किसी भी देश में निवास करने के लिए व्यक्ति को उस देश की नागरिकता धारण करना आवश्यक होता है। बिना नागरिकता के कोई भी व्यक्ति किसी देश में अनिश्चित काल तक निवास नहीं कर सकता। और यही कारण है कि जब किसी व्यक्ति को किसी कारण से अनिश्चित काल के लिए दूसरे देश में रहना पडता है तो उसे वहां की नागरिकता धारण करनी पड़ती है। ये लोग मुख्य रूप से प्रवासी कहलाते हैं। कई भारतीय प्रवासी भी इस प्रकार से अन्य देशों में निवास करते हैं जो मूल रूप से तो भारत में जन्में हैं किंतु किन्हीं कारणों से विदेशों में बस गये हैं और उन्होंने वहां की नागरिकता धारण कर ली है। भारतीय प्रवासियों को विश्व का सबसे बड़ा प्रवासी वर्ग माना जाता है जिसमें बहुधर्मी, बहुजातीय और बहुभाषी शामिल हैं। यह प्रवासी वर्ग लगभग 1.75 करोड़ की संख्या वाला है जोकि विश्व के 28 देशों में फैला हुआ है।
प्रवासी भारतियों की भूमिका को उजागर करने, देश के प्रति इनकी अपनी सकारात्मक सोच और भावना की अभिव्यक्ति हेतु एक मंच उपलब्ध करवाने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है। इस दिन प्रवासी भारतियों द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जाता है। इसका एक अन्य उद्देश्य प्रवासी भारतियों को भारत की ओर आकर्षित करना तथा भारत में उन्हें निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
वर्षों पूर्व से ही भारतवासियों का अन्य देशों में प्रवासन चलता आ रहा है। बड़े पैमाने पर प्रवासन केवल 1830 में गुलामी के अंत के बाद शुरू हुआ जिसमें अधिकांश प्रवासी दक्षिण या दक्षिण पूर्व एशिया चले गए। 42% प्रवासी बर्मा, 25% श्री लंका, 19% ब्रिटिश मलाया तथा बाकी बचे हुए अफ्रीका, कैरेबियन और प्रशांत क्षेत्र में जाकर बसे। भारतीय प्रवासियों का अधिकांश हिस्सा गिरमिटिया श्रमिकों का था जो बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र क्षेत्र से एक अनुबंध के तहत दूसरे देशों में गये थे। इसके प्रभाव से बहुत अधिक संख्या में श्रमिक अत्यधिक शोषण के कारण यात्रा में ही मारे गये जबकि कुछ ने आत्म हत्या कर ली। 1834 और 1937 के बीच भारत छोड़ने वाले 3.02 करोड़ लोगों में से 2.39 करोड़ वापस आ गए थे। जिसके परिणामस्वरूप 63 लाख लोगों का प्रवासन हुआ था।
दूसरी बार प्रवासन मुख्य रूप से व्यापारियों, क्लर्कों, नौकरशाहों, और अन्य पेशेवरों द्वारा मुक्त रूप से किया गया जिनमें से अधिकतर पूर्व और दक्षिण अफ्रीका में जाकर बसे। यह प्रवास छोटी संख्या में 20वीं सदी के पूर्वार्ध तक जारी रहा। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी भारी संख्या में पंजाब और गुजरात के लोगों का प्रवासन अन्य देशों में हुआ। 1965 के दौरान भारत से ऐसे लोगों का प्रवासन अमेरिका में हुआ जो अत्यधिक कुशल पेशेवर थे। इसके अलावा वे छात्र जो उत्कृष्ट शिक्षा लेना चाहते थे उन्होंने भी इस दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर अपना रूख किया। 1990 के दशक के उत्तरार्ध में सूचना प्रौद्योगिकी श्रमिकों की बड़ी मांग के कारण कई युवा पेशेवर पुनः भारत से प्रवासित हुए।
इस प्रकार कुशल योग्यता और क्षमता वाले कई लोगों का प्रवासन दूसरे देशों में हुआ जिससे देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई। 1960 में संयुक्त राज्य में भारतीय मूल की आबादी लगभग 10,000 थी जो 2000 तक बढ़कर लगभग 17 लाख पहुंची। ये प्रवासी मुख्य रूप से वे थे जोकि भारत में सबसे अधिक शिक्षित और कुशल थे। हाल के वर्षों में हो रहे अंतर्राष्ट्रीय प्रवास का भारत पर काफी राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा है। 1970 के दशक के मध्य वित्तीय प्रेषण जो भारत के भुगतान संतुलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर उभरा, भारत के लिए प्रवासी भारतियों का सबसे अधिक दिखाई देने वाला आर्थिक योगदान है।
संदर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Diaspora
2. https://www.tandfonline.com/doi/full/10.1080/01419870.2016.1105999?src=recsys
3. https://casi.sas.upenn.edu/sites/default/files/uploads/India_Review.pdf
4. https://bit.ly/2s8RTtd
5. https://bit.ly/36BUrPf
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