प्रकृति ने हमें ऐसे बहुत से फलों और सब्ज़ियों का उपहार दिया है जो हमें स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ‘लीची’ भी इन्हीं में से एक है जिसे वैज्ञानिक तौर पर लीची चिनेंसिस (Litchi chinensis) कहा जाता है। यह मूल रूप से दक्षिण पूर्व एशिया का फल है जो एक सदाबहार पेड़ पर लगता है। सपिंडेशिए (Sapindaceae) परिवार से सम्बंधित यह फल प्राचीन काल से कैंटोनीज़ (Cantonese)(कैंटोनीज़, गुआंगज़ौ (Guangzhou) शहर में रहने वाली चीनी मूल के निवासियों को कहते हैं।) का पसंदीदा फल रहा है जिसे आमतौर पर या तो ताज़ा खाया जाता है या फिर डिब्बाबंद कर और सुखा कर। भीतरी गूदा सुगंधित तथा स्वाद अम्लीय और बहुत मीठा होने के कारण इसे अधिकतर स्थानों में पसंद किया जाता है। चीन और भारत में इसका उत्पादन व्यावसायिक रूप से किया जाता है। पश्चिमी दुनिया में इसकी शुरूआत 1775 में जमैका (Jamaica) पहुंचने के बाद हुई थी तथा फल को व्यावसायिक महत्व फ्लोरिडा (Florida) में प्राप्त हुआ। कुछ हद तक इसके पेड़ को दक्षिण अफ्रीका (South Africa) और हवाई (Hawaii) के आस-पास के क्षेत्रों में भी उगाया गया।
इस फल का आकार अंडाकार तथा रंग लाल है जिसका व्यास लगभग 25 मिमी (1 इंच) तक हो सकता है। यह एक उप-उष्णकटिबंधीय फल है जो नम उपोष्णकटिबंधीय जलवायु के तहत उपयुक्त वृद्धि करता है। यह प्रायः 800 मीटर तक की ऊँचाई पर उग सकता है। गहरी, अच्छी तरह से सूखी, कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध तथा पीएच (pH) स्तर 5.0-7.0 वाली दोमट मिट्टी इसके लिए आदर्श मिट्टी होती है। इसे उगाने के लिए तापमान गर्मियों में 40.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तथा सर्दियों में हिमांक बिंदु से नीचे नहीं जाना चाहिए। लीची बाज़ार में उच्च मूल्यों को प्राप्त करने वाले सबसे स्वादिष्ट फलों में से एक है, जिसकी वजह से इसे उगाने वाले क्षेत्रों में भी कई गुना वृद्धि हुई है।
2013-14 के दौरान भारत में लीची का उत्पादन 84,170 हेक्टेयर क्षेत्र में 5,85,300 टन किया गया जिसके साथ भारत चीन के बाद दुनिया में लीची का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बना। इस प्रकार वैश्विक स्तर पर लीची उत्पादन में भारत ने दूसरा स्थान प्राप्त किया। बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और असम जैसे राज्यों में देश का कुल 64.2% लीची उत्पादन किया जाता है। भारत के अन्य लीची उत्पादक राज्य छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पंजाब, ओडिशा, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर हैं। 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार सबसे अधिक लीची उत्पादन बिहार में किया गया। इन क्षेत्रों में लीची की अनेक किस्में उगायी जाती हैं जिनमें बम्बैय्या, इलाइची, मुज़फ्फरपुर, शाही, चीनी, पूर्बी और कसाब आदि शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश में मेरठ को लीची का एक महत्वपूर्ण उत्पादक माना जाता है। व्यावसायिक स्तर पर लीची के उत्पादन को उन्नत बनाने के लिए बेहतर गुणवत्ता वाली लीची प्राप्त करने हेतु इस पर कई शोध किये जा सकते हैं, किंतु बहुत कम अवधि के लिए फलों की उपलब्धता इसके आनुवंशिक आधार को संकीर्ण बनाती है। इसके अलावा कुशल रोपण प्रणाली का अभाव, उचित पानी और पोषक तत्व प्रबंधन का अभाव, गुणवत्ता वाले रोपण सामग्री की अनुपलब्धता इत्यादि समस्याएं भी इसके समक्ष हैं। आमतौर पर वनस्पति प्रसार विधि (Vegetative propagation) द्वारा लीची में प्रजनन होता है किंतु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए पारंपरिक और आणविक मार्कर-सहायक (Molecular marker-assisted) विधियों द्वारा प्रजनन किया जा रहा है। लीची में पौधों के प्रजनकों द्वारा पारंपरिक रूप से विभिन्न संकर किस्में उत्पन्न की गयी हैं। लेकिन कठिन प्रक्रिया, लिंकेज ड्रैग (Linkage drag), निम्न प्रजनन क्षमता, फूलने और फलने की लम्बी अवधि आदि के कारण ये पारंपरिक तरीके लीची की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए उपयोग नहीं किए जाते हैं। इस स्थिति में पौधों में आनुवंशिक परिवर्तन फसलों के आधुनिक आणविक प्रजनन में अत्यंत सहायक विधि हो सकती है। इसके द्वारा अलग-अलग पौधों के बीच जीन (Genes) का स्थानांतरण किया जाता है जिससे आनुवंशिक रूप से संशोधित प्रजातियां प्राप्त होती हैं। आनुवंशिक रूप से संशोधित प्रजातियों में बेहतर कृषि संबंधी लक्षण, बेहतर पोषण मूल्य, रोग प्रतिरोधी क्षमता, कीट सहिष्णुता और अन्य वांछनीय विशेषताएं होती हैं। जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic engineering) तकनीक के ज़रिए लीची की प्रजाति में कई वांछनीय लक्षणों की प्राप्ति की जा सकती है।
संदर्भ:
1. https://www.britannica.com/plant/litchi-fruit
2. https://www.nrclitchi.org/uploads/litchi-scenario-10-2-2016.pdf
3. https://bit.ly/2uFTdon
4. https://bit.ly/2uJytMt
चित्र सन्दर्भ:
1. https://pixnio.com/flora-plants/lychees-litchi-chinensis
2. https://www.needpix.com/photo/987420/litchi-fruit
3. https://www.flickr.com/photos/mmmavocado/2372232265
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