अस्तित्व को बनाए रखने के लिए घ्राण चेतना का होना है अत्यंत आवश्यक

मेरठ

 06-02-2020 02:00 PM
गंध- ख़ुशबू व इत्र

हम सब जानते हैं कि यदि हमारी आंखे बंद कर दी जायें तो हमें कुछ भी नहीं दिखायी देगा तथा हम परिचित चीज़ों को भी नहीं पहचान पायेंगे। किंतु यदि हमारे आस-पास कोई ऐसी वस्तु रख दी जाये जिसकी महक या गंध से हम परिचित हैं, तो उस वस्तु को न देखकर भी हम उसे आसानी से पहचान लेंगे। यह बताता है कि हमारे शरीर में जितनी अन्य ज्ञान-इंद्रियों की आवश्यकता है उतनी ही घ्राण इंद्री भी आवश्यक है। इसके माध्यम से ही हम जान पाते हैं कि कौन सी वस्तु सुगंधित है और कौन सी नहीं। किसी भी महक को सूंघने की क्षमता मानव समाज में एक निर्णायक भूमिका निभाती आ रही है, क्योंकि यह हमारे भोजन के स्वाद के साथ-साथ सुखद और अप्रिय पदार्थों की पहचान से भी जुड़ी हुई है। हमारी नाक में लगभग 40 लाख गंध कोशिकाएं हैं, जिन्हें लगभग 400 विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक गंध कोशिका केवल एक प्रकार के रिसेप्टर (Receptors) को वहन करती है जिसमें कि गंध या महक हवा के माध्यम से प्रवेश करती है तथा फिर कोशिका को सक्रिय करती है।

अधिकांश रिसेप्टर्स एक से अधिक गंध का पता लगा सकते हैं, लेकिन एक रिसेप्टर जिसे OR7D4 कहा जाता है केवल एक बहुत विशिष्ट गंध एंड्रॉस्टीनोन (Androstenone) का ही पता लगाने में सक्षम है। इस गंध को सूअरों द्वारा उत्पादित किया जाता है जोकि सूअर के मांस में पायी जाती है। हर व्यक्ति के जीन में OR7D4 रिसेप्टर का उत्पादन करने वाला अलग डीएनए (DNA) अनुक्रम होता है, इसलिए हर यक्ति की प्रतिक्रिया इस गंध के प्रति अलग-अलग होती है। कुछ को यह गंध अच्छी तो कुछ को गंदी लगती है जबकि कई ऐसे भी हैं जिन्हें यह गंध महसूस ही नहीं होती। एक शोध में पाया गया कि, क्योंकि विभिन्न आबादी में अलग-अलग जीन अनुक्रम होते हैं इसलिए इस यौगिक को सूंघने की क्षमता में भी अंतर होता है। उदाहरण के लिए अफ्रीका की आबादी इसे सूंघने में सक्षम है, जबकि उत्तरी गोलार्ध के लोग इसे सूंघने में सक्षम नहीं। इससे पता चलता है कि जब मानव पहली बार अफ्रीका में विकसित हुआ था, तो वह इस गंध को पहचानने में सक्षम था।

दुनिया भर से OR7D4 जीन के विभिन्न रूपों की आवृत्तियों के सांख्यिकीय विश्लेषण ने सुझाव दिया कि जीन के विभिन्न रूप प्राकृतिक चयन के अधीन हो सकते हैं। इस चयन की एक संभावित व्याख्या यह है कि हमारे पूर्वज सूंअरों को पालने के बाद भी एंड्रॉस्टीनोन की गंध से अपरिचित थे या इसे सूंघने में असमर्थ थे। सूअरों को शुरू में एशिया में पालतू बनाया गया था, जहां के लोगों के जीन में एंड्रॉस्टीनोन के प्रति संवेदनशीलता बहुत कम होती है तथा ऐसे लोगों की आवृत्ति उच्च है। इसी प्रकार से दो विलुप्त मानव आबादी, निएंडरथाल (Neanderthals) और डेनिसोवन (Denisovans) के प्राचीन डीएनए से भी OR7D4 जीन का अध्ययन किया गया। जिससे पता चला कि निएंडरथल के लोग एंड्रॉस्टीनोन को सूंघने में सक्षम थे। किंतु डेनिसोवन (जिन्हें केवल एक दांत और एक फिंगर बोन (Finger bone) के लिए जाना जाता था) के डीएनए में एक अनोखा उत्परिवर्तन देखा गया जिसने OR7D4 रिसेप्टर की संरचना बदल दी थी। शोध में पता चला कि उत्परिवर्तन के बावजूद, भी डेनिसोवन आबादी शुरुआती मानव पूर्वजों की तरह ही इस अजीब गंध को पहचानने में सक्षम थी।

