परंपरा के अनुरूप होली में प्रमुख चार रंगों का ही उपयोग होता है, जो अत्यंत प्रतीकात्मक है। लाल, पीला, हरा और नीला ये चार रंग अध्यात्म जगत में अच्छाई के चार आधारभूत सिद्धांतों के रंग हैं।
1. किसी को लाल रंग लगाने के पीछे हमारे मनीषियों का उद्देश्य यही था कि हम उस व्यक्ति को अभय का दान देते हैं। उस व्यक्ति को हमसे कोई भी संयोग में किसी भी प्रकार से डरने की आवश्यकता नहीं है।
2. पीला रंग सबके साथ स्नेह पूर्वक से वचन व्यवहार करने का प्रतीक है। मनुष्य का मनुष्य से सम्बंध वाणी के आधार पर ही बनता है और जब हमारी वाणी में मधुरता, मृदुता और मैत्री होगी तो सम्बन्धों में आत्मिक घनिष्टता बढ़ेगी। यह घनिष्टता मनुष्य को सामाजिक सलामती का अनुभव कराती है।
3. प्रकृति की भाँति, हरा रंग सबके साथ निष्काम भाव से सहयोग का प्रतीक है। मनुष्य के जीवन में दूसरों से कामना, स्वार्थ का भाव ही स्वयं में दुःख की अनुभूति कराता है। हरा रंग प्रतीक है कि हम निस्वार्थ भाव से जीवन जीते हुए सभी के लिए उपयोगी होने का निर्णय करते हैं।
4. नीला रंग अनंत का प्रतीक है। जहाँ-जहाँ सृष्टि में अनंतता के दर्शन होते हैं, वहीं प्रकृति नीला रंग बिखेरती है। होली के त्यौहार में भी नीला रंग हमें अनंत ईश्वर की सत्ता की ओर दृष्टि कराता है। जीवन की सभी दुविधा ही इसलिए है क्योंकि हम जीवन की अवस्थाओं में उलझ जाते हैं। इन अवस्थाओं का परम आधार तो सभी जन में एक ही है। होली के इस त्यौहार के माध्यम से हम अस्तित्व की अनन्य एकता का उत्सव मनाते हैं।
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2.	https://vimeo.com/91791014
3.	https://medium.com/bliss-of-wisdom/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE-2c5f71442050
4.	http://hoshang-ghyara.blogspot.com/2016/09/blog-post_25.html