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हमारा देश अनेक विविधताओं से समृद्ध है, और इसलिए यहां विभिन्न धर्म के लोगों द्वारा मनाये जाने वाले त्यौहार पूरे देश भर में मनाए जाते हैं। आज के दिन को हम बैसाखी के पर्व रूप में मना रहे हैं, जिसका उच्चारण वैसाखी बोलकर भी किया जाता है। भारत में बैसाखी का यह जीवंत पर्व कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिनमें फसल उत्सव, सिख धर्म में खालसा पंथ के स्थापना दिवस, तथा ज्योतिषीय कारण शामिल हैं। सिख धर्म का पालन करने वाले लोगों के लिए बैसाखी का बड़ा महत्व है, क्योंकि 1699 में इस दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ या ऑर्डर ऑफ प्योर वन्स (Order of Pure Ones) की स्थापना की और सिखों को एक विशिष्ट पहचान दी। सिख धर्म के अनुयायी एकमात्र ऐसे लोग हैं जो इस दिन अपना जन्मदिन मनाते हैं, क्योंकि वे उस दिन एक नयी कौम के रूप में पैदा हुए थे। ज्योतिषीय रूप से, इस पर्व का महत्त्व देखा जाए तो ऐसा माना जाता है की इस दिन मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है। इस कारण बहुत से लोग बैसाखी को माशा संक्रांति के नाम से भी जानते हैं। पूरे भारत की यदि बात की जाए तो यह पर्व विभिन्न नामों और अनुष्ठानों के तहत मनाया जाता है। इसे असम में 'रोंगाली बिहू (Rongali Bihu), बंगाल में 'नबा बरसा (Naba Barsha)', तमिलनाडु में 'पुत्तंदु (Puthandu)', केरल में 'पूरम विशु (Pooram Vishu)' और बिहार राज्य में 'वैशाखा (Vaishakha)' नाम से जाना जाता है।
किसानों के लिए यह पर्व अत्यधिक ख़ास है। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के लिए, बैसाखी रबी (सर्दियों) की फसलों की कटाई का समय है। इन राज्यों में इस पर्व को धन्यवाद दिवस के रूप में मनाया जाता है। फसल उत्सव मुख्य रूप से सिखों और पंजाबी हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है, जिसमें किसान प्रातः काल जल्दी उठकर, नहा-धोकर, नए कपड़े पहनने के बाद अच्छी फसल के लिए भगवान का आभार व्यक्त करने हेतु मंदिरों और गुरुद्वारों का दौरा करते हैं। वे कृषि के मौसम के लिए आशीर्वाद मांगते हैं, भरपूर फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं और भविष्य की समृद्धि के लिए प्रार्थना भी करते हैं। ऐतिहासिक रूप से, 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में, सिखों और हिंदुओं के लिए वैसाखी का यह पर्व एक पवित्र दिन था जिसमें पंजाबी, ईसाई और मुसलमान धर्म के लोग भी बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे। आधुनिक समय में, ईसाई धर्म के लोग कभी-कभी ही सिखों और हिंदुओं के साथ बैसाखी समारोह में भाग लेते हैं। इस पर्व का सबसे आकर्षण केंद्र आवत पौनी (Aawat pauni) परंपरा है, जोकि फसल कटाई से जुड़ी है। इस परंपरा को निभाने के लिए लोगों को इस दिन गेहूं की कटाई करने के लिए एकजुट होना पड़ता है। काम के दौरान ढोल बजाए जाते हैं तथा दिन के अंत में, लोग ढोल की धुन पर दोहे गाते हैं। किसान ऊर्जावान भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करके तथा बैसाखी मेलों में भाग लेकर बैसाखी मनाते हैं।
बैसाखी के दिन हिंदू नव वर्ष की शुरुआत भी होती है। यह माना जाता है कि हजारों साल पहले, देवी गंगा पृथ्वी पर उतरीं और उनके सम्मान में, कई हिंदू लोग पवित्र स्नान के लिए गंगा नदी के किनारे इकट्ठा हुए। यह दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी। मेरठ में भी बैसाखी के पर्व को बड़े हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है। यहाँ लगभग 8000 सिख निवास करते हैं। पिछले वर्ष इस दिन सिखों द्वारा खालसा चेतना मार्च भी निकाला गया था, जिसमें नवयुवक स्कूटरों (Scooters) और बाइकों (Bikes) पर केसरी निशान साहिब लगाकर सत श्री अकाल, पंथ की जीत आदि के जयकारे लगाते चल रहे थे। इस मार्च का उद्देश्य सिख धर्म की शिक्षाओं और प्रथाओं के बारे में जागरूकता फैलाना होता है। उनके अनुसार सेवा ही सिख धर्म की पहचान होती है।

सन्दर्भ:
1. https://www.speakingtree.in/blog/significance-of-baisakhi-in-india
2. https://bit.ly/34qfy76
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Vaisakhi#Aawat_pauni
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Vaisakhi#Harvest_festival
चित्र सन्दर्भ:
1. Wikimedia.org - बैसाखी 2010 बर्मिंघम, यूके (Birmingham, United Kingdom) में पंज प्यारे
2. Wikimedia.org - पोहेला बोइशाख (Pohela Boisak) का जश्न मनाते हुए
3. Youtube.com - 54th गोरेस्वर केंद्रीय रोंगाली बिहू
4. Piqsels.com - कोट्टियूर वैशाख महोत्सव, प्रकृति का त्यौहार