मुस्लिम समुदाय के बीच रमज़ान के पवित्र महीने का विशेष महत्व है। इस दौरान निय्यत का भी विशेष रूप से पालन किया जाता है। निय्यत (Niyyat) और इसके एकवचन यानि निय्याह (niyyah) की इस्लाम धर्म और किसी भी व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक महत्ता होती है। इसका अर्थ दो चीजों की ओर इशारा करता है, पहला वस्तु और दूसरा इरादा। निय्याह या निय्यत या नीयत अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है, इरादा। यह एक इस्लामी अवधारणा है जिसका तात्पर्य ईश्वर (अल्लाह) के लिए अच्छा कार्य करने के इरादे से है। इरादा, इस्लाम और रमज़ान का बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। इरादे से तात्पर्य यह है कि आपने किसी कार्य को करने का निश्चय किया तथा अब आप यह प्रार्थना करते हैं कि अल्लाह उस कार्य को पूरा करने में आपकी मदद करेगा। यहाँ तक कि कुछ नेक करने के इरादे के लिए आपको पुरस्कृत भी किया जायेगा। इस्लाम धर्म के कई विद्वान मानते हैं कि इरादा रमजान के दौरान उपवास या रोज़े करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि आपके द्वारा उपवास करने से पूर्व कोई इरादा नहीं किया गया है तो आपका उपवास मान्य नहीं है। प्रत्येक दिन रखे जाने वाले रोज़े में यह आवश्यक नहीं है कि आप हर दिन कोई इरादा लें, पहले दिन किया गया इरादा ही पर्याप्त होता है, किन्तु यदि रोजा बीच में किसी कारण से टूट जाता है, तब पुनः इरादा करके रोजा रखा जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि आप अपने इरादे को मुंह से बाहर बोले, आप इसे दिल से मौन रहकर करते हैं तो भी यह पर्याप्त होता है।
पैगम्बर का कहना है कि अच्छे कर्म किये जाने चाहिए किन्तु अल्लाह उसे तब ही कबूल करता है जब उसे इरादे के साथ किया जाता है। कोई भी व्यक्ति जो उपवास के लिए सुबह होने से पूर्व इरादा नहीं करता उसका उपवास मान्य नहीं है। अल्लाह द्वारा दिया जाने वाला ईनाम इरादे पर ही निर्भर करता है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके इरादे के अनुसार ही पुरस्कृत किया जाता है। वैधानिक अर्थों में निय्याह ह्रदय का वह इरादा है जो प्रार्थना कार्य के दौरान ईश्वर या अल्लाह के करीब होने के लिए किया जाता है। एक मुसलमान को सलत (salat-प्रार्थना) शुरू करने से पहले और हज (मक्का की तीर्थयात्रा) शुरू करने से पहले निय्याह करना आवश्यक है। इबादत (ʿibādāt), जैसे कि पांच बार प्रार्थना करना, उपवास, ज़काह (zakāh), और हज, एक मुस्लिम से शुद्ध समर्पित निय्याह की माँग करता है, ताकि एक वैध इबादत की स्थिति को प्राप्त किया जा सके। यदि कोई व्यक्ति सुबह जल्दी उठता है और सुबह के अपने सभी धार्मिक कार्यों को सुचारू रूप से करता है किन्तु यदि उन कार्यों के साथ इरादा न हो, तो वह सभी कार्यों को 'सुबह की दिनचर्या' के रूप में करता है। इस प्रकार उसके धार्मिक कार्य इबादत के रूप में अमान्य हो जाते हैं, क्योंकि वह उन सभी कार्यों को एक दिनचर्या के रूप में कर रहा था न कि एक धर्मी मुसलमान के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए। आस्तिक के निय्याह को अहंकार और स्वार्थ से मुक्त होना आवश्यक है। अन्यथा, यह बाहरी अच्छा काम ईश्वर के लिए अमान्य माना जाएगा। निय्याह केवल एक मुस्लिम की इबादत का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं है, बल्कि यह उसके दैनिक जीवन और पारस्परिक संबंधों में भी शामिल है। किसी मुस्लिम के जीवन में उसके द्वारा की जाने वाली साधारण गतिविधियों का भी धार्मिक मूल्य हो सकता है यदि वह उनके लिए निय्याह का अभ्यास करता है। उदाहरण के लिए, एक मुसलमान के दैनिक भोजन को इबादत माना जा सकता है जब निय्याह या इरादा न केवल शारीरिक भूख मिटाने का हो बल्कि ये प्रदाता के रूप में परमात्मा को भी प्रतिबिंबित करे।
