भाई-बहन के बीच का रिश्ता बहुत पवित्र और अटूट होता है। हालांकि भारत में भाई-बहन के बीच के प्रेम को अभिव्यक्त करने लिए यहां बहुत से पर्व मनाए जाते हैं किंतु इन पर्वों में भाई-दूज की अपनी महत्ता है। दीपों के त्यौहार दीपावली के ठीक दो दिन बाद यह पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। क्योंकि यह कार्तिक आमावस्या के ठीक दो दिन बाद आता है इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। यूं तो यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को मज़बूत करने तथा उनके बीच दोस्ती कायम करने का काम करता है किंतु हर परिस्थिति में ऐसा हो यह ज़रूरी नहीं। कुछ भाई-बहन बहुत सरलता से दोस्ती के रिश्ते में बंध जाते हैं या उनकी दोस्ती गहरी हो जाती है किंतु ऐसे भी भाई-बहन हैं जिनकी दोस्ती गहरी होने में काफी समय लगता है। वास्तव में, इन भाई-बहनों के बीच तनावपूर्ण स्थिति होती है। सदाचारी और सामान्य परवरिश विशिष्ट रूप से भाई-बहनों की मित्रता को सक्षम बना सकती है।
दोनों में बचपन से ही प्रेम की भावना को विकसित करना, माता-पिता द्वारा समान रूप से उनका पालन-पोषण, शिक्षा और चरित्र निर्माण करना दोनों के बीच दोस्ती के रिश्ते को गहरा करने में सहायक हो सकता है। निश्चित रूप से उन्हें एक दूसरे को जानने के लिए एक अच्छा और लंबा अवसर मिलना चाहिए ताकि वे भाई-बहन होने के साथ-साथ एक दूसरे के गहरे दोस्त भी बन पायें। इस रिश्ते को कायम करने में माता-पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है अतः उन्हें समान रूप से दोनों की ओर ध्यान देना आवश्यक है। सामंजस्य के लिए विनम्रता, क्षमा आदि गुणों का विकसित होना आवश्यक है। भाई-दूज जैसे पर्व इस रिश्ते को और भी मज़बूत और गहरा करने का प्रयास करते हैं क्योंकि यह पर्व दोनों के बीच प्रेम का प्रतीक है। देश के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे महाराष्ट्र में इसे भाऊ बीज, नेपाल में भाई टीका, बंगाल में भतरु द्वितीया, भाऊ-दीज, भाई फोटा और मणिपुर में निंगोल चकुबा। इस शुभ दिन पर, बहनें अपने भाइयों के लिए अच्छे स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं, और भाई बदले में उनके प्रति अपना प्यार और स्नेह प्रकट करने के लिए उपहार भेंट करते हैं। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं छिपी हुई हैं। एक कथा के अनुसार एक बार मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन से मुलाकात करने गये। उनकी बहन यमी, जिन्हें यमुना के नाम से भी जाना जाता है, ने उनका स्वागत आरती के साथ किया और माथे पर तिलक लगाकर उन्हें मिठाई खिलाई। बदले में यम ने अपनी बहन को प्रेम और स्नेह के प्रतीक के रूप में एक सुंदर उपहार दिया तथा यह घोषणा की, कि जो कोई भी इस दिन अपनी बहन से आरती और तिलक प्राप्त करेगा उसे कभी भी मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं होगी। इसलिए देश के कई हिस्सों में इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त एक अन्य कहानी के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने राक्षस राजा नरकासुर का वध किया तो उसके बाद उनकी बहन सुभद्रा ने भगवान कृष्ण का आरती, तिलक, मिठाई और फूलों से स्वागत किया। पर्व के संदर्भ में एक किंवदंती यह भी है कि जब जैन धर्म के संस्थापक महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया, तो उनके भाई राजा नंदीवर्धन उनकी याद में बहुत व्याकुल हुए। इस समय उनकी बहन सुदर्शना द्वारा ही उन्हें सांत्वना दी गयी थी जिस कारण वे व्याकुलता से उभर पाये थे। तब से, भाई दूज के दौरान महिलाएं पूजनीय रही हैं। पर्व में बहनों द्वारा भाइयों के माथे पर एक शुभ तिलक या सिंदूर लगाया जाता है जो प्रेम की निशानी और बुरी ताकतों से सुरक्षा का प्रतीक है। इसके बाद भाई की आरती उतारकर उसे मीठा खिलाया जाता है। भाई भी अपनी बहनों को उपहार देकर अपने प्रेम का इज़हार करते हैं। यह एक अद्भुत महत्वपूर्ण पर्व है जिसमें बहनें अपने प्यारे भाई की लंबी उम्र, कल्याण और समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। भाई-दूज का यह पर्व विभिन्न भाई-बहनों के बीच शाश्वत प्रेम को परिभाषित करता है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.