एक बार जिस चीज़ का स्वाद हम ले लेते हैं, उस स्वाद को पाने के लिए हम बार बार कोशिश किया करते हैं, और यही कारण है कि वर्तमान में हर जगह लगभग सभी प्रकार के व्यंजनो को देखा जा सकता है। पंजाब का छोला-भटूरा देश भर में लगभग हर जगह मिल जाएगा, दक्षिण भारत का डोसा उत्तर भारत में बहुत पसंद किया जाता है। देसी व्यंजनो की बात तो आम है पर अगर हम विदेशी व्यंजनो कि बात करे तो पता चलता है, हमारे भारत में चीनी व्यंजन शादी बारातो तक में पकाए जाते हैं। भारत का बटर चिकन पूरे अमेरिका में पसंद किया जाता है, यहाँ तक इंग्लैंड में सबसे पसंदीदा व्यंजन चिकन टिक्का मसाला है और भारत की थाली में भी अनेक अंग्रेज़ी पकवान परोसे जाते हैं।
भारत और इंग्लैंड के मध्य व्यंजनो का रिश्ता तो कुछ ऐसा है कि उसके लिए एक अलग शब्द “एंग्लो-इंडियन व्यंजन” (Anglo-Indian) का ही इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो “एंग्लो-इंडियन” शब्द मूल रूप से उनके लिए प्रयोग किया जाता है, जिनके माता पिता में से कोई भी भारतीय या इंग्लिश (English) मूल का हो। अगर हम इतिहास में जाते है तो एंग्लो-इंडियन व्यंजनो का प्रारम्भ हमें औपनिवेशिक काल से दिखाई देता है, जिस दौरान भारत पर अंग्रेज़ी हुकूमत थी और अंग्रेजो का बड़ा तबक़ा भारत में रह रहा था।
औपनिवेशिक काल के दौरान, कई नए संकर व्यंजन अस्तित्व में आए। तत्कालीन भारतीय खानसामा या रसोइयों ने नए व्यंजनों का आविष्कार किया, जिन्होंने भारत के कुछ स्वादों को, ब्रिटेन (Britain) और यूरोप (Europe) के स्वादों के साथ जोड़ा। जिसमें मसालों और अन्य सामग्रियों को पश्चिमी व्यंजनों में मिलाया जाता है, जो उन्हें हल्का भारतीय स्वाद देता है, इस प्रकार सूपों को जीरा और लाल मिर्च के साथ पकाया जाता था, लौंग, काली मिर्च और दालचीनी जैसे पूरे मसालों को रोस्ट किया जाता था, हल्दी और गरम मसाला के साथ रसौली और क्रॉकेट का स्वाद लिया जाता था। “करी” की अवधारणा जो मांस और सब्जियों के लिए कुछ मसालों के अतिरिक्त पानी के संवहन के रूप में शुरू हुई, उस समय की ‘फूड फैशन’ (Food Fashion) बन गई।
वॉस्टरशायर सॉस, (Worcestershire Sauce) मुलिगाटावनी सूप, मीट जरीफ्रेज़ी, केचप (Ketchup), आदि प्रमुख करी थी। इस तरह एक पूरी तरह से नए प्रकार का व्यंजन अस्तित्व में आया, जो वास्तव में “इंग्लिश” और “भारतीय” परंपरा के मिश्रण का प्रतिबिम्ब है, जो न तो बहुत नरम और न ही बहुत मसालेदार था, लेकिन अपने स्वयं के विशिष्ट स्वाद के साथ। हालाँकि समय के साथ, एंग्लो-इंडियन कुकिंग (Cooking) ब्रिटिश की तुलना में भारतीयता अधिक प्रभावी हो गयी, जिसके कारण अंग्रेज़ी व्यंजन इसमें से लगभग इसमें से ग़ायब हो गए।फिर भी अंग्रेज़ी व्यंजनो का एक बहुत बड़ा हिस्सा भारतीय व्यंजनो में ईश कदर घुल मिल गया है कि पता ही नहीं चलता है की यह अंग्रेज़ी व्यंजन है जैसे रोस्ट्स (Roastes), स्टॉज़, बेक, सैंडविच और वाइट ब्रेड (White Bread) अंग्रेजों की विरासत हैं और एंग्लो-इंडियन इन्हें नई ऊंचाइयों तक ले गए, जिससे वे अपने दैनिक भोजन का हिस्सा बन गए।
अन्य व्यंजन जैसे मछली और चिप्स, कटलेट, क्रोकेट, सॉसेज, बेकन, हैम, अंडे के वेरिएंट, कस्टर्ड, अंडे, बेकन और किपर्स के संडे इंग्लिश ब्रेकफास्ट, टोस्टेड टोस्ट, चीज, बटर, जैम, इंग्लिश रोस्ट डिनर में उबली हुई सब्जियां, रोस्ट पोटैटो, यॉर्कशायर पुडिंग और ग्रेवी, इंग्लिश सॉसेज, आदि एंग्लो-इंडियन व्यंजनो की सूची में शामिल हैं। एंग्लो-इंडियन भोजन की अपनी अलग पहचान है, और इसी पहचान की वजह से ये भारत और इंग्लैंड दोनो देशों में बराबर प्यार पाते हैं। इन देशों के अतरिक्त अन्य देशों में भी एंग्लो-इंडियन व्यंजनो का लुत्फ़ उठाया जाता है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में एंग्लोइंडियन करी को प्रस्तुत किया गया है। (Unsplash)
2. दूसरे चित्र में चाइनीज़ नूडल्स दिख रहे हैं। (Peakpx)
3. तीसरे चित्र में चिकेन करी दिख रही है जो एक दम एंग्लोइंडियन का मान है। (freePictures)
4. चौथे चित्र में रोस्टस और अंतिम चित्र में लसाग्ने है। (Flickr, freepik)
सन्दर्भ :
1. https://www.history.com/news/a-spot-of-curry-anglo-indian-cuisine
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Anglo-Indian_cuisine
3. http://www.uppercrustindia.com/ver2/showpage.php?postid=562
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