क्या कृषि क्षेत्र में है एक और क्रान्ति की मांग?

मेरठ

 31-01-2020 12:00 PM
स्वाद- खाद्य का इतिहास

सभी जीवों को अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है और इसलिए वे विभिन्न प्रकार के अनाज का सेवन आहार के रूप में करते हैं। गेंहू भी आज मानव की आवश्यकता बन चुका है। जंगली घास के अनाजों या बीजों की बार-बार जुताई, कटाई और बुवाई से गेंहू के घरेलू उपभेदों का निर्माण हुआ है, क्योंकि किसानों द्वारा गेहूं के उत्परिवर्तित रूपों को प्राथमिकता से चुना गया। घरेलू गेहूं में, अनाज बड़े होते हैं, तथा कटाई के दौरान बीज एक कठोर पुष्पक्रम (Rachis) के द्वारा बाली (ear) से जुड़े रहते हैं। जंगली उपभेदों में, अधिक मुलायम पुष्पक्रम, बाली को आसानी अलग कर देता है। गेहूँ की खेती लगभग 8000 ईसा पूर्व के बाद फर्टाइल क्रीसेंट (Fertile crescent – वर्तमान मध्य पूर्व क्षेत्र) से बाहर फैलने लगी थी। जेरेड डायमंड (Jared Diamond) के अनुसार लगभग 8800 ईसा पूर्व से कुछ समय पहले फर्टाइल क्रीसेंट में शुरू हुई गेंहू की एमर (Emmer) किस्म का पता लगाया था।

पुरातात्विक विश्लेषण से पता चलता है कि जंगली एमर की खेती 9600 ईसा पूर्व पहले पहली बार दक्षिणी लेवेंट (Levant) में की गयी थी। इसी प्रकार जंगली एइकॉर्न (Einkorn) गेहूं के आनुवंशिक विश्लेषण से पता चलता है कि यह पहली बार दक्षिणपूर्वी तुर्की के कराकाडाग (Karacadag) पर्वत में उगाया गयी थी। कराकाडाग रेंज के पास कई स्थानों से पाये गये हार्वेस्टेड (Harvested) एमर के अवशेष नवपाषाण काल के बीच के हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में एमर गेंहू की खेती 6500 ईसा पूर्व से की जाने लगी थी। इसी दौरान यह खेती ग्रीस (Greece) और सिप्रस (Cyprus) में भी की जाने लगी। गेंहू की इस किस्म की खेती 6000 ईसा पूर्व के बाद मिस्र में तथा 5000 ईसा पूर्व में जर्मनी (Germany) और स्पेन (Spain) पहुंची। 3000 ईसा पूर्व तक, गेहूं की खेती ब्रिटिश (British) द्वीपों और स्कैंडिनेविया (Scandinavia) में भी की जाने लगी। एशिया (Asia) में फैलने के बाद गेंहू की खेती ने अपना विस्तार पूरे यूरोप (Europe) में किया।

भारत में यदि देखा जाये तो गेंहू तथा इससे बने उत्पादों को किसी न किसी रूप में आहार के साथ शामिल किया जाता है तथा अच्छी गुणवत्ता वाले गेंहू के उत्पादन हेतु गेंहू की नयी और संकर किस्मों का भी उपयोग किया जाता है। गेंहू की नयी किस्मों को व्यापक रूप से उगाने की शुरूआत मुख्यतः हरित क्रांति के परिणामस्वरूप हुई थी। इस क्रांति ने पूरे भारत में खाद्य उत्पादन को प्रभावित किया। यह क्रांति मुख्य रूप से 1950 और 1960 के बीच कृषि क्षेत्र में हुए शोध विकास, तकनीकी परिवर्तन आदि की श्रृंखला को संदर्भित करती है, जिसकी वजह से पूरे विश्व में कृषि उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई। इसने भारत सहित अन्य विकासशील देशों को खादान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया तथा उच्च उत्पादक क्षमता वाले संकरित बीजों, आधुनिक उपकरणों तथा कृत्रिम खादों एवं कीटनाशकों का प्रयोग कर लाखों लोगों को भुखमरी की अवस्था से बचाया।

1961 में, भारत बड़े पैमाने पर अकाल की कगार पर था तथा इस स्थिति से बचने के लिए भारत के तत्कालीन कृषि मंत्री डॉ एम. एस. स्वामीनाथन के सलाहकार द्वारा हरित क्रांति के जनक नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug) को भारत में आमंत्रित किया गया। फोर्ड फाउंडेशन (Ford Foundation) और भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र (CIMMYT) से गेहूं के बीज आयात करने के लिए सहयोग किया। क्योंकि पंजाब विश्वसनीय जल आपूर्ति और कृषि सफलता के इतिहास के कारण प्रसिद्ध था, इसलिए नई फसलों को उत्पादित करने हेतु पहले क्षेत्र के रूप में भारत सरकार द्वारा पंजाब को चुना गया।