इस शोध से पता चलता है कि हमारे जीनों के वैश्विक अध्ययन कैसे इस बात की जानकारी दे सकते हैं कि, विभिन्न खाद्य पदार्थों के लिए हमारा स्वाद कैसे हमारी सूंघने की क्षमता में परिवर्तन से प्रभावित हो सकता है। किसी वस्तु को सूंघने या अनुभव करने की क्षमता हमारी विशेष संवेदी कोशिकाओं से उत्पन्न होती है, जिसे घ्राण संवेदी न्यूरॉन्स (Olfactory sensory neurons) कहा जाता है। महक के अणु, नाक गुहा की घ्राण उपकला में मौजूद घ्राण रिसेप्टर्स (Olfactory receptors) द्वारा पहचाने जाते हैं। प्रत्येक प्रकार का रिसेप्टर, न्यूरॉन्स के एक सबसेट (Subset) के साथ प्रदर्शित होता है, जिससे रिसेप्टर सीधे मस्तिष्क में घ्राण बल्ब (Olfactory bulb) से जुड़ते हैं। अधिकांश कशेरुकियों में अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए घ्राण चेतना (Olfaction) का होना अत्यंत आवश्यक है। कशेरुकी प्रजातियों में घ्राण रिसेप्टर जीन (Olfactory receptor gene) की संख्या में बहुत अधिक भिन्नता मौजूद होती है। यह विविधता उन व्यापक वातावरणों पर आधारित है, जहां जीव निवास करते हैं। उदाहरण के लिए, डॉल्फ़िन (Dolphin) में अधिकांश स्तनधारियों की तुलना में जीन्स का काफी छोटा उपसमूह होता है। घ्राण रिसेप्टर जीन प्रतिरूप अन्य इंद्रियों के संबंध में भी विकसित हुए हैं। जैसे कि उच्च प्राइमेट्स (Primates), जिनमें अत्यंत विकसित दृष्टि प्रणाली (Vision systems) होती है, में भी कम संख्या में घ्राण रिसेप्टर जीन मौजूद होते हैं। इस प्रकार घ्राण रिसेप्टर जीन के विकासवादी परिवर्तनों की जांच करना इस बात की उपयोगी जानकारी प्रदान कर सकता है कि, कैसे जीनोम (Genomes) पर्यावरणीय परिवर्तनों के लिए प्रतिक्रिया करते हैं।

