क्या है चुनावी बांड, और क्यों है ये बहस का एक मुद्दा?

मेरठ

 05-12-2019 02:10 PM
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

चुनावी बांड (Electoral Bonds) अभी हाल के दिनों में अत्यंत ही ज्यादा चर्चा में रहा और इसके विषय में कई बाते हुईं तथा सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर हस्तक्षेप किया था। अब इस लेख के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह होता क्या है और इसे कौन खरीद या बेच सकता है। केंद्र सरकार ने 29 जनवरी 2018 को चुनावी बांड की योजना को अधुसुचित किया या यूँ कहें की लागू किया। चुनावी बांड एक वचन पत्र की तरह होता है जोकि भारतीय स्टेट बैंक की चुनिन्दा शाखाओं से भारत में स्थित किसी भी भारतीय नागरिक या कंपनी द्वारा खरीदा जा सकता है। यह बांड जिस किसी भी नागरिक द्वारा खरीदा गया हो वह इसे अपने पसंद के राजनितिक दल को दान कर सकता है। ये राजनैतिक बांड 1000 रूपए से लेकर 1 करोड़ रूपए तक के हो सकते हैं और ये सिर्फ राजनैतिक दलों द्वारा ही लिए और भुनाए (Encash) जा सकते हैं। चुनावी बांड से प्राप्त धनराशी को चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित बैंक खातों में जमा किया जा सकता है और इसका लेन देन उसी खाते के माध्यम से किया जा सकता है जिसे चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित किया गया हो।

चुनावी बांड खरीद के लिए प्रत्येक तिमाही के शुरुआत में उपलब्ध होते हैं। जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के पहले 10 दिनों में सरकार द्वारा चुनावी बांड खरीदने की तारिख निर्दिष्ट की गयी है। लोकसभा चुनाव के दौरान यह अवधि 10 से बढ़ कर 30 दिन की हो जाती है। इसे कोई भी पार्टी जोकि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत हो और उस राजनैतिक दल को आम चुनाव या विधानसभा चुनावों में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिला हो प्राप्त कर सकता है। चुनावी बांड दाता का नाम नहीं प्रदर्शित करता और इससे यह सिद्ध होता है कि राजनितिक दल को दाता का नाम नहीं पता होना चाहिए। अब जब इतनी बड़ी राशि तक का चुनावी बांड बनता है तो यह प्रश्न पूछा जाना अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या चुनावी बांड कर की सीमा में आता है? इसका उत्तर यह है की इस बांड को भरने वाले को कर में कटौती मिलेगी और राजनैतिक दल को भी इसमें कटौती मिलेगी पर वह तभी संभव होगा जब राजनैतिक पार्टी अपना रिटर्न दाखिल करेगी।

इन तमाम विवरणों के बाद यह भी प्रश्न लाजमी है कि इस बांड को क्यूँ लाया गया। इसका सरकार की तरफ से यही सन्देश है कि वह जनता को अपने द्वारा प्राप्त किये गये चंदे के बारे में जनता को बिना दानकर्ता का पूरा विवरण दिए प्रस्तुत कर सकती है। सरकार ने यह भी कहा की इससे काला धन चुनाव में नहीं आ पायेगा। अब यह चुनावी बांड विवाद का भी विषय है क्यूंकि चुनावी जानकारों का कहना है कि सरकार को ऐसे दान की पारदर्शिता से बचना चाहिये। विद्वानों और राजनेताओं का कहना है की चूँकि बांड के खरीददार के बारे में पता न चलना एक समस्या है। अब जब खरीददारों के बारे में पता नहीं चल पायेगा तो काला धन आने की संख्या में इजाफा हो सकता है और दाता की गुमनामी की अवधारणा लोकतंत्र की भावना को खतरे में डालती है।

सन्दर्भ:-

1. https://www.business-standard.com/about/what-is-electoral-bond
2. https://bit.ly/34wsBDg
3. https://www.telegraphindia.com/opinion/why-electoral-bonds-don-t-serve-their-purpose/cid/1722218
4. https://bit.ly/35KNnz7

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