सद्भाव का मेला : नौचंदी

मेरठ

 01-05-2020 11:50 AM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

भारतीय इतिहास में मेलों की संस्कृति बहुत पुरानी है। अधिकतर धार्मिक मेले नदियों के किनारे आयोजित होते हैं। मेलों का जुड़ाव और भावनाओं का सद्भाव शायद यही उद्देश्य है इनके आयोजन का। सबका समागम। एक ट्रेन का नामकरण उत्तर भारत के प्रसिद्ध मेले के नाम पर किया गया - नौचंदी।हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक इस मेले का इतिहास काफ़ी दिलचस्प है। मेरठ के बहरामपुर स्थित आस्ताने में यह मेला हर साल लगता है। 1000 साल पुराने इस मेले के साथ जुड़ी है एक युवा सूफ़ी संत की क़ुर्बानी की कहानी। हज़रत बाले मियां दरगाह के 62 वर्षीय ट्रस्टी (Trustee ) और हज़रत बाले मियाँ के छोटे भाई के 23वें वारिस अशरफ़ इस मेले के पीछे की कहानी बयां करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 1034 ई० में 19 साल के युवा सूफ़ी संत हज़रत बाले मियाँ की हत्या कर दी गई और घटना स्थल पर भारी भीड़ जमा हो गई।शताब्दियों बाद, ब्रिटिश प्रशासन ने ध्यान दिया कि साल के एक ख़ास समय में नौचंदी मेले में भारी संख्या में भीड़ जमा होती है।मेले का नाम नौचंदी कैसे पड़ा, इस बारे में अशरफ़ बताते हैं -‘ हज़रत बाले मियाँ का क़त्ल शुक्रवार को नए चाँद की रात हुआ था जिसे पवित्र दिन मानते हैं।रात को भी ‘नया चाँद रात’ कहते हैं।तारीख़ थी 12 अप्रैल, 1034।इत्तेफ़ाक़ से बाले मियाँ की मज़ार के ठीक सामने चण्डी देवी का मंदिर था।यह मंदिर आज भी है।नवरात्रों में भारी संख्या में लोग मंदिर में देवी-दर्शन को आते और बाले मियाँ की दरगाह पर भी हाज़िरी देते।धीरे-धीरे इसने एक सालना आयोजन का रूप ले लिया और यह नौचंदी (नया चाँद) मेला के रूप में प्रसिद्ध हो गया।1880 में , मेरठ के ज़िला मजिस्ट्रेट एफ़. एन. राइट ने मेले की अहमियत को महसूस किया और तबसे लेकर आज तक प्रशासन मेले की व्यवस्था सम्भाल रहा है।इसके नौचंदी नाम को हिंदुओं ने भी पसंद किया क्योंकि इसमें देवी चण्डी के नाम की ध्वनि भी शामिल थी।

क्यों हुई बाले मियाँ की हत्या?
बाले मियाँ बचपन से सूफ़ी सिद्धांतों की व्याख्या कर रहे थे।उनका असली नाम सैय्यद मसूर सल्हार था।वह मोईउद्दीन सल्हार ग़ाज़ी के बेटे थे जो महमूद गज़नवी के बहनोई थे।महमूद गज़नवी जिसने ग्यारहवीं सदी की शुरुआत में भारत पर आक्रमण किया था।सल्हार गाज़ी उसकी फ़ौज में कमाण्डर थे। सुल्तान ने सल्हार के फ़ौजी कारनामों को देखकर अपनी बहिन सितर-ए- मोअल्ला का निकाह उनसे कर दिया। जिस वक़्त सल्हार गाज़ी अजमेर में एक क़िले को घेरे हुए थे, उसी वक़्त 405 हिजरी में बाले मियाँ पैदा हुए।गाज़ी मियाँ गज़नी से वापस हिंदुस्तान आए तो राजा महिपाल से जंग में जीत के बावजूद तख़्त पर बैठने से इंकार कर दिया।वे जब बहराइच में थे तब वहाँ के 21 राजाओं ने मिलकर उनसे बहराइच ख़ाली करने को कहा।