गंध संवेदनशीलता में अंतर भी घ्राण तंत्र की संरचना पर निर्भर है। कशेरुकियों में घ्राण प्रणाली की सामान्य विशेषताएं या लक्षण अत्यधिक संरक्षित हैं तथा विकास के दौरान अन्य संवेदी प्रणालियों की ही तरह घ्राण प्रणाली में भी स्पष्ट रूप से कई मामूली बदलाव आये हैं। फाइलोजेनेटिक (Phylogenetic) विश्लेषण से पता चला है कि, कशेरूकियों में कम से कम तीन विशिष्ट घ्राण उप-प्रणालियां (Olfactory subsystems) व्यापक रूप से सुसंगत हैं और चौथी सहायक या गौण प्रणाली केवल टेट्रापोड्स (Tetrapods) में उत्पन्न हुई है। हमारा मस्तिष्क हमारी नाक में मौजूद न्यूरॉन्स (Neurons) से संकेत प्राप्त करता है तथा प्रत्येक प्रकार की गंध के लिए एक विशिष्ट पहचान बनाता है। और इसलिए हम विभिन्न गंधों की एक विशाल संख्या के बीच अंतर कर पाते सकते हैं। वैज्ञानिकों ने मानव जीनोम में 390 विभिन्न जीनों की पहचान की है जो घ्राण रिसेप्टर्स को एनकोड (Encode) करते हैं। मानव जीनोम में अन्य 468 घ्राण रिसेप्टर जीन होते हैं जिन्हें न्यूरॉन्स रिसेप्टर बनाने के लिए उपयोग नहीं कर सकते। इन्हें स्यूडोजीन्स (Pseudogenes) के रूप में जाना जाता है। ये स्यूडोजीन्स उत्परिवर्तन का करण बनते हैं जिससे कि न्यूरॉन अपने अनुक्रम को प्रोटीन (Protein) में अनुवादित नहीं कर पाते।

विकासवादी इतिहास को देखने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि हमारे घ्राण रिसेप्टर्स, लांसलेट्स (Lancelets) जानवरों में भी मौजूद थे। भले ही इनमें नाक के समान कोई संरचना नहीं थी लेकिन फिर भी इनमें लगभग 40 घ्राण रिसेप्टर जीन मौजूद थे। तथा यह संभव है कि वे नाक के बदले अपने पूरे शरीर का उपयोग अपने आसपास के पानी से गंध के अणुओं को उठाने के लिए करते थे। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने उभयचरों में भी घ्राण रिसेप्टर जीन की मौजूदगी पायी।

संदर्भ:
1.
https://www.nationalgeographic.com/science/phenomena/2013/12/11/the-smell-of-evolution/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Evolution_of_olfaction
3. https://www.sciencedaily.com/releases/2015/07/150702112110.htm
चित्र सन्दर्भ:-
1.
https://commons.wikimedia.org/wiki/File:A_curious_child,_smelling_flower,_India.jpg
2. https://c.pxhere.com/photos/e4/88/adult_beauty_face_female_flower_fresh_girl_isolated-1258767.jpg!d
3. https://www.piqsels.com/en/search?q=petal&page=199

RECENT POST

  • चलिए अवगत होते हैं, भारत में ड्रॉपशिपिंग शुरू करने के लिए लागत और ज़रूरी प्रक्रियाओं से
    संचार एवं संचार यन्त्र

     15-01-2025 09:30 AM


  • आध्यात्मिकता, भक्ति और परंपरा का संगम है, कुंभ मेला
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     14-01-2025 09:26 AM


  • भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लचीलेपन का श्रेय जाता है, इसके मज़बूत डेयरी क्षेत्र को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     13-01-2025 09:26 AM


  • आइए, आज देखें, भारत में पोंगल से संबंधित कुछ चलचित्र
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-01-2025 09:30 AM


  • जानिए, तलाक के बढ़ते मामलों को कम करने के लिए, कुछ सक्रिय उपायों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     11-01-2025 09:26 AM


  • इस विश्व हिंदी दिवस पर समझते हैं, देवनागरी लिपि के इतिहास, विकास और वर्तमान स्थिति को
    ध्वनि 2- भाषायें

     10-01-2025 09:31 AM


  • फ़िनलैंड के सालाना उपयोग से अधिक विद्युत खपत होती है, क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग में
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     09-01-2025 09:27 AM


  • आइए जानें, भारत और अमेरिका की न्यायिक प्रणाली के बीच के अंतरों को
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     08-01-2025 09:26 AM


  • आइए जानें, हमारी प्रगति की एक प्रमुख चालक, बिजली के व्यापार के बारे में
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     07-01-2025 09:43 AM


  • भारत में परमाणु ऊर्जा का विस्तार: स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक सशक्त कदम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     06-01-2025 09:30 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id