फसलों के भारी नुकसान का कारण बनते हैं टिड्डे

मेरठ

 07-02-2020 09:00 AM
तितलियाँ व कीड़े

प्रकृति में जीवों की बहुत अधिक विविधता देखने को मिलती है। ये जीव किसी न किसी रूप में एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। दुनिया भर में जीवों की ऐसी कई प्रजातियां हैं जो एक दूसरे पर निर्भर रहते हुए भी एक दूसरे को लाभ पहुंचाती हैं, किंतु कई ऐसी भी हैं जो अन्य जीवों या वनस्पतियों को अत्यधिक हानि पहुंचाते हैं। टिड्डे या लोकस्ट (Locust) भी इन्हीं जीवों में से एक हैं जोकि एक्रिडिडे (Acrididae) परिवार से सम्बंधित हैं तथा छोटे सींग वाले ग्रासहॉपर (Grasshoppers) की कुछ प्रजातियों का संग्रह या समूह हैं। ये जीव प्रायः सामूहिक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं जिसके कारण इन्हें ग्रासहॉपर से भिन्न माना जाता है। ये कीड़े आमतौर पर एकान्त में रहना पसंद करते हैं, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में वे घना समूह बना लेते हैं और अपने व्यवहार तथा आदतों को बदल देते हैं, जिससे कि भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ग्रासहॉपर और इस प्रजाति के बीच कोई वर्गीकरण भेद नहीं है। जब ये अकेले होते हैं तो इन्हें ग्रासहॉपर कहा जाता है किंतु जब उपयुक्त परिस्थितियों में यह प्रजाति धीरे-धीरे झुंड बनाने लगती है तो इसे लोकस्ट की श्रेणी में रखा जाता है।

जब ग्रासहॉपर संख्या में कम होते हैं तो वे कृषि के लिए एक बड़ा आर्थिक खतरा उत्पन्न नहीं करते। हालांकि तेज़ी से वनस्पति विकास के बाद सूखे की उपयुक्त परिस्थितियों में इस जीव के दिमाग में सेरोटोनिन (Serotonin), आकस्मिक परिवर्तनों को उत्पन्न करता है। सेरोटोनिन एक मोनोअमीन न्यूरोट्रांसमिटर (Monoamine neurotransmitter) है, जोकि इस प्रकार के जीवों में खुशी की भावनाओं को उत्पन्न करने में सहायक है, हालांकि इसका वास्तविक जैविक कार्य जटिल और बहुक्रियाशील है। इस कारण ये जीव बहुतायत से प्रजनन करना शुरू कर देते हैं जिसके कारण उनकी आबादी पर्याप्त रूप से घनी हो जाती है। इस आबादी में पंखहीन शिशु, वयस्क होकर पंखयुक्त टिड्डे बन जाते हैं तथा समूह का रूप धारण कर लेते हैं। ये दोनों मिलकर पूरी कृषि भूमि में विचरण करने लगते हैं तथा खेतों और फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।

प्राचीन काल में इन्हें विनाश का प्रतीक भी माना जाता था और इसलिए इन्हें प्राचीन मिस्रियों के द्वारा उनकी कब्रों पर भी उकेरा गया था। इसके अलावा इन कीड़ों का वर्णन बाइबिल (Bible) और कुरान में भी मिलता है। यह जीव फसलों को बुरी तरह से नष्ट करता है तथा अकाल और मानव पलायन का एक महत्वपूर्ण कारण भी रहा है। इनकी मौजूदगी या भारी आबादी खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए एक अभूतपूर्व खतरा है। पाकिस्तान और सोमालिया में इनकी भारी संख्या तथा फसल नुकसान के कारण आपात स्थितियों की घोषणा भी की गयी थी। पिछले कुछ समय में इन्हें पश्चिमी और दक्षिणी एशिया और पूर्वी अफ्रीका के कई देशों में भी भारी संख्या में पाया गया था। इन देशों में भारत भी शामिल है, जहां राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों की खड़ी फसल को पाकिस्तान में रेगिस्तानी क्षेत्र से निकलने वाले टिड्डों के हमलों ने भारी नुकसान पहुंचाया। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) ने वर्तमान में इस कीट से अत्यधिक ग्रसित तीन हॉटस्पॉटों (Hotspots) की पहचान की है, जहां स्थिति को ‘बेहद खतरनाक’ माना गया है। ये स्थान हॉर्न ऑफ अफ्रीका (Horn of Africa), लाल सागर क्षेत्र (Red Sea area) और दक्षिण-पश्चिम एशिया (Southwest Asia) हैं।

