मान लीजिए एक अस्पताल में चार लोग हैं जिनका जीवन, अंग प्रत्यारोपण प्राप्त करने पर निर्भर करता है: एक के लिए हृदय, दूसरे के लिए फेफड़े, तीसरे के लिए गुर्दा और चौथे के लिए यकृत के प्रत्यारोपण करने की आवश्यकता है। तभी उस अस्पताल में एक स्वस्थ व्यक्ति मौजूद था, जो अपने जीवन के बदले इन चार लोगों का जीवन बचा सकता है। यह यकीनन एक बड़ी संख्या के लिए सुखपूर्वक और अच्छा निर्णय होगा, लेकिन बहुत कम लोगों द्वारा इस निर्णय को स्वीकारा जाएगा। यह उदाहरण उपयोगितावाद को दर्शाता है। उपयोगितावाद एक नैतिक सिद्धांत है जो परिणामों पर ध्यान केंद्रित करके गलत और सही का निर्धारण करता है। उपयोगितावाद का मानना है कि सबसे अधिक नैतिक विकल्प वह है जो सबसे बड़ी संख्या के लिए सबसे ज़्यादा अच्छाई प्रदान करेगा। यह एकमात्र नैतिक ढांचा है जिसका उपयोग सैन्य बल या युद्ध को सही ठहराने के लिए किया जा सकता है। यह व्यवसाय में उपयोग किए जाने वाले नैतिक तर्क के लिए सबसे आम तरीका है क्योंकि यह लागत और लाभों पर ध्यान देता है। हालाँकि, क्योंकि हम भविष्यवाणी नहीं कर सकते, इसलिए यह निश्चित रूप से जानना मुश्किल है कि हमारे कार्यों के परिणाम अच्छे होंगे या बुरे, यह उपयोगितावाद की सीमाओं में से एक है।
यद्यपि उपयोगितावाद की विभिन्न किस्में विभिन्न विशेषताओं को स्वीकार करती हैं। उन सभी के पीछे मूल विचार कुछ अर्थों में अधिकतम उपयोगिता को दर्शाते हैं, जो अक्सर भलाई या संबंधित अवधारणाओं के संदर्भ में परिभाषित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, उपयोगितावाद के संस्थापक, जेरेमी बेंथम ने उपयोगिता को किसी भी वस्तु की ऐसी विशेषता के रूप में वर्णित किया है, जिसके तहत वह लाभ, आनंद, अच्छाई या खुशी को उत्पन्न कर सके।
उपयोगितावाद परिणामवाद का एक संस्करण है, जो बताता है कि किसी भी कार्रवाई का परिणाम सही और गलत का एकमात्र मानक है। परिणामवाद के अन्य रूपों, जैसे अहंकार और परोपकारिता के विपरीत, उपयोगितावाद सभी प्राणियों के हितों को समान रूप से मानता है। उपयोगितावाद के समर्थकों ने कई बिंदुओं पर असहमति जताई है, जैसे कि क्या कार्यों को उनके संभावित परिणामों के आधार पर चुना जाना चाहिए या क्या घटक को अधिकतम उपयोगिता के नियमों के अनुरूप होना चाहिए। यह भी असहमति है कि क्या कुल उपयोगितावाद, औसत उपयोगितावाद या न्यूनतम उपयोगिता को अधिकतम किया जाना चाहिए। कई अध्ययनों से पता चला है कि लोग आमतौर पर प्राकृतिक रूप से आचरण-शास्त्री होते हैं, वे नैतिक निर्णयों के बारे में सहज रूप से कर्तव्यों और अधिकारों के संदर्भ में सोचते हैं, बजाय प्रत्येक संभावित परिणाम को मापने के। उदाहरण के लिए, कुछ लोग कहते हैं कि वे अपने कार्यों के माध्यम से एक व्यक्ति को मारने से बचाने के लिए पांच लोगों के जीवन का बलिदान करना पसंद करेंगे।
