पीतल उपकरणों के निर्माण के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के रूप में जाना जाता है, मेरठ

मेरठ

 02-05-2020 07:00 AM
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

मेरठ पीतल उपकरणों के निर्माण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के रूप में जाना जाता है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश में किस चरम सीमा तक इसका विस्तार हुआ। हालाँकि, संभावनाएँ अधिक हैं, कि पीतल के यंत्रों का निर्माण मेरठ की तंग जली कोठी में हुआ होगा। आजादी के बाद से, भारत के लगभग 90 प्रतिशत विवाह-बैंड (Band) वाद्ययंत्रों को एक जली कोठी नामक गली के आसपास स्थित कारखानों में बनाया गया। यह उत्पादन बहुत व्यापक है, किन्तु इसके बावजूद भी तैयार उत्पादों के परीक्षण का कोई प्रावधान नहीं है और अक्सर कारीगरों को कानों के दोषों का सामना करना पड़ता है या फिर वे बिना जांचे ही बेच दिए जाते हैं। पीतल के वाद्ययंत्र सभी जगह प्रसिद्ध हैं और शायद ही ऐसा कोई हो जिसने इन्हें सुना न हो। पीतल उपकरण निर्माताओं के अलावा, जली कोठी में इन वाद्ययंत्रों की मरम्मत की दुकानें भी हैं। इस गली में उत्तर भारत के कुछ सबसे प्रसिद्ध पीतल बैंड के कार्यालय भी हैं। मेरठ 1885 से संगीत व्यापार में संलग्न रहा है, जब ब्रिटिश सेना में संगीतकार नादिर अली पीतल के उपकरणों को आयात करने के लिए चचेरे भाई के साथ व्यापार करने लगे। इस उद्योग ने भारत में पीतल के उपकरणों का निर्माण 1920 के दशक से शुरू किया। इसने एक बड़े कारखाने का निर्माण किया जिसे कोठी अटानास (Kothi Atanas) के नाम से जाना जाता था। कुछ और दशकों में, जली कोठी गली में नादिर अली और कंपनी के छोटे प्रतियोगी भी उत्पन्न होने लगे। इस कंपनी को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारी बढ़ावा मिला और इसने होम गार्ड्स (Home Guards) के लिए पीतल की सीटी का निर्माण शुरू करने के बाद बिगुल (Bugles) बनाने का काम भी शुरू किया। 1947 तक, सियालकोट (Sialkot) ने पीतल के उपकरणों के निर्माता के रूप में मेरठ को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन विभाजन के बाद, जली कोठी गली के नादिर अली और अन्य पीतल उपकरण निर्माणकर्ताओं ने भारतीय बाजार पर एकाधिकार स्थापित किया।

