इस विश्व में प्रत्येक जानवरों में कुछ न कुछ अनूठा होता है, जैसे बाघ और जेब्रा में मौजूद धारियाँ, क्या आपके मन में कभी ये सावाल आया है कि बाघ और जेब्रा में ये धारियाँ क्यों होती है? विभिन्न जूलॉजिस्ट्स कई साल से इसी विषय में शोध किया है और कई तर्क दिए हैं।
कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि जैसे कि बाघ शिकारी होते हैं तो उन्हें जीवित रहने के लिए अपने जीवनकाल में पर्याप्त मांस प्राप्त करने के लिए जितनी बार संभव हो उतना शिकार करने की आवश्यकता होती है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि बाघ को छलावरण करने के लिए उनमें धारियाँ मौजूद होती हैं। बाघों की धारियां होती हैं, जो उन्हें अपने शिकार के करीब (बिना शिकार के देखे) पहुंचने में मदद करती है।
जंगल में, अधिकांश जानवर रंगों और आयामों को मनुष्यों की तरह इतने अच्छे से नहीं देख पाते हैं, इसलिए उनके द्वारा एक ठोस वस्तु को देखना बहुत आसान होता है। बाघों की धारियों के काले, सफेद, और भूरे रंग भी कुछ जानवरों को छाया की तरह लग सकते हैं, जिससे बाघों को शिकार करने में काफी लाभ मिलता है। आसान शब्दों में हम यह समझ सकते हैं कि ये धारियाँ बाघों को उनके आसपास के परिवेश से घुलने-मिलने में मदद करती है।
वैसे तो कई अफ्रीकी जानवरों के शरीर में कुछ धारियाँ देखी गई है, लेकिन जेब्रा में पाए जाने वाले पैटर्न की तुलना में कोई भी नहीं है। साथ ही शोधकर्ताओं द्वारा जेब्रा के अनूठे काले और सफेद खाल पर भी लंबे समय से शोध किया गया और कुछ शोधकर्ताओं द्वारा यह पाया गया कि ये धारियाँ जेब्रा को बाघों और अन्य शिकारियों से छलावरण करने में मदद करती है, सिर्फ इतना ही नहीं ये धारियाँ बीमारी फैलाने वाली मक्खियों को भ्रमित कर काटने से बचाती है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स के शोधकर्ताओं ने सबसे व्यापक जेब्रा की धारी पर किए गए अध्ययन को पेश किया गया, जिसमें यह जांच की गई है कि कैसे 29 विभिन्न पर्यावरणीय वस्तुएं, दक्षिण से मध्य अफ्रीका में 16 अलग-अलग स्थानों पर मैदानी ज़ेबरा की धारियों की शैली को प्रभावित करते हैं? वैज्ञानिकों द्वारा पाया गया कि एक जेब्रा की पीठ में धारियाँ उसको वातावरण में तापमान और वर्षा के साथ सबसे अधिक संबंधित है, और इसका उस क्षेत्र में पाए जाने वाले शेरों या मवेशी मक्खियों से कोई संबंध नहीं है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अन्य जानवरों के भी परभक्षी होते हैं, परंतु उनके शरीर में धारियाँ मौजूद नहीं होती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि अन्य जानवरों को अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने कि आवश्यकता होती है, क्योंकि वे अफ्रीका के अन्य चरागाहों की तुलना में भोजन को बहुत कम कुशलता से पचाते हैं इसलिए जेब्रा विशेष रूप से एक अतिरिक्त शीतलन प्रणाली से लाभान्वित हो सकते हैं। जैसे, जेब्रा को दोपहर के सूरज की गर्मी में भोजन के लिए अधिक समय बिताने की ज़रूरत होती है।
वहीं टिम कैरो और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से उनकी टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन ने इन सभी परिकल्पनाओं को एक-दूसरे के विपरीत पेश किया और एकत्र किए गए आंकड़ों का अध्ययन किया। इस अध्ययन में उन्होंने पता लगाया कि जेब्रा में मौजूद धारियाँ कीटों को भ्रमित करने के लिए विकसित हुई हैं। दरसल कीटों के आँखों के पैटर्न की वजह से वे उन धारियों को दो जीव मान लेते हैं और भ्रमित होकर उनपर हमला नहीं करते हैं।
इस धरती में इतने अनूठे जीव मौजूद हैं लेकिन कई कारणों से इन अनूठे जीवों में से कई विलुप्त होने की स्थिति में हैं, जिनमें से एक बाघ भी है 20 वीं शताब्दी की शुरुआत से, बाघ की आबादी ने अपनी ऐतिहासिक सीमा का कम से कम 93% हिस्सा खो दिया और पश्चिमी और मध्य एशिया में, जावा और बाली के द्वीपों से और दक्षिण-पूर्व और दक्षिण एशिया और चीन के बड़े क्षेत्रों में लुप्त हो गए हैं। बाघ को 1986 से इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा रेड लिस्ट में सूचीबद्ध कर दिया गया था।
बाघों की घटती आबादी को देखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य के लखीमपुर खीरी ज़िले में दुधवा राष्ट्रीय उद्यान एक बाघ संरक्षित क्षेत्र की स्थापना की गई। 1879 में दुधवा को एक बाघ अभयारण्य बनाया गया था। वहीं 1958 में इस क्षेत्र को दलदल हिरण के लिए एक वन्यजीव अभयारण्य का रूप दिया गया। 1987 में, पार्क को एक बाघ आरक्षित घोषित किया गया और इसे ’प्रोजेक्ट टाइगर (project tiger)’ के दायरे में लाया गया। यह किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के साथ मिलकर दुधवा टाइगर रिजर्व बना। वहीं मार्च, 1984 में असम और नेपाल के पोबितोरा अभयारण्य से दुधवा में भारतीय गैंडों को भी लाया गया।
दुधवा उद्यान जैव विविधता के मामले में काफी समृद्ध माना जाता है। पर्यावरणीय दृष्टि से इस जैव विविधता को भारतीय संपदा और अमूल्य पारिस्थितिकी धरोहर के तौर पर माना जाता है। इसके जंगलों में मुख्यतः साल और शाखू के वृक्ष बहुतायत से मिलते है। साथ ही दुधवा नेशनल पार्क में विश्व भर के लगभग आधे बारहसिंघा मौजूद हैं। इसकी दलदली भूमि पर लगभग 400 प्रजातियों के निवासी और प्रवासी पक्षी निवास करते हैं। पार्क के अधिकांश एवियन जीव प्रकृति में जलीय हैं और दुधवा झीलों जैसे बांके ताल के आसपास पाए जाते हैं।
संदर्भ:-
1. http://www.tigerfdn.com/why-do-tigers-have-stripes/
2. https://www.livescience.com/49447-zebras-stripes-cooling.html
3. https://curiosity.com/topics/why-do-so-many-animals-have-stripes-curiosity/
4. https://www.thoughtco.com/evolution-explains-zebra-stripes-1224579
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Tiger
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Dudhwa_National_Park
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.pxfuel.com/en/free-photo-xwceu
2. https://www.pexels.com/photo/bengal-tiger-774544/
3. https://www.pexels.com/photo/tiger-photography-2668606/
4. https://www.maxpixels.net/Love-Animal-Safari-Stripes-Zebra-Africa-3834241
5. https://www.needpix.com/photo/1152454/zebra-close-stripes
6. https://bit.ly/2L2IXvJ
7. https://bit.ly/2OTiGB8
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