गाज़ी मियाँ ने बहादुरी से मुक़ाबला करते हुए शहादत पाई।चूँकि मसूर बहुत छोटे थे, वह बाले मियाँ के नाम से मशहूर हुए जिसका मतलब था -छोटे विद्वान। अशरफ़ ने आगे बताया-‘वह सिर्फ़ 12 साल के थे।चूँकि वह सिर्फ़ सूफ़ी शिक्षाओं पर केंद्रित रहते थे, कुछ कट्टरपंथियों को उनकी बातें पसंद नहीं थीं।19 साल की उम्र में बाले मियाँ की हत्या हो गई।’1194 में बादशाह क़ुतुब-अल-दीन ऐबक दरगाह पर आए। उन्होंने बाले मियाँ की मज़ार के साथ ईदगाह का निर्माण करवाया।अशरफ़ बाले मियाँ के बारे में फैली भ्रांतियों से काफ़ी दुखी थे जो देवबंदी और बरेलवी सम्प्रदायों ने प्रचारित कर रखी थीं। कुछ का मानना है कि वह योद्धा थे। दूसरों का कहना है कि वह कभी यहाँ दफ़्न ही नहीं किए गए , सिर्फ़ उनकी एक उँगली यहाँ दफ़्न है।’

एक नज़र मेले के मंज़र पर
हिंदू- मुस्लिम एकता के लिए मशहूर नौचंदी मेले में सभी धर्मों के लोग बड़ी श्रद्धा से आते हैं। एक महीने तक चलने वाले इस मेले में खानपान से लेकर मनोरंजन की भरपूर व्यवस्था रहती है। सांस्कृतिक कार्यक्रम पूरी रात चलते हैं। बच्चों के लिए जादू, सर्कस,झूले आदि की व्यवस्था रहती है। 1000 साल पुराने युवा सूफ़ी संत बाले मियाँ के बारे में इतिहासकारों ने पूरी तरह से ज़्यादा कुछ नहीं बताया है। मौखिक कथा शैली परम्परा में, बाले मियाँ की ज़िंदगी एकता के आख्यान के रूप में सिर्फ़ मेरठ ही नहीं, हिंदुस्तान के तमाम हिस्सों में, बहराइच से लेकर गोरखपुर तक में कही-सुनी जाती है।

नौचंदी मेले से जुड़ा प्रारंग का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

चित्र(सन्दर्भ):
1.
उपरोक्त सभी चित्रों में नौचंदी का मेला दिखाया गया है।, Youtube
सन्दर्भ:
1.
https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/nauchandi-sufi-saint-behind-1000-year-fair/articleshow/69135501.cms
2. https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/gorakhpur/story-bale-miya-mela-will-be-start-from-today-1938799.html
3. https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/nauchandi-sufi-saint-behind-1000-year-fair/articleshow/69135501.cms
4. https://www.youtube.com/watch?v=qUuiyuedxdQ

RECENT POST

  • चलिए अवगत होते हैं, भारत में ड्रॉपशिपिंग शुरू करने के लिए लागत और ज़रूरी प्रक्रियाओं से
    संचार एवं संचार यन्त्र

     15-01-2025 09:30 AM


  • आध्यात्मिकता, भक्ति और परंपरा का संगम है, कुंभ मेला
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     14-01-2025 09:26 AM


  • भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का श्रेय जाता है, इसके मज़बूत डेयरी क्षेत्र को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     13-01-2025 09:26 AM


  • आइए, आज देखें, भारत में पोंगल से संबंधित कुछ चलचित्र
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-01-2025 09:30 AM


  • जानिए, तलाक के बढ़ते मामलों को कम करने के लिए, कुछ सक्रिय उपायों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:26 AM


  • इस विश्व हिंदी दिवस पर समझते हैं, देवनागरी लिपि के इतिहास, विकास और वर्तमान स्थिति को
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:31 AM


  • फ़िनलैंड के सालाना उपयोग से अधिक विद्युत खपत होती है, क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग में
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:27 AM


  • आइए जानें, भारत और अमेरिका की न्यायिक प्रणाली के बीच के अंतरों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:26 AM


  • आइए जानें, हमारी प्रगति की एक प्रमुख चालक, बिजली के व्यापार के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:43 AM


  • भारत में परमाणु ऊर्जा का विस्तार: स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक सशक्त कदम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:30 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id