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भरत मुनि द्वारा रचित नाट्य शास्त्र, नाट्य की विभिन्न विधाओं को जानने के लिए एक अयंत ही महत्वपूर्ण पुस्तक है। नाट्यशास्त्र में कुल 24 मुद्राओं का वर्णन हमें देखने को मिलता है जो कि नृत्य और रंगमंच के अभिनय से जुड़े हुए हैं। नाट्य को पांचवे वेद के रूप में जाना जाता है और यह भी माना जाता है कि नाट्य शास्त्र की रचना स्वयं ब्रह्मा ने की और इसका ज्ञान उन्होंने भरत मुनि को दिया जिसको भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र में वर्णित किया। इसी नाट्य शास्त्र में दो विशेष नृत्य के शैलियों का उल्लेख हमें प्राप्त होता है, लास्य और तांडव। जैसा हम जानते हैं कि तांडव भगवान् शिव द्वारा किया गया एक रचनात्मक और विनाशकारी लौकिक नृत्य है, लास्य पार्वती द्वारा तांडव के समानांतर किया जाने वाला नृत्य था। शैव मत में तांडव का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण विवरण हमें देखने को मिलता है।
तांडव में सृजन, संरक्षण, और विघटन ये तीनों चक्रों को दिखाया गया है। तांडव में भी एक प्रकार है रूद्र तांडव का जो कि मात्र हिंसक स्वभाव को दर्शाता है। तांडव ब्रह्माण्ड निर्माण को और ब्रह्माण्ड के विध्वंश दोनों को प्रदर्शित करने का कार्य करता है। तांडव के विषय में जब हम बात करते हैं तो इसमें नटराज की छवि को सबसे उत्तम और उत्कृष्ट माना जाता है। तांडव शब्द शिव के परिचारक तांदु से लिया गया है और यह वही व्यक्ति था जिसने भरत मुनि को तांडव के सिद्धांतों से अवगत कराया था और वही सुन कर भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र में तांडव का विषद उदाहरण पेश किया था। कई अन्य विद्वानों का अलग मत भी है, उनके अनुसार तांदु खुद रंगमंच पर कार्य करते होंगे या लेखक होंगे और उन्हें बाद में नाट्य शास्त्र में शामिल किया गया।
शैव परंपरा बिना नृत्य के खाली खाली सा लगता है इसमें मुद्राओं का बहुत ही बढ़िया और उत्कृष्ट तरीके से विवरण प्रस्तुत किया गया होता है। भरत मुनि के नाट्य शास्त्र के चौथे अध्याय तांडव लक्षणं में 32 अनुग्रहों और 108 करणों का जिक्र किया गया है। करण अर्थात हाथ और पैर के समायोजन से नृत्य को प्रस्तुत करना। ये समायोजन नृत्य से लेकर युद्ध तक के मुद्राओं को जन्म देते हैं।
तांडव निम्नलिखित पांच सिद्धांतों पर कार्य करता है।
सृष्टि - निर्माण, विकास
षष्ठी - संरक्षण, समर्थन
संहार - विनाश, विकास
तिरोधन - भ्रम
अनुग्रह - विमोचन, मुक्ति
मान्यता के अनुसार उपरोक्त लिखित बिन्दुओं के आधार पर ही पूरी श्रृष्टि का सृजन हुआ था। भारत में तांडव के कुल सात प्रकार पाए जाते हैं जिसमे आनंद तांडव, त्रिपुर तांडव, संध्या तांडव, संहार तांडव, काली तांडव, उमा तांडव और गौरी तांडव। तांडव के एक अन्य रूप को लास्य के रूप में जाना जाता है, यह नृत्य पार्वती द्वारा किया गया था। पौराणिक मान्यता है कि यह नृत्य शिव के तांडव के समानार्थ ही प्रस्तुत किया गया था। लास्य के शाब्दिक अर्थ सौंदर्य, ख़ुशी, काम और अनुग्रह आदि है। लास्य को हिन्दू पौराणिक कथाओं में वर्णित अप्सराओं आदि के नृत्य को भी कहा जाता है। लास्य के 10 विभिन्न प्रकारों का वर्णन हमें देखने को मिलता है जो कि निम्नवत हैं-
चायली
चायलीबाड़ा
उरोजना
लोधी
सुक
धासका
अंगहार
ओयरक
विहास
मन
उपरोक्त लिखित 10 प्रकारों के अलावा लास्य के चार मुख्य प्रकार भी हैं-
श्रीखंड, लता, पिंडी तथा भिदेक, इन चारों प्रकारों का अपना अलग अलग नृत्य प्रकार है जैसे लता में दंड, मंडल और नाट्यरस ये तीन भाग पाए जाते हैं।
उपरोक्त लिखित तत्वों से हम यह कह सकते हैं कि तांडव और लास्य स्त्रीपक्ष और पुरुष पक्ष को नृत्य के सहारे प्रस्तुत करने का कार्य करते हैं।
चित्र (सन्दर्भ):
1. तांडव के दौरान नृत्य मुद्रा में भगवान् शिव का भित्ति चित्र।, Wikimedia
2. रौद्र तांडव के दौरान भगवान् शिव।, Youtube
3. तांडव नृत्य की विभिन्न मुद्राएं।, Flickr
4. तांडव और लास्य।, Prarang
5. लास्य के दौरान क्रोध मुद्रा में नर्तकी।, Wikipedia
सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Tandava
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Lasya
3. https://disco.teak.fi/asia/bharata-and-his-natyashastra/
4. hindujagruti.org/hinduism/knowledge/article/what-is-the-origin-of-tandav-dance.html
5. https://www.kalyanikalamandir.com/blogs/forms-of-lasya/