जब भी हम भारत देश की बात करते हैं तो पूरे वैश्विक स्तर पर यहाँ के विभिन्न धर्मों आदि का जिक्र आता है। विश्व के तीन अत्यंत महत्वपूर्ण धर्मों का उदय इसी भारत की धरती पर हुआ जिसने पूरे विश्व भर में ज्ञान की अलख जगा दी। ये तीन धर्म हैं सनातन, जैन और बौद्ध। यह 6ठी शताब्दी का भारत था जिस समय विभिन्न नए राजवंश उदित हो रहे थे, इस समय भारत में 10 गणराज्य और 16 महाजनपद विद्यमान थे। यह एक ऐसा समय था जब भारत में महावीर स्वामी जैसे ऋषि मुनि का जन्म हुआ जिन्होंने जैन धर्म परंपरा को पराकाष्ठा पर पहुँचाने का कार्य किया। चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म को स्वीकार कर अपना आखिरी समय इसी धर्म को मानते हुए बिताया था।
जैन ग्रंथों में इस धर्म से सम्बंधित अनेकों बातें बतायी गयी हैं जो आज तक हम सब के लिए ज्ञान का एक महत्वपूर्ण श्रोत हैं। जैन धर्म में दो सम्प्रदाय व्याप्त हैं स्वेताम्बर और दिगंबर जिनके उदय का समय काल भिन्न है। मेरठ में यदि बात करें तो जैन धर्म का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है और यहाँ पर कई मंदिर, धर्मशालाएं व्याप्त हैं। श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर मंदिर जो हस्तिनापुर में स्थित है वह हस्तिनापुर का सबसे प्राचीनतम जैन मंदिर है। यह मंदिर सन 1801 में बनाया गया था। अपनी स्थापना के समय से लेकर आज तक यह जैनियों के लिए एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण धार्मिक स्थली रहा है। यहाँ पर छोटे बड़े कई जैन मंदिर एक ही विशाल प्रांगण में स्थित हैं। जैन धर्म के प्रतिमा शास्त्र की बात करें तो यह अत्यंत ही दुर्लभ है जैसा हम खजुराहो, उन, ललितपुर, आबू पर्वत आदि स्थानों पर देखते हैं। जैन धर्म के मंदिर अत्यंत ही सुसज्जित होते हैं तथा इनमे अनेकों प्रतिमाओं का विवरण हमें देखने को मिलता है।
जैन धर्म में अम्बिका का अत्यंत ही महत्वपूर्ण विवरण देखने को मिलता है जिसमे अम्बिका को अपने बाएं जंघे पर एक बालक को बैठाए और दाहिने हाथ में एक गोमेद का फल लिए दिखाया जाता है। वहीँ पार्श्वनाथ को कई फन वाले संख्या में 7 और 11 सांप के साथ दिखाया जाता है। जैन प्रतिमाओं में तीर्थंकरों के वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन किया जाता है तथा इनके हस्त की मुद्राओं से विभिन्न मुद्रा का ज्ञान हमें प्राप्त होता है। जैन धर्म में अनेकों प्रतीकों का भी वर्णन देखने को मिलता है जैसे की अष्टमंगल और श्रीवत्स का जिसका एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण धार्मिक महत्व है। अष्टमंगल की बात करें तो यह जैन, हिन्दू, बौद्ध आदि धर्मों में देखने को मिलता है। अष्टमंगल एक प्रकार के प्रतिक चिन्हों का समूह होता है जो की ज्ञान, बुद्धि और कौशल के साथ साथ सौंदर्य को प्रदर्शित करते हैं। जैसा कि हमें ज्ञात है की जैन धर्म में दो सम्प्रदाय हैं दिगंबर और स्वेताम्बर तो इन दोनों सम्प्रदायों के आठों प्रतीक कुछ भिन्न हैं
दिगंबर में छत्र, ध्वज, कलश, चमर, दर्पण, भद्रासन, हाथ का पंखा व एक पात्र, वहीँ स्वेताम्बर में स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्वर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, दर्पण, व मछली की जोड़ी आदि। इन तमाम प्रकारों को हम जैन धर्म के प्रतिमाओं और प्रतीकों में देख सकते हैं। श्रीवत्स की यदि बात करें तो यह बौद्ध और हिन्दू धर्म में भी हमें देखने को मिलता है। हिन्दू धर्म में विष्णु के कल्कि अवतार व लक्ष्मी देवी से श्रीवत्स का सम्बन्ध प्रस्तुत किया गया है। विष्णु के कल्कि अवतार में उनके छाती या वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन हमें देखने को मिलता है। बौद्ध धर्म में तिब्बती बौद्ध धर्म में मंजुश्री के साथ श्रीवत्स का वर्णन मिलता है तथा अंतहीन गाँठ के साथ भी श्रीवत्स की आकृति को पाया जाता है। 80 द्वितीयक अंकनो में से एक श्रीवत्स है जो की बुद्ध के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है। श्रीवत्स को भारतीय धार्मिक परंपरा में अत्यंत ही शुभ माना जाता है। जैन धर्म में यह तीर्थंकरों के वक्ष पर अंकित किया जाता है तथा यह अष्ठमंगलों में से एक महत्वपूर्ण प्रतीक है जिसे की हम जैन प्रतिमाओं पर पाते हैं।
चित्र (सन्दर्भ):
1. तमिलनाडु के थिरकोइल में महावीर स्वामी का भित्ति चित्र (Wikipedia)
2. जैन धर्म के पांच महाव्रत अष्टमंगल (Prarang)
3. १६ महाजनपद (Prarang)
4. कल्पसूत्र से महावीर के जन्म का चित्र (Wikipedia)
5. मेरठ के हस्तिनापुर में बड़ा जैन मंदिर (Prarang)
सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Ashtamangala#Jain_symbols
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Shrivatsa
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