विद्वानों का कहना है कि भगवान को दैनिक रोटी की भांति अपने उपहार के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है, दिक्र-फ़िक्र-सुक्र (Ḏikr-fikr-šukr)। इस सन्दर्भ में दिक्र से तात्पर्य परमात्मा का नाम लेकर भोजन की शुरूआत करने से है। सुक्र परमात्मा की प्रशंसा करने और फ़िक्र परमात्मा की कृपा, दया और शक्ति को पहचानने के लिए खाने के दौरान आध्यात्मिक प्रतिबिंब को संदर्भित करता है। निय्याह न केवल स्व-हित से सम्बंधित है, बल्कि यह विभिन्न रचनाओं में रचनाकर्ता (परमात्मा) के निवास को पहचानकर उसके और भी अधिक करीब कर देता है। उदाहरण के लिए, एक नास्तिक व्यक्ति केवल अपनी भूख को संतुष्ट करने के लिए भोजन करता है। वह दिव्य उपहारों के बारे में नहीं सोचता। यहां, धर्मी निय्याह इन दोनों कृत्यों के बीच अंतर करता है। हालांकि गतिविधि और समय एक ही है किन्तु दोनों में गुणात्मक निय्याह का अंतर है। जो व्यक्ति केवल शारीरिक भूख को खत्म करने का इरादा रखता है, वह पुरस्कार के रूप में केवल क्षणभंगुर भोजन ही प्राप्त करता है। इसलिए दैनिक जीवन में किये जाने वाले कार्य में इरादे का होना आवश्यक है, क्योंकि यह मनुष्य को परमात्मा के और भी करीब कर देता है तथा उसे परमात्मा द्वारा दिव्य उपहारों से पुरस्कृत किया जाता है।
मुस्लिम धर्म में पूरे दिन भर प्रार्थना के लिए अनेक अनुष्ठान किये जाते हैं। हिन्दू धर्म में भी प्रार्थना का विशेष स्थान होता है तथा यहां भी विशेष अनुष्ठान किये जाते हैं जिनमें से संध्यावंदन भी एक है। यह एक अनिवार्य धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे पारंपरिक रूप से, हिंदुओं के द्विज समुदायों द्वारा किया जाता है। संध्यावंदन में अनुष्ठान के साथ वेदों का पाठ किया जाता है। संध्यावंदनम विश्व धर्म में सबसे पुराना धार्मिक अनुष्ठान है। ये अनुष्ठान दिन में तीन बार किए जाते हैं - सुबह, दोपहर और शाम। प्रत्येक समय इसे एक अलग नाम से जाना जाता है - प्रातःकाल में प्रातःसंध्या (prātaḥsaṃdhyā), दोपहर में मध्याह्निक (mādhyānika) और सायंकाल में सायंसंध्या (sāyaṃsaṃdhyā)। वेदों तथा श्लोकों का उच्चारण करके गायत्री मंत्र का एक निश्चित संख्या में जाप किया जाता है। इस अनुष्ठान का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है क्योंकि इससे मनुष्य का मस्तिष्क शुद्ध हो जाता है तथा कई रोग समाप्त हो जाते हैं। संध्यावंदन करने वाले व्यक्ति अपने पाप से मुक्त हो जाते हैं।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में पाक नियाह (नियत) के साथ रमजान की प्रार्थना करती एक इस्लाम धर्म की उपासक को दिखाया गया है।, Pxfuel
2. दूसरे चित्र में पाक मस्जिद और चाँद के रूप में पाक नियाह के महत्व को प्रस्तुत किया गया है।, Prarang
संदर्भः
1. https://w.tt/3eHFpvP
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Niyyah
ang
3. https://bit.ly/2zngm16
4. https://www.islamicity.org/8618/knowledge-and-niyyah-intention/
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Sandhyavandanam
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