गरुण पक्षी का इतिहास भारतीय पक्षियों में एक अलग ही महत्व रखता है, इनको भगवान विष्णु की सवारी माना जाता है और साथ ही साथ रामायण में भी गरुण को एक महत्वपूर्ण पक्षी के रूप में दिखाया गया है। वर्तमान समय में भारत में कई ऐसे पक्षी हैं, जो की पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुके हैं। ऐसे में गरुण भी एक ऐसा पक्षी है, जो की बड़े पैमाने पर विलुप्तता के शिखर पर खड़ा है। गरुण के कई रूप पूरे विश्व भर में पाए जाते हैं और भारत में भी इनकी कई प्रजातियाँ हैं।
इन्ही प्रजातियों में से एक प्रजाति है पल्स फिश (pallas fish) गरुण। इस लेख में हम इस पक्षी के विलुप्तता के बारे में पढेंगे और इनके वितरण तथा संरक्षण के लिए किये जाने वाले कार्यों की भी विवेचना करेंगे। पल्स फिश गरुण को समुद्री गरुण या बैंड टेल्ड फिश (band-tailed fish) गरुण के रूप में भी जाना जाता है। यह एक बड़े आकार का भूरे रंग वाला समुद्री गरुण है। यह गरुण उत्तरी भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, और भूटान आदि स्थानों में प्रजनन के लिए आता है। इस पक्षी को रेड लिस्ट (Red list) में विलुप्तप्राय पक्षियों की श्रंखला में रखा गया है। यह एक आंशिक प्रवासी पक्षी है, जो की समय के साथ अलग-अलग स्थानों पर निवास स्थापित करता है। इसके रंग और साज सज्जा की बात करें तो इसका चेहरा सफ़ेद और उस पर हल्के भूरे रंग की टोपी बनी हुई होती है, यह शरीर या पंख पर ज्यादा गहरे रंग का हो जाता है तथा पूँछ पर सफ़ेद और भूरे रंग की पट्टियाँ बनी हुई होती हैं। इसके पंख के निचले हिस्से में एक सफ़ेद पट्टी का भी होती है। यह पंखो के साथ 71-85 इंच तक का लम्बा हो सकता है। इन पक्षियों में मादा का वजन करीब 2 से 3 किलोग्राम का होता है और नर का 4 से 7 किलो तक का। इस पक्षी का मुख्य आहार ताजे पानी की मछली है और यह नियमित रूप से पानी के पक्षियों का भी शिकार करता है। यह पक्षी बहुत ज्यादा वजन का शिकार कर के भी उड़ सकता है। इस पक्षी की आबादी आज वर्तमान में अत्यंत कम है और यह पूरे विश्व में मात्र 2500 ही बचे हैं। इस पक्षी के विलुप्त होने का कारण है, जल संग्राहक स्थानों का छरण और शहरों की तेजी से होती वृद्धि। जलकुम्भी नामक फसल भी इस पक्षी के पतन का कारण है क्यूंकि यह पूरे तालाब में फ़ैल जाती है और पक्षियों को शिकार के लिए स्थान नहीं मिल पाता है। एक और कथन यह भी है की यह पक्षी बड़े क्षेत्र में प्रजनन नहीं कर सकते हैं और इनके प्रजनन के लिए निश्चित स्थान ही निर्धारित हैं, तो यह भी इनके विलुप्त होने का एक कारण है। यह पक्षी मेरठ के भी आस-पास के क्षेत्रों में भी पाया जाता है। अपनी शिकार की दुर्लभता तथा असमान्य जीवन शैली के कारण अलग अलग स्थानों में इसका निवास स्थान होता है। इसकी इसी जीवनशैली की वजह से ही यह एक रहस्यमयी प्रजाति के रूप में जानी जाती है। यह सर्दियों के महीने में प्रजनन करते हैं और गर्मियों में उत्तर की ओर पलायन कर जाते हैं। इस पक्षी के शिकार को पूर्ण रूप से रोक दिया गया है तथा इसके संरक्षण के लिए कई योजनाओं को भी क्रिन्यावित किया जा रहा है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.