भारत की जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिसके साथ विभिन्न वस्तुओं या सामग्रियों की मांग में भी लगातार वृद्धि हो रही है। इन सामग्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए पारंपरिक खुदरा और ई-कॉमर्स कंपनियों (E-commerce companies) को एक मज़बूत परिवहन ढांचे की आवश्यकता है, किंतु वे देश की मुख्य परिवहन प्रणाली अर्थात भारतीय रेल प्रणाली पर भरोसा करने में पूर्ण रूप से सक्षम नहीं है जिसका प्रमुख कारण भारतीय रेलमार्गों की स्थिति है। यह न केवल दयनीय है बल्कि खतरनाक भी है। ऊर्जा के साथ-साथ परिवहन भी आर्थिक विकास का प्रमुख चालक है और इसलिए यह आवश्यक है कि परिवहन का बुनियादी ढांचा मज़बूत हो।
भारतीय रेलवे प्रणाली दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी रेल प्रणाली है, जिसमें 62,658 कि.मी. रेलवे क्षेत्र शामिल है। 2013 में, भारत 1010 मिलियन टन (Million Tonne) का माल लदान प्राप्त करने के बाद चीन, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बिलियन टन क्लब (Billion ton club) में शामिल हुआ। किंतु रेलमार्गों के खराब होने की वजह से अधिकांश माल का यातायात सड़कों के द्वारा ही हुआ जो यह दर्शाता है कि देश की रेलवे प्रणाली अभी इतनी भरोसेमंद नहीं है। निवेशकों का मानना है कि रेलवे प्रणाली में सैकड़ों अरबों डॉलर (Dollar) का निवेश किया जाना चाहिए, ताकि यह चरम दक्षता पर काम कर सके। रेलवे प्रणाली को सुधारने के प्रयास में एक कदम हेड ऑन जनरेशन (Head on generation - HOG) तकनीक के रूप में बढ़ाया गया है। भारतीय रेलवे ने बड़े पैमाने पर अपने ऊर्जा बिलों में कटौती करने के लिए जर्मन कंपनी (German Company), एलएचबी (Linke Hofmann Busch - LHB) द्वारा बनायी गयी हेड ऑन जनरेशन तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू किया है। हेड ऑन जनरेशन तकनीक (HOG) के ज़रिए रेल के इंजनों का संचालन तथा सभी डिब्बों में बिजली की आपूर्ति ओवरहेड वायर (Overhead wire) से की जाती है जिसके कारण बिजली की खपत बहुत कम होती है। भारतीय रेलवे में HOG प्रणाली का उपयोग उन सभी ट्रेनों में शुरू किया गया है जिनमें एलएचबी (Linke Hofmann Busch - LHB) कोच (Coaches) हैं और जो बिजली के कर्षण से प्रभावित हैं।
एलएचबी कोच भारतीय रेलवे के यात्री कोच हैं जिन्हें जर्मनी के लिंक हॉफमैन बुश द्वारा विकसित किया गया था। भारत में अधिकतर एलएचबी कोच, कपूरथला की रेल कोच फैक्ट्री (Rail Coach Factory) द्वारा निर्मित किये गये थे। सन् 2000 से इनका उपयोग भारतीय रेलवे के ब्रॉड गेज (Broad Gauge - 1676 मिमी) नेटवर्क पर किया जा रहा है। कोच को 160 किमी/घंटे तक की परिचालन गति के लिए डिज़ाइन (Design) किया गया था जोकि 200 किमी/घंटे तक जा सकती है। इनकी लंबाई 23.54 मीटर और चौड़ाई 3.24 मीटर होती है जिसकी यात्री क्षमता पारंपरिक रेक (Rakes) की तुलना में बहुत अधिक है। इस तकनीक के इस्तेमाल से उत्तरी रेलवे क्षेत्र के दिल्ली डिवीज़न (Division) ने अपने ऊर्जा बिलों में 80% की कटौती की है। HOG प्रणाली पर्यावरण अनुकूलित है, जिसका प्रयोग 11 जोड़ी शताब्दी एक्सप्रेस (Express), 8 जोड़ी राजधानी एक्सप्रेस, दुरंतो की 2 रेलों, हमसफ़र एक्सप्रेस की दो रेलों, और एक्सप्रेस रेलों की 16 जोडियों में किया जा रहा है जोकि वर्तमान में दिल्ली डिवीज़न नेटवर्क (Delhi Division Network) के तहत संचालित की जा रही हैं। यह तकनीक ट्रेनों में कोच लाइटिंग (Lighting), एयर कंडीशनिंग (Air conditioning) जैसी बिजली की ज़रूरतों को पूरा करती है।
HOG प्रणाली को डीज़ल (Diesel) तेल की खपत की आवश्यकता नहीं होती है। इसके अलावा यह प्रौद्योगिकी वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण को भी कम कर सकती है। उत्तर रेलवे के अनुसार, इस तकनीक की शुरुआत के साथ प्रति वर्ष लगभग 65 करोड़ रुपये की बचत की जा सकती है। सामान्य तौर पर रेलों में बिजली आपूर्ति के लिए जनरेटर कारों (Generator cars) का उपयोग किया जाता है। किंतु HOG प्रणाली के माध्यम से रेल में एक आपातकालीन जनरेटर और विभिन्न कम्पार्टमेंट (Compartment) जोड़े जा सकते हैं। बिजली की प्रत्येक इकाई के लिए, वर्तमान में भारतीय रेलवे की लगभग 36 रुपये की लागत है। किंतु इस तकनीक के लागू होने के बाद, प्रति इकाई लागत 6 रुपये तक हो सकती है। डीज़ल के उपयोग में कमी के कारण यह कदम लगभग 14 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा की बचत कर सकता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2T9eNdn
2. https://bit.ly/3c3WJdd
3. https://en.wikipedia.org/wiki/LHB_coaches
4. https://www.railway-technology.com/news/indian-railways-hog-system/
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.pexels.com/photo/11058-india-locomotive-ohe-1522524/
2. https://www.flickr.com/photos/belurashok/35543892663
3. https://www.goodfreephotos.com/public-domain-images/train-on-tracks-with-wires.jpg.php
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