भारत ने पादप प्रजनन, सिंचाई विकास और कृषि के वित्तपोषण के लिए अपना स्वयं का हरित क्रांति कार्यक्रम शुरू किया। भारत ने जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) द्वारा विकसित चावल की अर्ध-बौनी किस्म को अपनाया जोकि कुछ उर्वरकों और सिंचाई के साथ अधिक अनाज का उत्पादन कर सकती थी। 1968 में, भारतीय कृषिविद् एस. के. डे दत्ता ने अपने निष्कर्षों को प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने बताया कि IR8 चावल में बिना किसी उर्वरक के लगभग 5 टन प्रति हेक्टेयर और इष्टतम परिस्थितियों में लगभग 10 टन प्रति हेक्टेयर उपज होती है। यह पारंपरिक चावल की उपज का 10 गुना था। 1960 के दशक में, भारत में चावल की पैदावार लगभग 2 टन प्रति हेक्टेयर थी जोकि 1990 के दशक के मध्य तक, प्रति हेक्टेयर 6 टन तक बढ़ी। इस क्रांति के तहत मक्का, गेहूं, और चावल की उच्च उपज वाली किस्मों का अत्यधिक उत्पादन किया गया।

भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या वृद्धि के चलते भोजन की अत्यधिक मांग बढ़ रही है। किंतु जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादकता कम होती नज़र आ रही है। भारत विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) की चपेट में है जो कृषि उत्पादकता को बहुत अधिक प्रभावित कर रहा है। एशियाई विकास बैंक (ADB) और पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (Potsdam Institute for Climate Impact Research) के शोध के अनुसार, इस सदी के अंत तक प्रायद्वीप में तापमान 6° सेल्सियस तक बढ़ सकता है। जिसके कारण दक्षिणी राज्यों में, चावल की पैदावार 2030, 2050 और 2080 के दशक तक क्रमशः 5%, 14.5% और 17% तक घट सकती है। भोजन की कमी से दक्षिण एशिया में कुपोषित बच्चों की संख्या में 70 लाख की वृद्धि होने की उम्मीद है। उच्च तापमान अधिकांशतः चावल और गेहूं के पोषण मूल्य में बाधा डालते हैं।

एक अध्ययन के अनुसार, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) के अधिक स्तर से प्रोटीन (Protein) की कमी हो सकती है। कुछ दशकों में, 5.34 करोड़ भारतीयों को प्रोटीन की कमी का खतरा हो सकता है और इसलिए कृषि में तेज़ी से निवेश करने का सुझाव दिया जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग अनाज उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है इसलिए भारत को एक पोषण क्रांति की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा तथा पानी की कमी के संयुक्त प्रभावों से बचने के लिए आवश्यक है कि कृषि प्रणालियों पर मौलिक रूप से पुनर्विचार किया जाए। 2008 के वैश्विक खाद्य मूल्य संकट के बाद, कई विकासशील देशों ने नई खाद्य सुरक्षा नीतियों को अपनाया है और अपनी कृषि प्रणालियों में महत्वपूर्ण निवेश किया है। वैश्विक भूख भी वापस अंतर्राष्ट्रीय कार्यसूची में शीर्ष पर है। कृषि पारिस्थितिकी, स्थायी कृषि के अध्ययन, डिज़ाइन (Design) और प्रबंधन के अनुप्रयोग, इस चुनौती को पूरा करने के लिए कृषि विकास का एक मॉडल (Model) प्रदान करते हैं। एक शोध से पता चला है कि यह दुनिया भर में लगभग 50 करोड़ खाद्य-असुरक्षित घरों को फायदा पहुंचाएगा। इसके अभ्यास को बढ़ाकर, कमज़ोर लोगों की आजीविका में सुधार किया जा सकता है।

संदर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Wheat#Origin_and_history
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Green_Revolution
3. https://bit.ly/2RZwgEm
4. https://www.thesolutionsjournal.com/article/the-new-green-revolution-how-twenty-first-century-science-can-feed-the-world/
5. https://www.harvardmagazine.com/2018/03/sustainable-agriculture-and-food-security
चित्र सन्दर्भ:-
1.
https://www.pexels.com/photo/close-up-of-wheat-326082/
2. https://www.pexels.com/photo/agricultural-agriculture-blur-close-up-539855/
3. https://pixnio.com/media/green-leaves-organic-wheatfield-rural-grain
4. https://www.pxfuel.com/en/free-photo-jsrxd
5. https://pxhere.com/en/photo/636447
6. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Woman_harvesting_wheat,_Raisen_district,_Madhya_Pradesh,_India_ggia_version.jpg
7. https://pixabay.com/hu/photos/paddy-betakar%C3%ADt%C3%A1s-boglya-sz%C3%A9na-207964/
8. https://www.youtube.com/watch?v=kyPapjWBAHw
9. https://www.youtube.com/watch?v=NOGHfF6Jm6k
10. https://www.youtube.com/watch?v=Z40x3SqEIZ4

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