उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में आलमगीरपुर गाँव में स्थित पुरातात्विक महत्त्व का स्थल सिंधु घाटी सभ्यता के पूर्व दिशा में सबसे अंतिम स्थलों में से एक है। इस स्थल को “परसराम का खेड़ा” भी कहा जाता था। इस स्थल की खोज 1974 में पंजाब विश्वविद्यालय ने की थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा इसका उत्खनन 1958-59 में हुआ। यहां प्राप्त ईंटों का आकार, लम्बाई में 11.25 इंच से 11.75 इंच, चौड़ाई में 5.25 इंच से 6.25 इंच और मोटाई में 2.5 इंच से 2.75 इंच है।
वहीं खुदाई में यहाँ विशिष्ट हड़प्पा की मिट्टी के बर्तनों को पाया गया था और जिस जगह इन्हें पाया गया वह स्थान स्वयं एक मिट्टी के बर्तन बनाने की कार्यशाला जैसी प्रतीत हुई। साथ ही सिरेमिक (Ceramic) वस्तुओं में छत की टाइल (Tile), बर्तन, कप, फूलदान, घनाकार पासा, मोती, टेराकोटा केक (Terracotta Cakes), गाड़ियां और एक कूबड़ वाले बैल और सांप की मूर्तियां शामिल थीं। धातु का यहाँ कम सबूत था परन्तु, इसमें एक तांबे से बना टूटा हुआ ब्लेड (Blade) पाया गया था। प्रारंभिक व्यवसाय में मिट्टी की ईंट, लकड़ी आदि से बने घरों का निर्माण पाया गया था। ये घर एक विशिष्ट हड़प्पा सामग्री संस्कृति से जुड़े थे, जिसमें सिंधु लिपि, जानवरों, स्टीटाइट (Steatite) मोतियों आदि से सुशोभित बर्तन शामिल थे।
आलमगीरपुर में हड़प्पा संस्कृति की खोज ने भारत में पूर्वी दिशा में सिंधु घाटी सभ्यता के क्षितिज को काफी बढ़ा दिया। आलमगीरपुर के चार काल क्रमशः (I) हड़प्पा, (II) चित्रित ग्रे वेयर (Painted Grey Ware) (III) प्रारंभिक ऐतिहासिक और (IV) गत मध्यकालीन काल के थे। वहीं अवधि I और अवधि II के बीच के अंतराल को उनके संबंधित सांस्कृतिक संयोजन के अलावा परतों की बनावट संरचना द्वारा दर्शाया गया था। अवधि I से संबंधित चीज़ें ठोस और भूरी थीं। दूसरी ओर अवधि II की चीज़ें राख में लिपटी हुई तथा ढीली और ग्रे (Grey) थीं। यद्यपि भट्ठे में बनीं ईंटें साक्ष्य में मौजूद थीं, लेकिन शायद उत्खनन की सीमित प्रकृति के कारण हड़प्पा काल की कोई संरचना इनमें नहीं मिली थी।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Alamgirpur
2.https://www.wikiwand.com/en/Alamgirpur
3.https://www.worldhistory.biz/ancient-history/60837-6-alamgirpur.html
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