जल को जीवन की सबसे मूलभूत आवश्यकता माना गया है। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। किंतु जब यही जल अपना भयावह रूप धारण करता है तो विनाश का कारण बनता है जिसका एक उदाहरण जुलाई 2019 के समय मेरठ में आयी बाढ़ है। दरअसल इस बाढ़ का मुख्य कारण भयंकर वर्षा है जिसने पिछले 109 वर्षों का रिकॉर्ड (Record) तोड़ा। मेरठ और आसपास के जिलो में बारिश के कारण हुए हादसों में कई लोगों की जान गयी और अनेक घायल हुए। देशभर में सबसे ज़्यादा बारिश वाले शहरों में मेरठ चौथे स्थान पर रहा। बरसात का आलम यह था कि दिल्ली-मेरठ-सहारनपुर रेलवे ट्रैक (Railway track) पर जगह-जगह पानी भर जाने से ट्रेनों की रफ़्तार मंद पड़ गयी तथा रेलवे को अलर्ट (Alert) जारी करना पड़ा। यात्रियों के न होने से रेलवे और रोडवेज़ को दस लाख से भी ज्यादा का नुकसान भुगतना पड़ा। कई स्थानों पर मकानों के ढह जाने से कई लोग घायल भी हुए।
जहां एक तरफ वर्षा का जल कहर ढा रहा है, वहीं दूसरी ओर औद्योगिकीकरण मेरठ के निकट बहने वाली काली नदी की गुणवत्ता को खराब कर रहा है। एक अध्ययन में पाया गया कि औद्योगिकीकरण के कारण जल गुणवत्ता के विभिन्न मानदंड नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं अर्थात औद्योगिकीकरण ने काली नदी की जल गुणवत्ता को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया है। नदी में टीडीएस (TDS), पीएच (Ph), क्षारीयता (Alkalinity), कुल कठोरता (Total Hardness), डीओ (DO), कैल्सियम (Calcium) और मैग्नीशियम (Magnesium) आदि मानदंडों की मात्रा अनुमेय सीमा से अधिक पायी गयी जिसका मुख्य कारण औद्योगिकीकरण है। इस अध्ययन में खरखोदा क्षेत्र को सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र बताया गया। औद्योगिक क्रियाविधियों से कई विषाक्त अपशिष्ट निकलते हैं जो काली नदी को प्रदूषित करते हैं। टीडीएस और टीएसएस की उच्चतम मात्रा मनुष्यों में कैंसर (Cancer) का कारण बनती है।
इसी प्रकार से मेरठ शहर के भू-जल की गुणवत्ता को मापने के लिए भी भू-जल का भौतिक रासायनिक मूल्यांकन किया गया। भू-जल के मूल्यांकन के लिए पीएच, डीओ, बीओडी, सीओडी, टीडीएस, क्षारीयता, कैल्शियम कठोरता, मैग्नीशियम कठोरता, कुल कठोरता, नाइट्रेट (Nitrate), फ्लोराइड (Fluoride), लोहा और क्लोराइड (Chloride) जैसे भौतिक-रासायनिक मापदंडों का विश्लेषण किया गया। विश्लेषण के अनुसार भौतिक-रासायनिक मापदंडों में से कुछ अनुमेय सीमा के भीतर जबकि कुछ अनुमेय सीमा के बाहर थे। भौतिक रासायनिक विश्लेषण की व्याख्या से पता चलता है कि मेरठ शहर के भू-जल की प्रकृति खारी और क्षारीय है इसलिए यह पीने और कृषि के लिए उपयुक्त है। जल में प्रमुख आयनों (क्लोराइड, बाइकार्बोनेट्स, सल्फेट और नाइट्रेट्स) की मात्रा अनुमेय सीमा के भीतर है।
इस प्रकार मेरठ शहर के अधिकांश अवलोकन क्षेत्रों में सामान्य रूप से भूजल की गुणवत्ता अच्छी और मध्यम है। कुछ स्थानों पर भू-जल का पीएच अनुमेय सीमा के भीतर है किंतु सभी जगह ऐसा नहीं है। शहर के सभी हैंड पंप और नलकूपों में क्लोराइड (Chloride), नाइट्रेट (nitrates), फ्लोराइड (Fluoride) की सांद्रता भी अनुमेय सीमा के भीतर पायी गयी है। मेरठ शहर में असंख्य उद्योगों के निर्माण से असंख्य निजी और सार्वजनिक नलकूपों तथा हैंडपंपों की स्थापना की जा रही है जिससे भू-जल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप मेरठ में भू-जल का स्तर बहुत कम हो गया है। हालांकि बरसात के मौसम में अत्यधिक बारिश के चलते वर्षा जल संचयन की योजना तैयार की गयी है जो भू-जल के अत्यधिक दोहन को कम करने में मदद कर सकती है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2RQ6UdG
2. https://academicjournals.org/journal/JETR/article-full-text-pdf/B07070C45060
3. https://bit.ly/2RN4vAA
4. https://www.esri.in/~/media/esri-india/files/pdfs/events/uc2011/papers/WR_UCP0030.pdf
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