मेरठ भारत का ऐतिहासिक शहर है। इसी स्थान से 1857 का विद्रोह प्रारम्भ हुआ तथा यही वो स्थान है जहां देश का मशहूर नौचंदी मेला लगता है। मेरठ जहां भ्रमण के उद्देश्य से तो प्रसिद्ध है ही वहीं भोजन प्रेमियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहां ऐसे कई पकवान आपको उपलब्ध हो जायेंगे जो देश के कुछ ही स्थानों पर प्राप्त होते हैं। इसका मुख्य उदाहरण हलीम बिरयानी से लिया जा सकता है। हलीम एक भारतीय व्यंजन है जो मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप का एक लोकप्रिय पकवान है। यह प्रायः रमज़ान के महीने में बिकने वाला सबसे लोकप्रिय पकवान है। यह पकवान हैदराबाद का भी प्रमुख व्यंजन है जिस कारण इसे हैदराबादी हलीम के नाम से भी जाना जाता है। मध्य पूर्व इलाकों में हलीम को बहुत ही अधिक पसंद किया जाता है तथा विभिन्न स्थानों में इसे बनाने के तरीके भी अलग-अलग हैं। भारत के अलावा तुर्की, ईरान, उत्तरी इराक आदि स्थानों में भी इस पकवान को बनाया जाता है। क्षेत्र के आधार पर हलीम को हरीस, खिचड़ा आदि नामों से भी जाना जाता है। वर्तमान समय में हलीम हैदराबाद, तेलंगाना, औरंगाबाद, महाराष्ट्र आदि शहरों में भी बहुत लोकप्रिय होता जा रहा है।
हलीम की उत्पत्ति ‘हरीस’ नामक एक अरबी पकवान से हुई है। हरीस की पहली लिखित विधि 10वीं शताब्दी की किताब में है जिसे अरब के लेखक अबू मुहम्मद अल-मुज़फ्फर इब्न सय्यर ने तैयार किया था। ऐसा माना जाता है कि मुगल काल के दौरान विदेशी प्रवासियों द्वारा हलीम भारत लाया गया था। पारंपरिक रूप से यह पकवान मध्यपूर्व एशिया के एक देश यमन का है। ऐसा कहा जाता है कि हलीम को लोकप्रिय बनाने में सुल्तान सैफ नवाज़ जंग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। सुल्तान सैफ नवाज़ जंग तत्कालीन यमन के अल-कुऐती वंश के वंशज थे तथा उन्हें राज्य के प्रमुख रईसों में गिना जाता था। हलीम अरब और फारस (ईरान) वासियों के साथ हैदराबाद आया था। इफ्तार के दिनों में विभिन्न रेस्तरां का यह एक प्रमुख व्यंजन होता है।
समय के साथ-साथ हलीम बिरयानी बनाने की विधि को रूपांतरित कर दिया गया है। किंतु इसका मूल स्वाद वैसा ही है जैसा पहले था। हलीम बनाने के लिए मांस, मसालों, दलिया, दालों आदि का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार यह दलिया, दाल, मांस आदि के संयोजन से बनने वाला इफ्तार का प्रमुख पकवान है। वर्तमान समय में हलीम को नये रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया जा रहा है। किंतु इसकी पारंपरिक विधि को नहीं बदला गया है। यूं तो हलीम गेहूं, जौ, मांस (आमतौर पर कीमा बनाया हुआ मटन या चिकन), दाल और मसाले से बना होता है। किंतु कभी-कभी इसे बनाने के लिए चावल का भी उपयोग किया जाता है। यह व्यंजन सात से आठ घंटे तक धीमी गति से पकाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप मसाले, मांस, जौ और गेहूं आपस में मिलकर के एक पेस्ट (Paste) जैसी संरचना बना लेते हैं।
हलीम को पूरे साल में बाज़ार में स्नैक फूड (Snack food) के रूप में भी बेचा जाता है। रमज़ान और मुहर्रम के महीनों के दौरान, यह विशेष रूप से पाकिस्तानियों और भारतीय मुसलमानों के बीच दुनिया भर में तैयार किया गया एक विशेष व्यंजन है जिसके स्वाद को मेरठ में भी चखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त मेरठ में जैन शिकंजी, हरिया जी की लस्सी, आरके के कबाब, क्वॉलिटी का मक्खन चिकन, रोहताश की कचौरी और जलेबी आदि को भी बहुत पसंद किया जाता है।
संदर्भ:
1.https://eatwithchi.com/what-to-eat-in-meerut-uttar-pradesh-india/
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Haleem
3.http://www.sunday-guardian.com/artbeat/the-history-of-haleem-how-a-bland-iftar-dish-from-yemen-got-indianised
4.https://timesofindia.indiatimes.com/A-culinary-history-of-Haleem/articleshow/15121066.cms
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