बहुमुखी गुणों से भरपूर है महुआ के फल, फूल, पत्तियां

मेरठ

 04-12-2019 11:37 AM
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें

धरती पर पायी जाने वाली हर वनस्पति की कोई न कोई विशेषता अवश्य होती है और यही कारण है कि भिन्न-भिन्न स्थानों पर इनको बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। महुआ का पेड़ जिसे ‘मधुका लोंगिफोलिया’ (Madhuca longifolia) के नाम से जाना जाता है, दक्षिणी भारत के शुष्क उष्णकटिबंधीय जंगलों का मुख्य पेड़ है। इसके विभिन्न भागों का उपयोग अनेक वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है। मेरठ में भी यह पेड़ देखा जा सकता है जिसकी छाल को औषधि के रूप में, फल को भोजन के रूप में और फूलों को शराब बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

पहले यह माना जाता था कि चमगादड़ के लिए महुआ का पेड़ महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि इसके फूलों को चमगादडों द्वारा प्रायः खाया जाता है किंतु कुछ समय पूर्व शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि चमगादड़ वास्तव में महुआ के पेड़ को परागित करते हैं, और इसके बीजों को अन्य स्थानों पर फैलाते हैं। पहले यह धारणा थी कि चमगादड़ फूलों को खाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं जिससे इसकी प्रजाति के विस्तारित होने में बाधा उत्पन्न होती है किंतु इसके विपरीत चमगादड़ फूलों को खाते नहीं बल्कि परागण में सहायता करके इसके बीजों को अनेक स्थानों पर फैलाते हैं जिससे इसकी प्रजातियां और भी स्थानों पर उगने लगती हैं।

कई आदिवासी समुदाय के लोग महुआ का उपयोग शराब बनाने के लिए करते हैं तथा प्राचीन समय में भी इनका उपयोग शराब बनाने के लिए किया जाता था। महुआ लोंगिफोलिया भारत का एक उष्णकटिबंधीय पेड़ है जो मुख्य रूप से मध्य और उत्तर भारतीय मैदानों और जंगलों में पाया जाता है। इसे आमतौर पर माहूवा, महुआ, महवा, मोहुलो, या इलुप्पाई या विप्पा चेट्टू के नाम से भी जाना जाता है। यह पेड़ बहुत तेज़ी से बढ़ता है जिसकी ऊंचाई लगभग 20 मीटर तक हो सकती है। यह एक सदाबहार या अर्ध-सदाबहार वृक्ष है जो परिवार सपोटेशिए (Sapotaceae) से सम्बंधित है। भारत में यह ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, केरल, गुजरात, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के उष्णकटिबंधीय मिश्रित पर्णपाती जंगलों का एक प्रमुख वृक्ष है।

इस पेड़ के प्रत्येक भाग का किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है। इसके फलों की सब्ज़ी बनायी जा सकती है तथा बीजों से तेल निकाला जाता है जिसका उपयोग औषधीय रूप से किया जाता है। ताज़े महुआ के फूल स्वाद में मीठे होते हैं जिसमें विभिन्न फाइटोकेमिकल्स (Phytochemicals) निहित होते हैं। फूलों में सुक्रोज़ (Sucrose), ग्लूकोज़ (Glucose), फ्रुक्टोज़ (Fructose), माल्टोज़ (Maltose) इत्यादि की एक निश्चित मात्रा उपलब्ध होती है जिस कारण आदिवासी लोग महुआ के फूलों का उपयोग कई स्थानीय और पारंपरिक व्यंजनों जैसे हलवा, मीठी पूड़ी, खीर और बर्फी में करते हैं। सुंदर फूलों को इमली और साल के बीज के साथ उबाला जाता है। इसके अलावा फूलों को मवेशियों के चारे के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। फूलों का उपयोग शराब और मादक पेय के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है। उड़ीसा के आदिवासी लोग ‘महुली’ नामक देशी शराब बनाने के लिए फूलों का मुख्य रूप से उपयोग करते हैं। फूलों के ताज़े रस का उपयोग टॉनिक (Tonic) बनाने के लिए किया जाता है।

महुआ के बहुमुखी मूल्यों को देखते हुए आजकल शोधकर्ता इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। आदिवासी समुदायों द्वारा की जाने वाली भव्य पूजा में भी इस स्थानीय पेड़ के सुंदर फूलों का उपयोग व्यापक रूप से किया जाता है। इन लोगों द्वारा महुआ के वृक्ष की पूजा भी की जाती है। हालांकि महुआ के बहुमुखी उपयोग को देखते हुए इसका बाज़ार व्यापक रूप से बढ़ रहा है तथा यह औपचारिक अर्थव्यवस्था में प्रवेश कर रहा है किंतु इसके समक्ष कई चुनौतियां हैं और इस कारण इसके उत्पादों का उत्पादन और वितरण हर स्तर पर समस्याओं से घिरा हुआ है। शराब के बढ़ते चलन से कई राज्यों जैसे बिहार और गुजरात में महुआ पर प्रतिबंध भी लगाया गया है। ऐसी स्थिति में महुआ से मिलने वाले अन्य लाभों का फायदा भी नहीं उठाया जा सकता है।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2rPBJEu
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Madhuca_longifolia
3. https://www.livemint.com/Leisure/EPWyRaLnJ0pMvP6ZeFrh0H/The-spirit-of-mahua.html
4. https://bit.ly/2sDWJyh
5. https://thewire.in/rights/mahua-commercialisation-sukracharya-rabha-theatre
चित्र सन्दर्भ:-
1.
https://pixabay.com/pt/photos/madhuca-longifolia-mahwa-mahua-332882/
2. https://bit.ly/34XskcR
3. https://www.flickr.com/photos/dinesh_valke/2463481357
4. https://www.flickr.com/photos/dinesh_valke/26078852130
5. https://bit.ly/33O7ueg
6. https://www.flickr.com/photos/91314344@N00/3393855371

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id