मेरठ का वन आवरण लगभग 2.55% है जबकि उत्तर प्रदेश भारत के किसी भी राज्य के लिए चतुर्थ निम्न स्तर पर है। उत्तर प्रदेश में केवल 6% का वन क्षेत्र है जो कि राजस्थान (एक रेगिस्तानी राज्य) 5% से सिर्फ थोडा सा ही ऊपर है। 21 वीं सदी के भारत में वृक्ष प्रत्यारोपण एक ज्वलंत मुद्दा है। इस मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में बहस हो रही है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि वृक्ष प्रत्यारोपण की विधि के प्रयोग की बात मिस्र के 2000 ईसा पूर्व के इतिहास में मिलती है। यह विधि ऑस्ट्रेलिया (Australia) जैसे शहर में भी सामान्य तौर पर चलन में है। लेकिन भारत की मिट्टी ऑस्ट्रेलिया की मिट्टी के मुकाबले ज्यादा सख्त है इसलिए ऑस्ट्रेलिया में इस्तेमाल होने वाले उपकरण, भारत में किसी काम के नहीं हैं। तेज़ी से बढ़ते शहरी विकास के दौर में हमारा देश एक दोराहे पर खड़ा है कि हम किसे प्राथमिकता दें, विकास को या वृक्ष संरक्षण को? क्या विकास और स्वस्थ पर्यावरण साथ-साथ नहीं चल सकते?
वृक्ष प्रत्यारोपण की विधि
वर्तमान परिवेश में जहां निरंतर शहरों का विकास होता जा रहा है, वहीं बड़े स्तर पर नयी-नयी इमारतों, परिसरों और होटलों का निर्माण होता जा रहा है। इसी के साथ सभी का रुख हरियाली की ओर भी बढ़ता जा रहा है। हर कोई चाहता है कि उसके आस-पास सुंदर वृक्ष हों, किन्तु मनुष्य हर चीज़ को तुरंत हासिल करना चाहता है। ऐसे में हर आदमी अपने बागीचे में नन्हें पौधों के बजाय बड़े-बड़े पेड़ लगाना चाहता है। विज्ञान के इस युग में आज मनुष्य चाहे तो पूरा का पूरा पेड़ ही अपने आसपास या मनचाही जगह पर लगा सकता है। इस विधि को वृक्ष प्रत्यारोपण भी कहा जाता है। इस तरीके से एक विशाल पेड़ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को शुरू करने का पहला कदम होता है पेड़ की जड़ों को विधिपूर्वक काटना, जिसके लिए लोहे की बड़ी संबल काफी कारगर सिद्ध होती है, जिसके आगे काटने के लिए धारदार सिरा हो।
पेड़ की जड़ों को काटने से पहले ये सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि जड़ें कितनी नाज़ुक हैं और वे कितनी कटाई सह सकती हैं। जड़ों को काटने के लिए सबसे पहले पेड़ के तने के चारों ओर एक घेरा बना लिया जाता है। इस घेरे का आकार तनों की चौड़ाई से 9 गुना होना चाहिए। फिर उस घेरे के आसपास की मिट्टी को खोदकर निकाल दिया जाता है।
इसके बाद पेड़ की कटी हुई जड़ों को एक मोटी बोरी से ढक दिया जाता है। इससे आगे जो जड़ें बढ़ेंगी वो इसी बोरी के अंदर बढ़ेंगी। बोरी से ढकने के बाद पेड़ के आसपास के गड्ढे को फिर से मिट्टी से भर दिया जाता है। चूंकि पेड़ को इस प्रकिया के दौरान चोट लगती है इसलिए पेड़ को फिर से सामान्य स्थिति में आने के लिए कुछ दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है। बारिश के मौसम में 15 दिनों में ही नई जड़ें आ जाती हैं लेकिन दूसरे मौसम में 45 दिन भी लग सकते हैं। 15 से 45 दिन के बाद पेड़ की बची हुई जड़ों पर भी इसी प्रक्रिया को दोहराया जाता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पेड़ों में अगर टेपरूट हो तो उसे नुकसान ना पहुंचे। इसके बाद जड़ से कटे इस पूरे पेड़ को एक बड़े मज़बूत थैले में रखा जाता है। इसके लिए 250 मीटर के U V stablised HDP बैग का भी प्रयोग हो सकता है। इस तरह के बैग में इन पेड़ों को 10 वर्षों तक रखा जा सकता है।पेड़ को इस बैग में रखने के बाद cocopeat को मिट्टी में मिलाकर बैग में रखना चाहिए।इस पेड़ को नर्सरी में भी रखा जा सकता है और फिर कभी भी इसे transplant कर सकते हैं।
वृक्ष प्रत्यारोपण और रामचंद्र अप्पारी की अनोखी पहल
कॉलेज के दिनों में रामचंद्र ने कृषि विषय में मास्टर्स डिग्री (Masters Degree) और ऐग्री बिज़नेस (Agri Business) में एमबीए (MBA) किया है। लेकिन उनकी नौकरी एक निजी सेक्टर बैंक में लगी। चार साल बैंक की नौकरी करने के दौरान हर समय उनका मन किसी दूसरे व्यवसाय में जाने को करता था। इसी कारण पेड़ों के बचाव और उनके सफल स्थानांतरण के लिए हैदराबाद के रामचंद्र अप्पारी ने ‘ग्रीन मोर्निंग हॉर्टिकल्चर सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड’ (Green Morning Horticulture Services Pvt. Ltd.) नाम की कंपनी बनाई है। इनकी कंपनी सरकार, निजी संस्थानों और आम नागरिकों को अपनी सेवाएँ देती है। इस कंपनी की स्थापना के पीछे एक दिलचस्प कहानी छुपी है।
2009 में एक दिन रामचंद्र हैदराबाद से विजयवाड़ा जा रहे थे, रास्ते में सड़क चौड़ी करने का काम चल रहा था, जिस वजह से अंधाधुंध पेड़ों की कटाई की जा रही थी। रामचंद्र के मन में यह विचार जागा कि इन पेड़ों की बेवजह कटाई को किसी भी कीमत पर रोकना चाहिए और वे इस विषय पर खूब पढ़ने लगे और फिर उन्होंने अपनी कंपनी की नींव रखी। अब तक इस कंपनी ने 90 से अधिक प्रजातियों के 5,000 पेड़ों को स्थानांतरित किया है। रामचंद्र का कहना है – सभी प्रजातियों का के बचाव की दर एक जैसी नहीं होती। मुलायम लकड़ी वाले बरगद, पीपल और गुलमोहर के पेड़ 90% बच जाते हैं, जबकि सख्त लकड़ी वाले नीम, इमली और टीक के पेड़ 60 -70% ही जीवित रहते हैं। 38 वर्षीय रामचंद्र अप्पारी का मानना है कि नये फ्लाई ओवर (Flyover) या अपार्टमेंट (Apartment) के निर्माण के लिए काटे जाने वाले पेड़ को दोबारा जीवनदान मिलने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2uGr6FH
2. https://homeguides.sfgate.com/uproot-tree-killing-32609.html
3. https://www.youtube.com/watch?v=Bc0OyTa6z7I
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Transplanting
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