हमारी धरती में ऐसे कई प्रकार के पौधे मौजूद हैं जो विभिन्नता लिये हुए भिन्न-भिन्न वातावरण में उत्पन्न होते हैं। किसी भी क्षेत्र विशेष में पाए जाने वाले पादप उस क्षेत्र के अनुकूल स्वयं को बनाए रखते हैं, उदाहरण के लिए गूदेदार पौधे आमतौर पर शुष्क जलवायु या शुष्क मिट्टी में पानी को अपने तने या मुख्य रूप से पत्तियों में जमा करके रखते हैं, जिस वजह से उनके पत्ते गूदेदार दिखाई देते हैं। वहीं कई गूदेदार पौधों में जड़ द्वारा काफी गहराई और व्यापक क्षेत्र में फैल कर पानी तक पहुँच बनाए रखने की व्यवस्था भी देखी जा सकती है और ये उन रेगिस्तानों या क्षेत्रों के मूल निवासी होते हैं जहां एक अर्द्धशुष्क मौसम होता है।
शुष्क वातावरणों में रहने वाले पौधों जैसे कि गूदेदार पौधों को ज़ेरोफाइट्स (Xerophytes) कहा जाता है। हालांकि सभी ज़ेरोफाइट्स गूदेदार नहीं होते हैं, क्योंकि पानी की कमी को पूरा करने के लिए कई पौधों द्वारा विभिन्न तकनीकें अपना ली गई हैं, उदाहरण के लिए गूदेदार पत्तों की बजाए छोटे पत्ते विकसित करना, जो पानी की कमी पर झड़ जाते हैं। वहीं लगभग 60 अलग-अलग ऐसे पौधों के परिवार हैं, जो गूदेदार हैं, जैसे कैक्टस, एलो वेरा, आदि।
अंटार्कटिका के अलावा, प्रत्येक महाद्वीप के भीतर गूदेदार पौधे पाए जाते हैं। जबकि अक्सर यह माना जाता है कि ज्यादातर गूदेदार पौधे सूखे क्षेत्रों जैसे कि मैदान, अर्ध-रेगिस्तान, और रेगिस्तान में पाए जाते हैं, जबकि विश्व के सबसे सूखे क्षेत्र गूदेदार पौधों के उचित आवास नहीं बन पाते हैं। ऑस्ट्रेलिया, विश्व में सबसे सूखा महाद्वीप है और लगातार और लंबे समय से सूखे के कारण यहाँ बहुत कम देशी गूदेदार पौधे मौजूद हैं। यहां तक कि अफ्रीका, जहां सबसे अधिक गूदेदार पौधे देखने को मिलते हैं, अपने सबसे शुष्क क्षेत्रों में कई पौधों की मेज़बानी नहीं करता है।
हालांकि, गूदेदार पौधे इन कठोर परिस्थितियों में बढ़ने में असमर्थ हैं, वे उन परिस्थितियों में बढ़ने में सक्षम हैं जो अन्य पौधों द्वारा निर्जन हैं। वास्तव में, कई गूदेदार पौधे शुष्क परिस्थितियों में पनपने में सक्षम रहते हैं और कुछ अपने परिवेश और अनुकूलन के आधार पर पानी के बिना दो साल तक जीवित रह सकते हैं। साथ ही गूदेदार पौधों को कभी-कभी एपिफाइट्स (Epiphytes) के रूप में भी देखा जा सकता है, जिसमें ये ज़मीन या मिट्टी से लगभग बिना किसी संपर्क के, अन्य पौधों के ऊपर उगते हैं, और पानी को संग्रह करने और अन्य पोषक तत्व प्राप्त करने के लिए उस पौधे की क्षमता पर निर्भर रहते हैं, जैसे टिलैंडसिया (Tillandsia)।
अन्य साधारण पौधों से भिन्न इनके रंध्र विपरीत व्यवहार करते हैं। गूदेदार पौधों के रंध्र दिन के दौरान बंद रहते हैं और रात में खुलते हैं। जिससे गर्म, शुष्क दिन के दौरान पानी (वाष्पोत्सर्जन) का नुकसान कम से कम होता है। हालांकि, अंधेरे में कार्बन डाइऑक्साइड का उठाव तेज़ होता है। इसलिए, गूदेदार पौधे, कार्बन डाइऑक्साइड निर्धारण और प्रकाश संश्लेषण का एक संशोधित रूप प्रदर्शित करते हैं, जिसे क्रसुलाशियन एसिड (Crassulacean acid) चयापचय कहा जाता है। क्रसुलाशियन एसिड चयापचय में, सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा उपलब्ध होने तक कार्बन डाइऑक्साइड को एक कार्बनिक एसिड, मैलिक एसिड (Malic Acid) के रूप में स्थिर किया जाता है, और सेलुलर रसधानी (Cellular Vacuoles) में संग्रहित किया जाता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Succulent_plant
2. https://www.britannica.com/plant/succulent
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/2MQ79lD
2. https://www.flickr.com/photos/puddintain850/27047083787
3. https://bit.ly/2FerRaN
4. https://bit.ly/37txqhF
5. https://pixnio.com/flora-plants/flowers/cactus-pictures/prickly-pear-cactus
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