जीवन के हर पहलू से जुड़ा है पाई

मेरठ

 25-01-2020 10:00 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

मानव जीवन कई गणितीय पहलुओं से जुड़ा हुआ है। इन गणितीय पहलुओं में कई चिह्नों या प्रतीकों का उपयोग किया जाता है जिनकी अपनी-अपनी महत्ता है। पाई (pi - π) भी इन्हीं प्रतीकों में से एक है, जिसका प्रयोग केवल गणितीय अध्ययन में ही नहीं बल्कि विज्ञान की कई शाखाओं में भी किया जाता है। एक प्रकार से यह एक गणितीय स्थिरांक है जिसे मूल रूप से एक वृत्त की परिधि और व्यास के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है। अक्सर हमें यह π = 22/7 के रूप में दिखायी देता है। पाई की अन्य विभिन्न समतुल्य परिभाषाएँ हैं जिनका प्रयोग गणित और भौतिकी में प्रयोग किये जाने वाले कई सूत्रों में किया जाता है। इसका मान लगभग 3.14159 के बराबर है।

18वीं शताब्दी के मध्य से पाई को ग्रीक अक्षर "π" के द्वारा दर्शाया जा रहा है, हालांकि इसे कभी-कभी ‘pi’ के रूप में भी अभिव्यक्त किया जाता है। इस स्थिरांक को आर्किमिडीज़ स्थिरांक (Archimedes’ constant) के नाम से भी जाना जाता है। एक अपरिमेय संख्या होने की वजह से π को एक सामान्य खंड के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता। फिर भी, 22/7 और अन्य परिमेय संख्याओं का उपयोग आमतौर पर लगभग π के मान के लिए किया जाता है। पाई के अंक अनुक्रम को एक विशिष्ट प्रकार की सांख्यिकीय यादृच्छिकता को संतुष्ट करने के लिए अनुमानित किया गया है, लेकिन आज तक, इसका कोई प्रमाण नहीं खोजा जा सका है।

इसके अलावा, पाई ट्रान्सेंडैंटल (Transcendental) संख्या भी है, अर्थात यह परिमेय गुणांक वाले किसी भी बहुपद का वर्गमूल नहीं है। प्राचीन सभ्यताओं को व्यावहारिक कारणों के लिए काफी सटीक गणना वाले मूल्यों की आवश्यकता थी, जिनमें मिस्र और बेबीलोन के लोग शामिल थे। 250 ईसा पूर्व के आसपास ग्रीक गणितज्ञ आर्किमिडीज़ ने इसकी गणना के लिए एक एल्गोरिथ्म (Algorithm) बनाया। 5वीं शताब्दी ईस्वी में चीनी गणित ने, ज्यामितीय तकनीकों का उपयोग करते हुए पाई के सात अंकों का अनुमान लगाया, जबकि भारतीय गणित ने ज्यामितीय तकनीकों का उपयोग करते हुए केवल पांच अंकों का अनुमान लगाया।

20वीं और 21वीं शताब्दी में, गणितज्ञों और कंप्यूटर वैज्ञानिकों ने नए दृष्टिकोणों की खोज की जिसमें पाई के दशमलव प्रतिरूप को दशमलव बिंदु के बाद कई खरब अंकों तक बढ़ा दिया गया। गणित में पाई को एक दिलचस्प संख्या के रूप में देखा जाता है। इसका प्रयोग ज्यामिति, त्रिकोणमिति, विश्लेषण आदि में किया जाता है। पाई के मान को ज्ञात करने में भारतीय गणितज्ञों की विशेष भूमिका रही है। किसी वृत्त की परिधि उसके व्यास के अनुपात में बढ़ती है, इस बात की खोज सबसे पहले भारतीय गणितज्ञों ने ही की थी। इसलिए, पूर्वजों ने इसे प्रदर्शित करने के लिए एक संबंध (परिधि / व्यास = स्थिरांक) स्थापित किया, हालांकि उन्होंने इस सम्बंध को पाई नहीं कहा। चूँकि सिंधु घाटी की लिपि की व्याख्या नहीं की गयी थी, इसलिए यह दावा नहीं किया जा सकता है कि, उपमहाद्वीप में 3000 ई.पू. में पाई को जाना जाता था। लेकिन ऋग्वेद लिखे जाने तक उन्हें पाई के मूल्य का पता चल चुका था। वेदांगों और सुलभसूत्रों में भी पाई का उल्लेख है। कई अन्य सुलभसूत्रों में पाई के मान भिन्न-भिन्न दिये गये हैं। आर्यभट्ट के साथ, भारत में गणित के एक नए युग की शुरुआत हुई तथा आर्यभट्ट ने पाई का मान = 62832/20000 = 3.1416 दिया। आश्चर्यजनक रूप से यह 4 दशमलव स्थानों के लिए सही साबित हुआ। पाई के भारतीय मूल्य (√10, 62832/20000) बाद में चीनी और अरब साहित्य में शामिल किए गए।

पाई इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका सही मूल्य स्वाभाविक रूप से अनजाना है। इसकी सर्वव्यापकता गणित से भी परे है। यह प्राकृतिक दुनिया में हर प्रकार से समाहित है। ब्रह्मांड में ऐसी कई चीजें हैं जो वृत्ताकार हैं जैसे सूरज, आंख की पुतली आदि। इन सभी को सही तरह से जानने के लिए पाई को भी जानना आवश्यक है। भौतिकी में पाई न दिखाई देने वाली तरंगों का वर्णन करता है, जैसे प्रकाश और ध्वनि की तरंग। इसकी आवश्यकता उस समीकरण के लिए भी है जो यह परिभाषित करता है कि हम ब्रह्मांड की स्थिति को कितनी सटीकता से जान सकते हैं।

संदर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Pi
2. https://www.livescience.com/34132-what-makes-pi-special.html
3. https://souravroy.com/2011/01/07/pi-in-indian-mathematics/
4. https://www.newyorker.com/tech/annals-of-technology/pi-day-why-pi-matters

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id