 
                                            समय - सीमा 266
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                                            मेल या डाक का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन है और इसमें समय के साथ साथ कई बदलाव और प्रयोग होते रहे हैं। इन्ही प्रयोगों ने डाक सेवा को एक अत्यंत ही अद्भुत इतिहास प्रदान किया है। एक ऐसा ही प्रयोग डाक सेवा में देखने को मिला जिसे राकेट मेल के रूप में जाना जाता है। राकेट मेल एक ऐसी व्यवस्था है जिसमे राकेट या मिसाइल द्वारा डाक वितरण किया जाता है। यह पैरासूट द्वारा जमीन पर गिराया जाता था। यह डाक व्यवस्था कई देशों द्वारा सफलता पूर्वक बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया था। जैसा कि यह एक अत्यंत ही ज्यादा महंगा विकल्प है और कई बार इसमें कई असफलताएं भी आई तो एक बड़े व्यापक रूप से यह नहीं फ़ैल सका। इस प्रकार के मेल के लिए कई प्रकार की व्यवस्थाओं का भी प्रतिपादन किया गया था जिसे की हम टिकटों के माध्यम से देख सकते हैं। इस व्यवस्था का सुझाव सबसे पहले जर्मन लेखक हेनरी क्लस्ट ने बताया था।
 
19 वीं शताब्दी में रोकेट मेल करने के लिए कोंग्रेट राकेट का प्रयोग किया गया था। 1928 में ड्यूश गेसेल्शाफ्ट फार लुफ्त-अन रौम्फार्ट की एक बैठक में इस विषय पर एक व्याख्यान दिया और कालान्तर में इस प्रकार के डाक पर चर्चा होनी शुरू हुयी। 1929 में ट्रांस अटलांटिस रोकेट डाक पर चर्चा भी हुयी जिसमे संयुक्त राष्ट्र के जैकब गोल्ड गोल्डमन थे। फ्रेडरिक श्मिडेल ने ऑस्ट्रेलिया के शोकल और संत राडगड के मध्य में 102 टूकड़ों के साथ पहला रोकेट मेल वि-7, प्रायोगिक राकेट 7 भेजा था। इसी प्रकार के कई प्रयोग दुनिया भर में हो रहे थे। होगार्ड जाकर ने 1930 के दशक में आतिशबाजी में प्रयुक्त रोगन का प्रयोग रोकेट उड़ाने के लिए किया था। 1931 में उन्होंने बताया की उनका रोकेट पूरे जर्मनी की यात्रा किया है और उन्होंने कहा “इसका प्रयोग मेल या डाक पहुचाने में किया जा सकता है।
 
इसी के साथ साथ कई और प्रयोगों ने जन्म लिया और इसमें कई प्रयोगों आदि में विस्फोट आदि भी हुए जिनसे बड़े पैमाने पर क्षति का सामना करना पड़ा था। भारत में राकेट मेल का एक अनूठा इतिहास है, स्टीफन स्मिथ इंडियन एयरमेल सोसाइटी के एक सचिव थे जिन्होंने राकेट मेल/ डाक के विषय में कई कार्य किये। उन्होंने अपना पहला प्रक्षेपण 30 सितम्बर 1934 में किया था तथा 4 दिसंबर 1944 तक उन्होंने कुल 270 से अधिक प्रयोग किये। इस कार्य के लिए उन्हें राकेट प्रदान करने वाली कंपनी ओरिएंटल फायरवर्क्स कम्पनी थी जिसने उनको करीब 16 राकेट प्रदान किये थे। 1992 में भारत सरकार ने स्मिथ की जन्म शताब्दी मनाने के लिए एक डाक टिकट जारी किया जिसपर उन्हें भारत में राकेट मेल का प्रवर्तक कहा गया। वर्तमान समय में राकेट मेल पूर्ण रूप से बाधित है जिसका कारण है इसमें प्रयोग होने वाला राकेट और मुद्रा का व्यय। वास्तविकता में यह एक अत्यंत ही खर्चीला व्यवहार है जिसमे बड़े पैमाने पर खर्च होता था और जैसा की यह भी सिद्ध है की इसमें कई सारी असफलताएं भी थी जिनके कारण इन्हें वर्तमान काल में बंद कर दिया गया। भारत सरकार के इंडिया एयरमेल के वेबसाईट पर तिथि के अनुसार स्मिथ द्वारा किये गए प्रयोगों की विवरणी लिखी हुयी है जिसे पढ़ा जा सकता है।

सन्दर्भ:
1. https://www.indianairmails.com/indian-rocket-mail.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Rocket_mail
3. https://www.engadget.com/2019/02/02/the-history-of-rocket-mail-backlog/
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        