लोगों के लिए हो सकता है, वेद में लोक का अर्थ केवल स्थान या संसार नहीं था बल्कि एक सकारात्मक मूल्य था। अपने स्वयं के कार्य के एक विशेष मूल्य के साथ यह धार्मिक या मनोवैज्ञानिक रुचि का स्थान या स्थिति था। ब्रह्माण्ड पुराण में चौदह जगत का उल्लेख किया गया है। हालांकि, अन्य पुराण इस ब्रह्मांड विज्ञान और संबंधित मिथकों के विभिन्न संस्करण देते हैं। इसके अलावा हिंदू पुराण साहित्य में मल्टीवर्स (Multiverse) की अवधारणा भी कई बार उल्लेखित है। जैसे कि भागवत पुराण के अनुसार प्रत्येक ब्रह्मांड सात परतों से ढका है - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश। इसके अनुसार ऐसे असंख्य ब्रह्मांड हैं, और यद्यपि वे असीमित रूप से बड़े हैं, लेकिन वे परमात्मा में परमाणुओं की तरह चलते हैं और इसलिए परमात्मा को असीम कहा जाता है। जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान में भी ब्रह्मांड के सन्दर्भ में कहा गया है कि इसका कोई आरंभ या अंत नहीं है। जैन धर्म के अनुसार, ब्रह्मांड शीर्ष पर संकीर्ण है, मध्य में व्यापक है और नीचे की ओर से व्यापक है। पश्चिम अफ्रीकी धर्म सेरर (Serer) के अनुसार, रचनाकार देवता ‘रूग’ देहत्याग और और निष्कर्ष का बिंदु है। खेती करने वाले लोगों के लिए पेड इस धार्मिक ब्रह्मांड विज्ञान और निर्माण पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी प्रकार से एसोटेरिक (Esoteric) ब्रह्माण्ड विज्ञान, विचार के गूढ़ या मनोगत प्रणाली का एक आंतरिक हिस्सा है। यह ब्रह्मांड विज्ञान अस्तित्व और चेतना के समतल के साथ ब्रह्मांड का मानचित्रण करता है। भारतीय और आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान के बीच समानताएं आकस्मिक नहीं लगती हैं। शायदकुछ भी नहीं से निर्माण के विचार या सृजन और विनाश का चक्र स्थायी रूप से जुड़े परिपथ द्वारा मानव मस्तिष्क में शामिल या हासिल किया गया है। निश्चित रूप से शिव का विनाशकारी नृत्य ऊर्जावान आवेग का सुझाव देता है जोकि महाविस्फोट या बिग-बैंग को प्रस्तावित करता है। और अगर, जैसा कि कुछ सिद्धांतकारों ने प्रस्तावित किया है, बिग-बैंग, बिग क्रंच (Big crunch) सिद्धांत को प्रस्तावित करता है या शुरू करता है तथा ब्रह्मांड के विस्तार और संकुचन के एक अनंत चक्र में चलता रहता है। तब प्राचीन भारतीय ब्रह्माण्ड विज्ञान स्पष्ट रूप से बिग-बैंग की एक-दिशात्मक दृष्टि की तुलना में आगे या अत्याधुनिक है। हिंदू ब्रह्मांडों की अनंत संख्या को वर्तमान में कई विश्व परिकल्पना कहा जाता है, जो न तो कम अविश्वसनीय है और न ही अकल्पनीय।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में हिन्दू धार्मिक ब्रह्माण्ड विज्ञान के अनुसार चित्रण दिखाया है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में ब्रह्माण्ड विज्ञान के हिंदू धार्मिक पहलु के अनुसार संसार और सुमेरु पर्वत का चित्रण है। (Pinterest)
3. तीसरे चित्र में क़ुरान में संलिखित ब्रह्माण्ड विज्ञान से उद्धृत चित्र है। (Flickr)
4. अंतिम चित्र में स्वर्ग, कैलाश और धरती का लोकों के विश्लेषण में चित्रण है। (Flickr)
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Religious_cosmology
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Hindu_cosmology
3. http://www.hinduwisdom.info/Hindu_Cosmology.htm
4. https://wikiislam.net/wiki/Cosmology_of_the_Quran
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