हमारी धरती पर कई ऐसे जीव मौजूद हैं जो अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आसानी से खुद को ढाल लेते हैं तथा उन स्थानों में भी वृद्धि करते हैं, जहां जीवन सम्भव नहीं। इन जीवों में वे जीव भी शामिल हैं जो महासागरों में बहुत अधिक गहरे तल पर निवास कर रहे हैं अर्थात, वे स्थान जहां वातावरणीय दबाव बहुत अधिक तथा पानी अत्यधिक ठंडा और अंधकारमय है। फिर भी ये जीव किसी तरह से इस चरम वातावरण में खुद को बनाए रखने में सफल हुए हैं। पानी की गहराई जैसे-जैसे बढ़ती जाती है वैसे-वैसे जीवों की संख्या बहुत कम होने लगती है। इन गहराईयों में पाये जाने वाले जीवों में अत्यंत विशिष्टता पायी जाती है। गहरे समुद्र में रहने वाले कुछ जानवर समुद्र की ऊपरी परतों से मृत जीवों के क्षयकारी टुकड़ों पर भी निर्भर रहकर जीवित रहते हैं। अपने प्रोटीन (Protein) को बाहर निकलने से रोकने के लिए, ये जीव अपनी कोशिकाओं में पीज़ोलाइट्स (Piezolytes) नामक छोटे कार्बनिक अणुओं को इकट्ठा करते हैं।
गहरे तल में पायी जाने वाली अत्यंत समृद्ध विविधता से हर कोई आश्चर्यचकित हो सकता है। इन जीवों में गहरे समुद्र में रहने वाली मछलियाँ जैसे स्टाऊट ब्लेक्स्मेल्ट (Stout blacksmelt), ट्राइपॉडफ़िश (Tripodfish) शामिल हैं। स्टाऊट ब्लेक्स्मेल्ट की विशाल आँखें होती हैं ताकि वे अंधेरे पानी में देख सकें। इसी प्रकार से ट्राइपोडफ़िश में लम्बे पंख होते हैं जो उसे समुद्र तल पर विचरण करने तथा अपने शिकार को स्पर्श करने में सहायता करते हैं। इनमें से कई जीव बायोलुमिनेसेंस (Bioluminescence) नामक एक प्रक्रिया के द्वारा अपने स्वयं के प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं। लैंटर्नफिश (Lanternfish) में इस प्रकाश का उपयोग साथियों या शिकार को आकर्षित करने के लिए किया जाता है। यह प्रक्रिया एक रासायनिक अभिक्रिया के माध्यम से होती है जो एक जीव के शरीर के भीतर प्रकाश ऊर्जा पैदा करती है।
इस अभिक्रिया के लिए जीव के शरीर में लूसिफ़ेरिन (Luciferin) अणु होना चाहिए। जब यह अणु ऑक्सीजन (Oxygen) के साथ अभिक्रिया करता है तो प्रकाश उत्पन्न करता है। लूसिफ़ेरिन के विभिन्न प्रकार होते हैं जो प्रतिक्रिया की मेज़बानी करने वाले जानवर पर आधारित होते हैं। कई जीव ल्यूसिफरेज़ (Luciferase) उत्प्रेरक का भी उत्पादन करते हैं, जो प्रतिक्रिया को तीव्र करने में मदद करता है। जीव इस अभिक्रिया या प्रकाश उत्सर्जन को नियंत्रित भी कर सकते हैं। इसके अलावा वे प्रकाश की तीव्रता और रंग का भी चुनाव स्वयं कर सकते हैं। बायोलुमिनेसेंस कई समुद्री जीवों में पाया जाता है जैसे जीवाणु, शैवाल, जेलिफ़िश (Jellyfish), कीड़े, क्रस्टेशियन (Crustaceans), समुद्री सितारे, मछली और शार्क इत्यादि। मछली की लगभग 1,500 ज्ञात प्रजातियां ऐसी हैं जिनमें बायोलुमिनेसेंस की प्रक्रिया होती है। कुछ जीव यह क्षमता हासिल करने के लिए उन जीवाणुओं या जीवों का भोग करते हैं जिनमें यह प्रकिया स्वभाविक तौर पर होती है।
अक्सर हमें यह बताया जाता है कि हमें अपने आहार में अधिक मछलियों को शामिल करना चाहिए किंतु हर परिस्थिति में यह सही नहीं हैं। कुछ मछलियों का सेवन विपरीत परिणामों के लिए उत्तरदायी हो सकता है, उदाहरण के लिए समुद्र की गहराईयों में पायी जाने वाली इन मछलियों का सेवन। गहरे पानी में मछलियों की संख्या बहुत कम होती है। यदि इनकी विविधता को बचाए रखना है तो इनका दोहन करना अनुचित है। इसके अलावा गहरे पानी में सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता जिस कारण यहां मौजूद जानवरों में विकास की सामान्य प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। अधिकांश के लिए एक वर्ष में विकास दर 1% से भी कम होती है। इसलिए इनका उपभोग करना उन्हें बहुत असुरक्षित बनाता है क्योंकि वे लगभग गैर-नवीकरणीय संसाधनों की तरह हैं। समुद्र तल पर पायी जाने वाली प्रजातियों की स्थिरता और संरक्षण के लिए उन्हें खाने से बचना उचित है।
संदर्भ:
1. http://www.bbc.com/earth/story/20150129-life-at-the-bottom-of-the-ocean
2. http://ocean.si.edu/ocean-life/fish/bioluminescence
3. http://www.seasky.org/deep-sea/bioluminescence.html
4. https://www.theglobeandmail.com/life/food-and-wine/food-trends/why-you-shouldnt-eat-deep-sea-fish/article1361146/
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