ये जीव मुख्य रूप से फसलों की पत्तियों, फूल, फल, बीज, छाल और बढ़ते बिंदुओं को खा जाते हैं, और पौधों के भारी रुप से नष्ट कर देते हैं। टिड्डियों की चार प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं, डेज़र्ट लोकस्ट (Desert locust - Schistocerca gregaria), माइग्रेटरी लोकस्ट (Migratory locust - Locusta migratoria), बॉम्बे लोकस्ट (Bombay Locust - Nomadacris succincta) और ट्री लोकस्ट (Tree locust - Anacridium)। रेगिस्तानी टिड्डे को भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे विनाशकारी कीट माना जाता है। एक वर्ग किलोमीटर में फैला इनका एक झुंड एक दिन में 35,000 लोगों के भोजन के बराबर उपभोग करने में सक्षम है।

राजस्थान और गुजरात के विभिन्न जिलों में करीब 3.5 लाख हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्र की फसलें इनके कारण बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। 2019-20 में इस कीट के हमले से हुई फसल क्षति को भारत की सबसे खराब फसल क्षतियों में से एक माना जाता है। इन दोनों राज्यों में सरसों, जीरा और गेहूं की फसल बुरी तरह तबाह हुई, जिससे लाखों किसान प्रभावित हुए। फसलों को तबाह होने से बचाने के लिए 20वीं शताब्दी के प्रारंभ तक, कृषि भूमि की मिट्टी को बार-बार हटाया जाता था ताकि कीटों के अंडों को साफ किया जा सके। इसके अलावा इन्हें पकड़ने के लिए मशीनों (Machines) का भी उपयोग किया गया। 1950 के दशक तक, ऑर्गनोक्लोराइड डाइलड्रिन (Organochloride dieldrin) एक अत्यंत प्रभावी कीटनाशक के रूप में प्रयोग किया गया था, लेकिन बाद में पर्यावरण और खाद्य श्रृंखला की सुरक्षा को देखते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया गया।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2H3NQlO
2. https://thewire.in/agriculture/india-locust-attack-crop-damage-worst
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Locust
चित्र सन्दर्भ:-
1.
https://www.pxfuel.com/en/free-photo-qwcqj
2. https://libreshot.com/ants-in-anthill/

RECENT POST

  • आइए नजर डालें उत्तर भारतीय शादियों के कुछ रोमांचक दृश्यों पर
    सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

     03-12-2023 09:30 AM


  • फायदेमंद होकर भी हानिकारक क्यों है, रैट-होल खनन
    खदान

     02-12-2023 09:56 AM


  • हिंदू व जैन धर्म अपनाने वाले चालुक्य राजा कुमारपाल के साम्राज्य का विवरण,अपभ्रंश भाषा में
    ध्वनि 2- भाषायें

     01-12-2023 12:01 PM


  • फ्लोरा एन स्टील: ब्रिटिश शासित भारत में एक विपुल लेखिका जो समझती थीं भारत व् भारतीयों को
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     30-11-2023 10:36 AM


  • आधुनिक चित्रकला की स्वदेशी शैली ‘समीक्षावाद’ पर, मेरठ में छपी,रामचन्द्र शुक्ला की पुस्तक
    द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

     29-11-2023 09:52 AM


  • सरला ठकराल: बाधाओं को मात देकर आसमान छूने वाली एक भारतीय महिला
    सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

     28-11-2023 10:20 AM


  • गुरु नानक जी के अयोध्या यात्रा वर्णनों की राम जन्म भूमि विवाद को सुलझाने में अहम भूमिका
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     27-11-2023 10:01 AM


  • सुनें, स्वामी विवेकानन्द द्वारा 1893 में शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में दिए गए भाषण को
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     26-11-2023 09:32 AM


  • मेरठ के निकटवर्ती गढ़मुक्तेश्वर के गंगा तट पर महाभारत काल से लगता आया है कार्तिक मेला
    नदियाँ

     25-11-2023 10:01 AM


  • जीवन का वृक्ष: ब्रह्माण्ड के सभी जीव आपस में किस प्रकार जुड़े हुए हैं?
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     24-11-2023 10:35 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id