वर्तमान महीना इस्लाम के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण महीने के रूप में जाना जाता है, इस महीने में रमजान पर्व मनाया जा रहा है। इस लेख के माध्यम से हम इस्लाम के एक ऐसे प्रतीक के बारे में जानेंगे जो अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। यह एक अष्ठकोणीय आकृति वाला सितारा है जिसे की हम अक्सर कई इस्लामी वास्तुकलाओं पर बहुतायत मात्र में पाते हैं। इस आकृति को रब अल हिज्ब के नाम से या नजमत अल क़ैद के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार की आकृति की जब हम बात करते हैं तो इसके मध्य में एक चक्र बना हुआ होता है। यह आकृति बहुतायत संख्या में सुलेख व जालियों आदि में हमें देखने को मिलता है। ताजमहल, हुमायूँ का मकबरा आदि पर इस आकृति को बड़ी संख्या में देखा जा सकता है। रब अल हिज्ब की बात की जाए यह रूब शब्द से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ है एक चौथाई, और वहीँ हिज्ब का मतलब होता है एक समूह या पार्टी। प्रारंभिक इस्लामी इतिहास में इसका उपयोग कुरान में किया गया जिसे कुल 60 हिज्ब के अनुसार बांटा गया था। ये अष्ठकोणीय प्रतीक कई देशों आदि के झंडों आदि पर भी उपस्थित है जैसे की मोरक्को (Morocco), तुर्कमेनिस्तान (Turkmenistan), उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) आदि। यदि इस सितारे की बात करें तो यह प्राचीन सभ्यताओं में भी हमें मिलता रहा है और मध्य कालीन वास्तु में तो यह बहुत ही बड़े पैमाने पर हमें विश्व भर में देखने को मिला।
हिन्दू और इसाई धर्म में भी इस प्रकार के आकृतियों का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है जैसे की जब हम हिन्दू वास्तु या धर्म की बात करते हैं तो लक्ष्मी देवी के साथ इस प्रकार के प्रतीक को देखते हैं वहीँ अन्य धर्म में स्टार ऑफ़ डेविड (Star of David) को पाते हैं। विभिन्न धर्मों और परम्पराओं में सितारों का एक महत्व हमें दिखाई देता है। प्राचीन विश्व की सभ्यताओं में भी सितारों का वर्णन देखने को मिलता है उदाहरण के लिए सुमेरो (Sumer) के काल में जो कि 4000 ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया ( Mesopotamia) की सभ्यता में। इसाई धर्म की यदि बात करें तो अल्बर्ट केंड्रिक (Albert Kendrick) द्वारा की गयी इसाई धर्म की कब्रों से भी इस प्रकार के आकृतियां मिली हैं जो चौथी शताब्दी के समीप जाती हैं, यह इस्लाम के जन्म से 200 वर्ष पहले की घटना है। इस्लाम में तारों का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण महत्व शुरुआत से ही रहा है और यही कारण है कि इसमें रब अक हिज्ब और नज्मत अल कैद को एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
अब जब हम बात करते हैं कि यह शुरूआती समय में इस्लाम में कैसे आये तो इसकी कहानी इस प्रकार से है- अरब के खलीफा अब्द अल मालिक और उनके बेटे अल वलीद ने ही अपने उम्मैयद वंश के शासन के दौरान अत्यंत ही विशाल संरचना का निर्माण कराया और यह दुनिया का पहला नमूना था। इस संरचना का निर्माण 687 इस्वी से लेकर 691 इस्वी के मध्य हुआ। इस वास्तु में फ़ारसी कला का अंग देखा जाता था जिसमे ऊंची मेहराब वाली इमारते और अलंकरण शामिल था। ये बिजान्टीन (Byzantine) थे जिन्होंने ऊंची गुम्बदों के निर्माण की परंपरा सीखी जो आज भी हम दुनिया भर के इस्लामी कला में देखने को मिलता है। ये आकृति मात्र दीवारों पर नहीं बल्कि इमारतें भी इस अष्ठकोणीय वास्तु पर बनना शुरू हुयी थी जिसका यदि भारत में देखें तो ताजमहल से लेकर हुमायूं का मकबरा आदि अनुपम उदाहरण है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. अल क़ुद्स सितारा
2. हुमायूं के मकबरे (दिल्ली) में रब अल हिज़्ब
3. तुर्कमेनिस्तान का प्रतीक
सन्दर्भ :
1. https://farbound.net/najmat-al-quds-star-of-jerusalem-humayuns-mausoleum-nizzamuddin-east/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Rub_el_Hizb
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Star_of_Lakshmi
4. https://en.wikipedia.org/wiki/AlQuds_Star
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