मेरठ में कई ऐसे जीव हैं जिन्हें संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। इन जीवों में संकटग्रस्त इजिप्शियन गिद्ध (Egyptian vulture) भी मौजूद है। यह गिद्ध पहले पश्चिमी अफ़्रीका से लेकर उत्तर भारत, पाकिस्तान और नेपाल में भारी संख्या में पाया जाता था किन्तु इसकी आबादी में बहुत अधिक गिरावट आने के कारण इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा संकटग्रस्त जीवों की सूची में शामिल कर दिया गया। भारत में पायी जाने वाली इसकी उपप्रजाति को वैज्ञानिक रूप से नियोफ्रोन गिंगिनियेनस (N. p. ginginianus) के नाम से जाना जाता है। विभिन्न स्थानों पर पायी जाने वाली इसकी मुख्य उपप्रजातियों का रंग भिन्न-भिन्न होता है जिसमें चेहरे का रंग पीले से लेकर नारंगी तक हो सकता है। उड़ते वक्त यदि नीचे से इस पक्षी को देखा जाये तो यह सफेद रंग का दिखाई देता है।
अपनी अन्य प्रजातियों की भांति यह गिद्ध भोजन के लिए मृत जीवों पर ही निर्भर रहता है। इसके अलावा यह छोटे पक्षियों, स्तनपायी और सरीसृपों का भी शिकार करता है। यह प्रायः चट्टानी पहाडियों में अपना घोंसला बनाता है। भारत में इस जीव के निवास स्थल को पेड़ों पर, ऊँची इमारतों की खिड़कियों के छज्जों पर और बिजली के खम्बों पर भी देखा जा सकता है। अफ्रीका में यह जीव अपने औज़ार के रूप में पत्थरों का इस्तेमाल करता है अर्थात किसी शुतुरमुर्ग या बस्टर्ड (Bustard) का अंडा तोड़ने के लिए यह पक्षी अपने बिल में रखे एक कंकड का प्रयोग करता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक अंडा टूट ना जाए। औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश लोगों के द्वारा इन्हें सबसे भद्दे पक्षियों में से एक माना गया था। मिस्र की संस्कृति में इसे राजसी प्रतीक माना जाता था। दक्षिण भारत में चेंगलपट्टू के पास थिरुकलुकुंद्रम में स्थित एक मंदिर विशेष रूप से एक गिद्ध जोड़े के लिए जाना जाता है। इन पक्षियों का भरण पोषण मंदिर के पुजारियों द्वारा किया जाता है।
मानव गतिविधियां इस जीव के अस्तित्व के लिए कई खतरे पैदा करती हैं। इन खतरों में बिजली लाइनें, शिकार, विषाक्तता, और कीटनाशक आदि शामिल हैं। कुछ पक्षी चट्टान के किनारों से गिरने के कारण घायल हो जाते हैं, जिसके बाद स्तनधारी शिकारियों जैसे कि सियार, लोमड़ी और भेड़ियों द्वारा उनका शिकार कर लिया जाता है। यूरोप क्षेत्र के कई इजिप्शियन गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट आयी है। यूरोप और अधिकांश मध्य पूर्व क्षेत्रों में, 2001 में इनकी आबादी 1980 की तुलना में आधी हो गयी थी। भारत में 1999 के बाद से प्रत्येक वर्ष 35% की कमी के साथ इनमें गिरावट आई है। 1967-70 में, दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में इन गिद्धों के 12,000-15,000 होने का अनुमान लगाया गया था। गिरावट का सही कारण अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इनकी गिरावट का प्रमुख कारण डायक्लोफेनाक (Diclofenac) को माना जाता है। हालांकि भारत सरकार ने अब पशुओं के लिए डायक्लोफेनाक दवाई का इस्तेमाल बन्द करवा दिया है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Egyptian_vulture
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Egyptian_vulture#Indian
3. http://bspb.org/en/threatened-species/egyptian-vulture.html
चित्र सन्दर्भ:
1. https://pixabay.com/no/photos/egyptiske-gribb-par-rovfugler-bird-1336234/
2. https://bit.ly/2tVCWLt
3. https://www.maxpixels.net/Zoo-Bird-Wildlife-Adler-Animel-4153562
4. https://www.flickr.com/photos/brainstorm1984/39811673311
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