आज, नादिर अली और कंपनी ग्यारह प्रकार के पीतल के उपकरण बनाते हैं, जिनमें छोटे बिगुल से लेकर बल्जिंग ट्यूब्स (Bulging tubas) तक शामिल है। मेरठ में बनने वाले उपकरणों में यूफोनियम (Euphoniums) और सूसाफोन (Sousaphones), बिगुल, और ट्रॉम्बोन्स (Trombones) आदि शामिल हैं। यहां बनने वाले उपकरणों ने कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीते हैं और इसके बिगुलों का उपयोग दुनिया के कई हिस्सों के सैन्य बलों द्वारा किया जाता है, जिसमें ब्रिटेन की रॉयल नेवी (Royal Navy) और सऊदी अरब की रॉयल गार्ड्स (Royal Guards) शामिल हैं। पीतल के उपकरण एक बहुत लंबे पाइप के समान होते हैं। पाइपों को घुमावदार और अलग-अलग आकार में घुमाया गया है ताकि उन्हें पकड़ना और बजाना आसान हो सके। कॉर्नेट (Cornet), ट्रम्पेट (Trumpet), फुगेलहॉर्न (Flugelhorn), ऑल्टो/टेनर हॉर्न (Alto/Tenor Horn), यूफोनियम, ट्रॉम्बोन, ट्यूबा और सूसाफोन (Tuba & Sousaphone) आदि पीतल से बनने वाले मुख्य वाद्ययंत्र हैं। हालांकि ये सभी पीतल से बने हैं किन्तु इनकी ध्वनि और इन्हें बजाने की शैली अलग-अलग है। कॉर्नेट में अपेक्षाकृत गीतात्मक, मखमली ध्वनि होती है और यह पीतल के खंड में सामंजस्यपूर्ण रूप से मिश्रित होती है। उच्च नोट्स (Notes) के लिए कॉर्नेट अपनी प्राकृतिक सीमा तक पहुँच जाता है। कई संगीतकारों का मानना है कि मुखपत्र (Mouthpiece) में गहरे, V-आकार के कप के कारण इसे बजाना कठिन होता है। ट्रम्पेट, लगभग कॉर्नेट के ही समान हैं क्योंकि दोनों को बजाने की शैली समान है, लेकिन कुछ चीजों में यह अलग है। ट्रम्पेट लंबी होती है और अधिक हल्की और स्पष्ट स्वर प्रदान करती है। इस कारण से ही एक एकल कलाकार इसे पसंद करता है। आवाज के संदर्भ में भी ट्रम्पेट अधिक प्रभावी है। यह पीतल परिवार का सबसे छोटा सदस्य है और अपनी हल्की और जीवंत ध्वनि के साथ उच्चतम पिच (pitch) पर बजायी जाती है। फुगेलहॉर्न को बजाने की शैली भी ट्रम्पेट या कॉर्नेट से भिन्न नहीं होती है। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण अंतर इसके मुखपत्र में निहित है। इसका मुखपत्र तुलनात्मक रूप से बड़े भीतरी छिद्र के साथ होता है जो उच्च हवा की खपत और वायु उपयोग के लिए उत्तरदायी है। यह ज्यादातर एक संगत उपकरण के तौर पर प्रयोग किया जाता है। ऑल्टो/टेनर हॉर्न के Eb हॉर्न में घंटी और मुखपत्र दोनों ऊपर की ओर निर्देशित होते हैं, इसलिए इसे नीचे बैठकर बजाना आसान है। इसका पीतल अनुभाग एक सेतु के रूप में कार्य करता है, जो रचना में सुंदर सामंजस्य जोड़ता है। यूफोनियम ट्रम्पेट की तुलना में एक सप्टक (Octave) नीचे तथा ट्यूबा की तुलना में एक सप्टक उच्च ध्वनि उत्पन्न करता है। इस उपकरण को कप के आकार के साथ एक विशेष मुखपत्र की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर गहरे और प्रकृति में अधिक

शंक्वाकार होते हैं।

इसी प्रकार से ट्यूबा में भी भिन्नता है। इससे निकलने वाली आवाजें गर्जनशील होती हैं। खास बात यह है कि इनमें तीन से छह वाल्व (Valves) होती है तथा इसकी लंबाई विशेष रूप से व्यापक पैमाने पर होती है, इसलिए इसका छिद्र व्यापक होता है। इसे व्यापक और गहरे मुखपत्र के द्वारा बजाया जाता है। इसकी गहरी समृद्ध ध्वनि होती है। आधुनिक समय में पीतल के उपकरणों का उपयोग विवाह में अक्सर देखा जाता है, किन्तु प्राचीन समय से ही इनका उपयोग विभिन्न-विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता था। जैसे ट्रम्पेट का उपयोग लोगों को एक साथ इकट्ठा करने, युद्ध के आह्वान करने, तथा परेड (parade) संगीत में चमक जोड़ने के लिए किया गया

चित्र (सन्दर्भ):
1.
नादिर अली एंड कंपनी का प्रतिष्ठान (Prarang)
2. सेक्सोफोन, फ्रेंच हॉर्न, ट्यूबा, ट्रम्बोन, ट्रमपेट का चित्र (Prarang)
3. नादिर अली कम्पनी के उत्पाद Prarang)
सन्दर्भ:
1.
http://www.natgeotraveller.in/leader-of-the-brass-band-130-years-of-musical-history-in-meerut/
2. https://www.thomann.de/blog/en/7-brass-instruments-differences-in-sound-and-playing-style/
3. https://www.orsymphony.org/learning-community/instruments/brass/

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