इक्विटी की धारणा किसी भी स्टार्टअप या कारोबार के लिए एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण सीढ़ी होती है जिसका कारण है कि यह उस व्यापार के लिए वित्तपोषण का कार्य करती है। इक्विटी सामान्यतया दो प्रकार की होती है एक तो निजी इक्विटी और दूसरी है सार्वजनिक इक्विटी। इस लेख के माध्यम से गहराई से निजी इक्विटी और इसकी गहराइयों के बारे में विस्तार से बात करेंगे। निजी इक्विटी का एक सबसे बड़ा पहलु है की इसमें इन्वेस्ट कर के निवेशक जीवन भर वितरण प्राप्त कर सकते हैं।
अधिकांश कंपनियां निजी के रूप में शुरू होती हैं, लेकिन एक सार्वजनिक कंपनी अपने सार्वजनिक शेयरों को बेच सकती है, यदि यह अधिक से अधिक लाभ पाती है। निजी बनाम सार्वजनिक इक्विटी में सबसे बड़ा अंतर यह है कि आमतौर पर निजी इक्विटी अंतर्गत निवेशकों को स्टॉक संचय के बजाय वितरण के माध्यम से भुगतान किया जाता है। निजी इक्विटी निवेशक आमतौर पर अपने निवेश के दौरान जीवन भर वितरण प्राप्त करते हैं। इसके तमाम विवरणों को निजी प्लेसमेंट ज्ञापन (पीपीएम) में निषिद्ध होते हैं जो की सार्वजनिक कंपनियों के प्रॉस्पेक्टस की तरह ही होता है। पीपीएम एक निवेशक के लिए तमाम विवरणों को प्रस्तुत करता है और यह निवेशकों के लिए आवश्यकताओं की तमाम व्याख्याओं को प्रस्तुत करता है। निजी इक्विटी सार्वजनिक क्षेत्रों की तुलना में कम विनिमित होती है और ये बड़ी भारी जोखिमों के साथ में आते हैं। इस क्षेत्र में निवेश करने वाले निवेशकों को मान्यता प्राप्त निवेशक कहा जाता है। मान्यता प्राप्त निवेशक व्यक्ति के साथ-साथ बैंक और पेंशन फंड जैसी संस्थाएं भी हो सकती हैं। किसी भी व्यवसाय को आगे बढाने के लिए पूँजी की आवश्यकता तो होती ही है और वह पूँजी निजी इक्विटी से प्राप्त हो जाती है। अक्सर निजी इक्विटी का सौदा इस लहजे से किया जाता है किसी न किसी दिन वह कंपनी सार्वजनिक हो जायेगी। इक्विटी को लेकर देखा जाए तो सर्बनेस-ऑक्सले एंटी फ्रॉड कानून निषिद्ध है। यह कानून सन 2002 में एनरान और वर्ल्डकॉम के कार्पोरेट घोटालों के बाद से पारित किया गया था। यह तमाम कंपनी के निवेश और निवेशकों आदि के स्तर पर एक कड़ी कानून की अवधारणा को प्रस्तुत करता है। अब यह भी जाना जाना महत्वपूर्ण हो गया है की निजी इक्विटी के फायदे और नुक्सान क्या क्या हैं? यह फायदेमंद तब सिद्ध होता है जब संस्थापक अत्यंत सनकी प्रवृत्त का हो जाए या वह वहम में पद जाए कंपनी को लेकर और उसके मूल निवेशक कंपनी से पैसे की मांग करने लगे तथा व्यापार एक अत्यंत ही बिगड़े हालात में जाने लगे तो इस समय में निजी इक्विटी में जाना एक विकल्प हो सकता है। निजी इक्विटी के साथ प्रबंधन आदि में नए बदलाव आते हैं जो की व्यवसाय को एक हवा देने का कार्य करते हैं और मृत व्यापार भी चलने की दिशा में बढ़ जाता है। निजी इक्विटी के अगर नकारात्मक पक्ष की तरफ देखें तो यह बताती है की छोटी कम्पनियाँ निजी इक्विटी निवेश रणनीति में अच्छी तरह से नहीं आती। यह भी ध्यान रखने की जरूरत है की निजी इक्विटी फण्ड का अंतिम लक्ष्य निवेशकों के लिए फ़ायदा करना होता है अतः इसके लिए कार्य की सीमा को अत्यधिक बढाने की आवश्यकता हो जाती है। अभी हाल ही में इन्वेस्टमेंट और कम्पनियों के निर्माण और उनके विषय में एक वेब सीरीज आई थी जिसका नाम था हॉर्सेज स्टेबल और यह वेब सीरीज शार्क टैंक नामक वेब सीरीज से प्रेरित थी। इस वेब सीरीज का मूल मकसद यही था की किस प्रकार से इन्वेस्टमेंट आदि रोल करते हैं और कैसे कम्पनियां आदि निर्धारित होती हैं।सन्दर्भ:-
1. https://www.entrepreneur.com/article/228234
2. https://bit.ly/2DLTLdt
3. https://www.wallstreetmojo.com/private-equity-in-india/
4. https://www.investopedia.com/terms/v/venturecapital.asp
5. https://yourstory.com/2019/06/shark-tank-horses-stable-indian-web-series-youtube
6. https://bit.ly/2Dt0KrG
7. https://www.mergersandinquisitions.com/how-to-get-into-private-equity/
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