भारतीय पैंगोलिन (Manis crassicaudata), जिसे मोटी पूंछ वाला पैंगोलिन भी कहा जाता है और परतदार चींटीखोर पैंगोलिन भारत का मूल निवासी है। अन्य पैंगोलिन की तरह, इसके शरीर पर बड़े, अतिव्यापी परत होती हैं जो कवच के रूप में कार्य करती हैं। यह बाघों और शेरों जैसे शिकारियों के खिलाफ आत्मरक्षा के लिए अपने शरीर को एक गेंद के रूप घुमाकर गोल कर सकता है। इसके शरीर पर परतों का रंग पृथ्वी और आसपास के परिवेश के रंग के आधार पर भिन्न होता है। यह एक कीटभक्षी है, अपने लंबे पंजे का उपयोग करते हुए मिटटी के टीलों और अन्य स्थानों से खोदकर ये चींटियों और दीमकों को खाता है, , इसके पंजे इसके अग्र अंगों की तरह लंबे होते हैं। यह रात्रिचर है और दिन के दौरान गहरे गड्ढों में रहता है।
भारतीय पैंगोलिन को उसके मांस और उसके शरीर पर पायी जाने वाली परतों के लिए अवैध शिकार से खतरा है, जो स्थानीय लोगों द्वारा उपयोग और उपभोग किया जाता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसका तेजी से कारोबार किया जाता है। पैंगोलिन के शरीर के विभिन्न भागों को भोजन और चिकित्सा के स्रोतों के रूप में महत्व दिया जाता है। इसके शरीर पर पायी जाने वाली परतों का उपयोग एक कामोद्दीपक औषधि के रूप में किया जाता है और इससे आकर्षक और सुन्दर छल्ले भी बनाये जाते हैं। चमड़े का सामान बनाने के लिए खाल का उपयोग किया जाता है, जिसमें बूट्स और जूते शामिल हैं। शिकार का अधिकांश हिस्सा खानाबदोश और प्रशिक्षित स्थानीय शिकारियों द्वारा किया जाता है। कम से कम 2000 के दशक से चीन में खपत के लिए भारतीय पैंगोलिन के शरीर के अंगों की तस्करी की जा रही है। पैंगोलिन सबसे भारी तस्करी के कारण संरक्षित स्तनधारियों में से एक है।
सन्दर्भ:
1. https://www.youtube.com/watch?v=9apG1ILx_PY
2. https://www.youtube.com/watch?v=nV4tkt30Kqs
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_pangolin
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.