इस को हम उपयोगितावादी विचार के एक प्रयोग (दी रनअवे ट्रेन / The Runaway Train) से समझ सकते हैं: मान लीजिए आप एक त्यागे हुए रेलमार्ग ट्रैक पर कुछ दोस्तों के साथ लंबी पैदल यात्रा कर रहे हैं, जो एक गहरी खाई के किनारे है। इस ऊंचाई से गिरना संभवतः आपके लिए घातक होगा, परंतु उस स्थान में चलने के लिए आपके पास काफी सुरक्षित जगह है। थोड़े समय बाद आपका समूह एक दूसरे ट्रैक में एक अकेले व्यक्ति को पैदल यात्रा करते हुए पाता है, और कुछ सौ फिट आगे ये दोनों ट्रैक एक स्विचिंग पॉइंट (Switching point) पर एक साथ आते हैं, जो पहले आने वाली ट्रेनों को दोनों में से एक ट्रैक पर चलने की अनुमति देता था। वहीं दोनों ट्रैक में अदला बदली करने के लिए उपयोग किया जाने वाला उत्तोलक ज़मीन से कुछ गज की दूरी पर स्थित है।
वहीं जैसे ही आपका समूह नाश्ते के लिए बैठता है, तभी आपके समूह का कोई सदस्य एक ट्रेन को आपकी तरफ आते हुए देखता है। हालांकि ट्रेन अभी तक स्विचिंग पॉइंट पर नहीं आई है और यदि कोई ट्रेन को पटरी के दूसरे सेट पर बदल देता है, तो आपकी और आपके दोस्तों की जान बच जाएगी। लेकिन किसी को ट्रेन को बदलना होगा, तभी आप की नज़र एक रेल की वर्दी पहने एक व्यक्ति पर जाती है जो ठीक उत्तोलक के सामने खड़ा है जो ट्रेन को दूसरी पटरी पर बदल सकता है। वहीं ट्रेन की पटरी बदलने पर दूसरी तरफ मौजूद व्यक्ति की जान चली जाएगी, लेकिन वह एक है और आपका समूह पाँच का है।
तभी आप देखते हैं कि उत्तोलक के सामने खड़ा व्यक्ति पहले आपकी तरफ देखता है फिर उस अकेले व्यक्ति की तरफ और आखिर में वह उत्तोलक से अपने हाथ को हटाकर पीछे हट जाता है। इतने में ट्रेन स्विचिंग पॉइंट को पार करके आपके समूह के करीब आ जाती है। और उस समय आपके मन में एक ही विचार चल रहा होगा कि उसने ऐसा क्यों किया? उसने हमें क्यों नहीं बचाया? वहीं अब आप खुद को उत्तोलक के सामने खड़े व्यक्ति के स्थान पर रखिए, और बताइए आप इस स्थिति में क्या करते? एक और आलोचना यह है कि कर्म का सिद्धांत नैतिक ज़िम्मेदारी के लिए कोई गुंजाइश नहीं रखता है।
वास्तव में कर्म का सिद्धांत व्यक्तियों को पूर्ण नैतिक ज़िम्मेदारी को निभाने का निर्देश देता है क्योंकि वर्तमान में किया गया कर्म किसी के भविष्य को निर्धारित करता है। वहीं यदि इच्छा की स्वतंत्रता को अस्वीकृत किया जाता है, तो कर्म का सिद्धांत अर्थहीन है। क्योंकि एक कठपुतली को कर्म के कानून के अधीन नहीं किया जा सकता है। कर्म का नियम सामाजिक बुराइयों और दूसरों की पीड़ा के लिए नैतिक ज़िम्मेदारी को कम नहीं करता है। अगर कोई व्यक्ति एक गरीब आदमी को इस आधार पर अनदेखा करता है कि यह उसके कर्म के कारण है, तो वह अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी को अनदेखा करने का पाप करता है और अगर कभी उसे खुद कोई कठिनाई आती है, तो दूसरे भी उसके बारे में ऐसा ही सोच सकते हैं।
संदर्भ:
1. https://ethicsunwrapped.utexas.edu/glossary/utilitarianism
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Utilitarianism
3. https://aarongertler.net/utilitarian-thought-experiments/
4. https://bit.ly/2DQUxpq
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.