कोविड 19 (COVID 19) कोरोना (Corona) नामक महामारी वर्तमान समय में इस पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी के रूप में कार्य कर रही है। आज सम्पूर्ण मानव जाति इस बिमारी के कारण त्रस्त है। ऐसे में इस वायरस (Virus) के वाइरल लोड (Viral load) के विषय में जानना जरूरी हो जाता है और साथ ही साथ यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि यह किस प्रकार से किसी रोगी को प्रभावित कर सकता है। जैसा हम सब जानते हैं कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों के पास अभी कोरोना (Corona) से सम्बंधित बहुत ही कम जानकारियाँ उपलब्ध है जो इस बिमारी के लिए फैलने का एक बड़ा अवसर प्रदान करती है। यह महामारी छूने से और स्वांस आदि के माध्यम से फैलती है अतः यह एक अत्यंत ही भयावह स्थिति को जन्म देने का कार्य करती है। इसका संक्रमण लगते ही मनुष्य के शरीर में जो वायरस (Virus) की गिनती है वह एक ज़िनिथ (Zenith) तक बढ़ जाती है जिसको अलग शब्द में पीक विरेमिया (Peak viremia) के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार से ग्रसित लोगों की स्थिति अत्यंत ही शीघ्र दैयनीय हो जाती है।
इस प्रकार से बीमार होने पर मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वे इस प्रकार से लड़ नहीं पाते हैं। अभी कुछ वर्ष पहले ही एक बाल रोगी विशेषज्ञ “सोरेन गैंट” (Soren Gantt) ने कई महिलाओं के ऊपर शोध किया और उनके ओरल स्वाब (Oral Swabs)(किसी भी बीमारी की उपस्थिति के लिए मुंह में लार के नमूनों का परीक्षण) को कहा और इस प्रक्रिया को एक वर्ष तक किया। इस दौरान उनको यह पता चला कि एक औरत एक नवजात के पैदा होने के बाद एक साल में कितनी संख्या में एच एच वि 6 (HHV 6) नामक वायरस (Virus) का श्राव करती हैं। यह श्राव नवजात शिशु के शरीर पर लाल दाने आदि ला देता है।
अब इस शोध के माध्यम से यह सिद्ध हुआ कि यह वायरस (Virus) लार के जरिये फैलता है, यही कथन अन्य महामारियों या वायरस (virus) के फैलने पर भी माना जा सकता है। इसी प्रकार से इन्फ्लुएंजा (Influenza) के साथ भी देखा गया जिसमे जिस चूहे की जितनी अधिक मात्रा में वाइरस (Virus) दिया गया उनमे उतनी ही गंभीर बिमारी ने घर किया। वर्तमान में कोरोना (Corona) के विषय में जो प्रमाण हमें प्राप्त होते हैं उससे यह पता चलता है की इसमें इन्फ्लुएंजा (Influenza) के कई आयामों का पालन हो रहा है। 2004 में हुए एक अध्ययन के अनुसार जो कि कोरोना (Corona) के ऊपर ही था में यह बताया गया था कि इसमें स्वसन की बिमारी का आना आम है।
2019 का कोरोना (Corona) भी उसी पैटर्न (pattern) पर कार्य करता है। इस बिमारी में उच्च उम्र के रोगियों के जीवनकाल की अवधि करीब 2 महीने तक की आंकी गयी है तथा इसमें मृत्यु होने की दर 20 से 40 प्रतिशत तक की थी। यह महामारी रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास करने की कोशिश करता है और जैसे ही कमजोर प्रतिरोधक क्षमता को देखता है वैसे ही यह रोग उस व्यक्ति के शरीर पर हावी हो जाता है। कई अन्य बीमारियों जैसे की एच आई वी (HIV) में भी हमने देखा है। मृत्यु दर की बात करें तो उम्र का प्रतिशत इस बिंदु पर एक प्रभाव जरूर डालने की कोशिश करता है।
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1. https://bit.ly/2xQQlqg
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