रेशम का नाम आते ही मखमली एहसास की अनुभूति होने लगती है। जी हां, रेशम का रूमाल हो या रेशम की शॉल, सदियों से यह अनोखा मुलायाम रेशा इंसान को लुभाता रहा है। रेशम एक प्राकृतिक प्रोटीन फाइबर है, जिसके कुछ रूपों को वस्त्रों में बुना जा सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन रेशम की उत्पति एक कीड़े द्वारा की जाती है। यह रेशम का प्रोटीन फाइबर मुख्य रूप से फाइब्रोइन (fibroin) से बना होता है और कोकून (cocoons) बनाने के लिए कुछ कीट लार्वा द्वारा निर्मित होता है।
रेशम उत्पादन के लिए पाले जाने वाले शहतूत रेशम के कीड़े बॉम्बेक्स मोरी के लार्वा के कोकून से प्राप्त होता है। रेशम का झिलमिलाता रूप रेशम फाइबर की त्रिकोणीय घनक्षेत्र जैसी संरचना के कारण होती है, जो रेशम के कपड़े को विभिन्न कोणों पर आने वाली रोशनी को वापस भेजता है, जिस वजह से विभिन्न रंगों का उत्पादन होता है। रेशम कई कीटों द्वारा निर्मित किया जाता है लेकिन, आमतौर पर कपड़ों के निर्माण के लिए केवल मोथ कैटरपिलर के रेशम का उपयोग किया जाता है। रेशम मुख्य रूप से रूपांतरण के दौर से गुजरने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा निर्मित होता है, लेकिन कुछ कीड़े, जैसे कि वेबस्पिनर और रैस्पी अपने पूरे जीवनकाल में रेशम का उत्पादन करते रहते हैं।
वहीं यदि बात करें रेशम की उत्पत्ति और उपयोग कि तो इसके संबंध में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है। प्राचीन साहित्य दो दृष्टिकोण को बताता है, एक दृष्टिकोण के अनुसार, रेशम उद्योग की उत्पत्ति भारत में पहली बार हिमालय के तल पर हुई थी, और वहाँ से यह विश्व के अन्य देशों में फैल गया था। दूसरा दृष्टिकोण जिसको अधिक स्वीकारा गया है, वह यह कहता है कि रेशम का उद्योग चीन में लगभग 3000 ईशा पूर्व से स्थित है।
भारत में चार प्रकार के रेशम का उत्पादन होता है : शहतूत, तसर, मुगा और एरी। रेशमकीट “बॉम्बीक्स” शहतूत को पौधों के पत्तों का सेवन करते हैं। रेशम के कीड़ों को जंगली पेड़ों पर भी पाया जाता है, जैसे कि एनथीरिया पफिया जो तसर रेशम का निर्माण करता है। एनथीरिया पफिया अनोगीसस लैटिफोलिया, टर्मिनलिया टोमेंटोसा, टर्मिनलिया अर्जुना, लेगरोस्ट्रोइम परविफ्लोरा और मधुका इंडिका जैसे कई पेड़ों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। जंगली रेशमकीट एनथेरा एसैमेन्सिस “मुगा रेशम” का उत्पादन करता है, और एक अन्य जंगली रेशम कीट फिलोसैमिया सिंथिया रिकिनी “एरी रेशम” का उत्पादन करता है। तसर रेशम का अनुमानित वार्षिक उत्पादन 130 टन तक पाया गया है, वहीं अन्य प्रकार के रेशम का उत्पादन 10,000 टन से भी अधिक होता है।
रेशम बनाने की प्रक्रिया
वहीं रेशम का उत्पादन कुछ इस प्रकार से होता है कि इसमें पहले रेशम के कीड़ों को शहतूत के पत्तों का सेवन करने दिया जाता है, और चौथे पर्णपतन के बाद, रेशम के कीड़े पास रखी एक टहनी पर चढ़ते हैं और उनके रेशेदार कोकून को बुनना शुरू कर देते हैं। रेशम एक निरंतर बुना हुआ रेशा होता है जिसमें फाइब्रोइन प्रोटीन होता है, जो प्रत्येक कीड़े के सिर में दो लार ग्रंथियों से स्रावित होता है और साथ ही एक गोंद जिसे सेरिकिन (sericin) कहा जाता है, जो तंतुओं को मजबूत करने में मदद करता है। कोकीन को गर्म पानी में रखकर सिरिकिन को हटा दिया जाता है, जो रेशम के तंतुओं को अलग कर देता है और उन्हें लच्छा बनाने के लिए तैयार किया जाता है। साथ ही गर्म पानी में डालने से उसमें मौजूद रेशम का कीड़ा भी मर जाता है।
महात्मा गांधी अहिंसा (अहिम्सा) दर्शन पर आधारित ("किसी भी जीवित चीज को चोट नहीं पहुंचाने के लिए") रेशम उत्पादन की काफी आलोचना करते थे। उन्होंने "अहिंसा (अहिम्सा) रेशम" को भी बढ़ावा दिया, जिसमें रेशम के कीड़े को उबाले बिना रेशम को प्राप्त किया जाता था।
निम्न अहिंसा (अहिम्सा) रेशम को बनाने की प्रक्रिया निम्न है :-हालांकि बॉम्बीक्स मोरी को ही अहिंसा (अहिम्सा) रेशम बनाने के लिए उपयोग किया जाता है, वहीं कुछ अन्य प्रकार की प्रजातियां भी हैं, जो अहिंसा (अहिम्सा) रेशम की श्रेणी में आती हैं, जो कि आवश्यक रूप से शामिल कीट की प्रजातियों द्वारा नहीं बल्कि कोकून की कटाई के तरीकों से उपयोग की जाती है।
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Wild_silk#Wild_silk_industry_in_India
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Sericulture
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Ahimsa_silk
4. https://bit.ly/2PIO1bs
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Silk
चित्र सन्दर्भ:
1. https://pxhere.com/en/photo/571442
2. https://www.flickr.com/photos/gaby1/34995082675
3. https://cdn.pixabay.com/photo/2015/09/09/14/05/silkworm-931555_960_720.jpg
4. https://www.flickr.com/photos/gaby1/34167427694
5. http://blog.fairtrunk.com/wp-content/uploads/2019/09/Ahimsa_SIlk_header_crop_sm.jpg
6. https://startupfashion.com/ahimsa-silk/
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.