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"एक ओंकार सतनाम, करता पुरखु निरभऊ, निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि, जप, आद सच, जुगाद सच, है भी सच, नानक होसे भी सच।"
आज गुरुनानक देव जी की 550वीं जयंती है और इस अवसर पर मेरठ शहर में भी जोर शोर से तैयारियां शुरू की गई है, यहाँ मौजूद गुरुद्वारों में प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में सजावट और लंगर तक की खास तैयारियां की जाती हैं और इस दौरान गुरुद्वारों में विशाल कीर्तन दरबार भी सजाए जाते हैं और इन सब की स्थापना के पीछे संगत का बरसों का संघर्ष और परिश्रम छिपा हुआ है। ज्यादातर सभी गुरुद्वारों की स्थापना वर्ष 1947 यानि आजादी के बाद ही हुई थी। गुरुनानक देव जी का जन्म भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए इस दिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।
सिख धर्म के संस्थापक कहलाने वाले गुरु नानक देव जी दसों गुरुओं में सबसे पहले गुरु हैं। इनके द्वारा ही भक्ति रस के अमृत के बारे में बताया गया और श्री गुरु ग्रंथ साहिब की शुरुआत में मौजूद जपजी साहिब (प्रार्थना) की रचना भी इनके द्वारा ही की गई थी। जाप का पारंपरिक अर्थ सुनाना, दोहराना या जप करना होता है और जप का अर्थ समझना भी होता है। जपजी साहिब की शुरुआत में मूल मंत्र है और उसके बाद 38 पौड़ी (श्लोक) है और यह रचना एक सालोक के साथ समाप्त होती है। यह सिखों द्वारा सबसे महत्वपूर्ण बाणी या छंदों का संग्रह माना जाता है, और यह नितनेम की भी सबसे पहली बाणी है।
जपजी साहिब के पहले श्लोक में कहा गया है कि केवल शरीर की सफाई से मन को साफ नहीं किया जा सकता, केवल मौन से व्यक्ति को शांति नहीं मिल सकती, अकेले भोजन से व्यक्ति किसी की भूख को तृप्त नहीं कर सकता, शुद्ध होने के लिए परमात्मा के प्रेम का पालन करना चाहिए। वहीं दूसरे श्लोक में कहा गया है कि भगवान की आज्ञा से जीवन में उतार-चढ़ाव होता है, वही है जो दुख और सुख का कारण बनते हैं, उनकी आज्ञा से ही पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है, और उनके आदेश से ही कर्म से पुनर्जन्म के सतत चक्र में एक व्यक्ति रहता है।
चौथे श्लोक में कहा गया है कि एक व्यक्ति को उसके पिछले जन्म के अच्छे कर्मों के साथ और भगवान की कृपा से ही मुक्ति का द्वार मिलता है; साथ ही पाँचवे श्लोक में बताया गया है कि उसके पास अनंत गुण हैं, इसलिए हर किसी को उनका नाम गाना, सुनना और उनके प्रति प्रेम भाव रखना चाहिए। गुरु का शब्द वेदों की रक्षा करने वाली ध्वनि और ज्ञान है, गुरु शिव, विष्णु और ब्रह्मा हैं और गुरु मां पार्वती और लक्ष्मी हैं। सभी जीवित प्राणी उसी में निवास करते हैं। श्लोक 6 से 15 शब्द सुनने और विश्वास रखने के मूल्य का वर्णन करते हैं, क्योंकि यह वह विश्वास है जो मुक्ति दिलाता है। श्लोक 16 से 19 तक लिखा गया है कि ईश्वर निराकार और अवर्णनीय है।
श्लोक 21 से 27 तक कहा गया है कि प्रकृति और भगवान के नाम का सम्मान करना चाहिए, साथ ही यह उल्लेख किया गया है कि मनुष्य का जीवन एक नदी की तरह है जो समुद्र की विशालता को नहीं जानता है। हम योगी बोलते हैं, शिव बोलते हैं, मौन ऋषि बोलते हैं, बुद्ध बोलते हैं, कृष्ण बोलते हैं, विनम्र सेवादार बोलते हैं, फिर भी कोई उन्हें दुनिया के सभी शब्दों के साथ पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकता हैं। श्लोक 30 में कहा गया है कि वह सब देखता है, लेकिन कोई भी उसे नहीं देख सकता है। और श्लोक 31 में बताया गया है कि ईश्वर आदिम, शुद्ध प्रकाश, शुरुआत के बिना, अंत के बिना, कभी न बदलने वाला स्थिरांक है।
संदर्भ :-
1. https://www.artofliving.org/wisdom/wssst/message-on-guru-nanak-birthday
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Japji_Sahib
3. https://bit.ly/32u3IGs