क्या आप एक ऐसी स्थिति की कल्पना कर सकते हैं जहां आपको उचित भोजन के लिए संघर्ष करना पड़े? आपके लिए यह अजीब हो सकता है किंतु कई राष्ट्रों में बहुत से लोगों की स्थिति कुछ ऐसी ही है। इन राष्ट्रों के लिए खाद्य संसाधनों का प्रबंधन करना बहुत बड़ा मुद्दा है। भारत में भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जो अकाल और सूखे की चपेट में हैं जिस कारण भुखमरी की समस्या भी बढ़ रही है। विश्व भर की इस समस्या से निपटने के लिए सटीक तरीके से खाद्य सुरक्षा, भंडारण और प्रबंधन के महत्व को समझना आवश्यक है। आज 16 अक्टूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जा रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में, विशेष रूप से संकट के समय में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना है। खाद्य सुरक्षा शब्द से आशय केवल भोजन की सुरक्षा से नहीं बल्कि विश्व भर की आबादी को पर्याप्त भोजन उपलब्ध करवाने की अवधारणा से भी है। सरल शब्दों में यह वो अवधारणा है जो दीर्घकालिक रूप से पर्याप्त खाद्य आपूर्ति व्यवस्था की गारंटी (Guarantee) को प्रोत्साहित करती है।
निम्नलिखित चार पहलू खाद्य सुरक्षा की परिभाषा और उद्देश्य को पूर्ण रूप से उजागर करते हैं:
• जीवित रहने के लिए सभी के लिए पर्याप्त मात्रा में अनाज उपलब्ध करना।
• दालों और अनाज की पर्याप्त उपलब्धता।
• दाल, अनाज, दूध और दूध से बने उत्पादों को सभी के भोजन में शामिल करना।
• सब्जियां, फल, मछली, मांस और अंडे को भी भोजन में शामिल करना।
इस दिवस का आयोजन 1979 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के सदस्य राष्ट्रों के द्वारा शुरू किया गया था और तब से यह उपरोक्त लक्ष्यों के साथ अग्रसर है। यह दिवस खाद्य और कृषि संगठन के महत्व को तो दर्शाता ही है किंतु दुनिया भर में सभी के लिए पर्याप्त भोजन आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को उन्नत कृषि नीतियों और भोजन प्रबंधन को लागू करने हेतु प्रोत्साहित भी करता है। दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) को नामित किया गया है।
भारत में खाद्य सुरक्षा एक प्रमुख चिंता रही है। संयुक्त राष्ट्र-भारत के अनुसार, भारत में लगभग 19.5 करोड़ लोग भोजन की अनुपलब्धता के कारण कुपोषित हैं। पूरी दुनिया में भूख से ग्रसित लोगों का लगभग एक चौथाई हिस्सा यहां निवास करता है। इसके अलावा, भारत में लगभग 43% बच्चे ऐसे हैं जो कुपोषण का शिकार हैं। भारत खाद्य सुरक्षा सूचकांक के मामले में 113 प्रमुख देशों में से 74वें स्थान पर है। हालांकि उपलब्ध पोषण मानक, आवश्यकता का 100% हैं किंतु भारत प्रोटीन (Protein) युक्त खाद्य उत्पादों जैसे अंडे, मांस, मछली, चिकन, आदि को उचित कीमतों पर उपलब्ध करवाने में असमर्थ है। देश के प्रत्येक नागरिक को भोजन का अधिकार प्रदान करने के लिए, भारत की संसद ने 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पारित किया जिसे खाद्य अधिकार कानून भी कहा जाता है। इस अधिनियम के तहत भारत की 1.2 अरब आबादी के लगभग दो तिहाई लोगों को कम कीमत पर अनाज प्रदान करने का प्रावधान है।
खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कुछ नियम भी बनाए गये हैं जोकि निम्नलिखित हैं:
केंद्रीय योजनाएँ: इसके अंतर्गत मध्यान्ह भोजन योजना, एकीकृत बाल विकास सेवा योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली शामिल हैं। इसके अतिरिक्त मातृत्व अधिकार का भी प्रावधान है जिसमें गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों को दैनिक मुफ्त अनाज की पात्रता दी गयी है।
राज्य योजनाएँ: राज्य योजनाओं के अंतर्गत राज्य सरकार खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अपने स्तर पर मुफ्त में या कम कीमतों पर भोजन उपलब्ध करवाती है। जैसे तमिलनाडु सरकार ने अम्मा उनावगम (माता का भोजनालय) शुरू किया है, जिसे सामान्यतः अम्मा कैंटीन (Canteen) कहा जाता है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2012 पारित किया गया।
भारत में खाद्य सुरक्षा को सफल बनाने के लिए तीन आयामों की पूर्ति आवश्यक है:
• सभी व्यक्तियों के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध करवाना
• भोजन की पहुंच में आने वाले अवरोधों को समाप्त करना
• अच्छी गुणवत्ता वाले भोजन की कीमत को कम करना तकि सभी उसे खरीदने में सक्षम हो सकें।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन ने भारत में अनाज और दालों के उत्पादन को बढ़ाने की नींव रखी है। यह खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की क्षमता को प्रोत्साहित करता है ताकि खाद्यान्न स्रोतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता को कम किया जा सके। इसका सतत विकास लक्ष्य भुखमरी का अंत करना, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण प्राप्त करना और स्थायी कृषि को बढ़ावा देना है। वर्तमान में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन पूरी तरह से लोगों को स्वस्थ आहार उपलब्ध करवाने पर केंद्रित है। स्वस्थ आहार से तात्पर्य ऐसे पौष्टिक खाद्य पदार्थों से है जो शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक हों। कई लोगों के लिए यह उपलब्ध नहीं है जिस कारण इस बात पर आज ज़ोर दिया जा रहा है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को व्यक्तिगत स्तर पर भी बढ़ावा दिया जा सकता है। जैसे:
• अपने आहार में सब्जियों, फलों, फलियों और साबुत अनाज आदि को शामिल किया जाए।
• परिष्कृत स्टार्च (Starch), चीनी, वसा और नमक के अधिक प्रयोग पर कटौती की जाए।
• अधिक पौष्टिक विकल्पों को आहार में सुनिश्चित किया जाए।
• उन खाद्य पदार्थों को खरीदने से बचा जाए जिनमें अधिक मात्रा में पैकेजिंग (Packaging) हो तथा उत्पाद बस नाममात्र का हो।
संदर्भ:
1.http://www.fao.org/world-food-day/theme/en/
2.http://www.fao.org/world-food-day
3.https://sustainabledevelopment.un.org/topics/foodagriculture
4.https://www.unicef.org/reports/state-of-food-security-and-nutrition-2019
5.https://en.wikipedia.org/wiki/Food_security_in_India
6.https://www.toppr.com/guides/economics/food-security-in-india/food-security/
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