भारत एक ऐसा देश है जहां त्यौहारों में बहुत विविधता देखने को मिलती है और यह विविधता हमारे पकवानों, ख़ास करके मिठाइयों में भी मौजूद है। ‘पेड़ा’ भी एक प्रकार की मिठाई है। ऐसा कोई भी त्यौहार नहीं है जिसमें इस मिठाई का उपयोग न किया जाता हो और विशेषकर जब बात किसी धार्मिक अनुष्ठान की हो तो यह प्रसाद के रूप में हर जगह वितरित किया जाता है। जब भी घर पर कोई पूजा या अन्य किसी समारोह का आयोजन किया जाता है तो इस मिठाई को अन्य मिठाईयों के साथ ज़रूर शामिल किया जाता है। यह स्वादिष्ट मिठाई भारतीय उपमहाद्वीप की है और इसे पूरे भारत में बहुत लोगों द्वारा पसंद किया जाता है, विशेषकर धारवाड़ पेड़ा को।
कर्नाटक का धारवाड़ पेड़ा पूरे देश भर में प्रसिद्ध है। कई लोगों को लगता है कि इस स्वादिष्ट मिठाई की उत्पत्ति धारवाड़ में हुई। किंतु आपको बता दें कि इसकी उत्पत्ति असल में धारवाड़ में नहीं बल्कि मथुरा में हुई थी। मूल रूप से यह मिठाई उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर की है जो बाद में धारवाड़ में विस्थापित हुई। इस मिठाई का इतिहास लगभग 175 साल पुराना है जिसे सबसे पहले लखनऊ के राम रतन सिंह ठाकुर ने बनाना और बेचना शुरू किया था। मूल रूप से उन्नाव के रहने वाले राम रतन सिंह ठाकुर 19वीं शताब्दी के शुरूआती वर्षों में क्षेत्र में प्लेग (Plague) फैलने के कारण कर्नाटक के धारवाड़ में आकर बस गये और फिर यहीं इस मिठाई का उत्पादन और विकास किया जिस कारण यह तब से धारवाड़ पेड़ा के रूप विख्यात हुई। राम रतन सिंह ठाकुर इस मिठाई को शुद्ध गाय के दूध से बनाते थे हालांकि इसे बनाने के लिए अब भैंस का दूध भी उपयोग किया जाने लगा है।
अपने प्रसिद्ध संगीतकारों के बाद धारवाड़ को अब इस पेड़े के लिए जाना जाने लगा है। धारवाड़ पेड़ा को बनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मुख्य सामग्री में खोया, चीनी, इलायची, केसर आदि को शामिल किया जाता है जो इसे बहुत ही स्वादिष्ट बनाती हैं। अन्य क्षेत्रों में पेड़े को विविध नामों जैसे पेंडा, पेरा, पेडा आदि नामों से भी जाना जाता है। महाराष्ट्र का कांडी पेडा भी काफ़ी लोकप्रिय माना जाता है। इन सभी में धारवाड़ पेड़ा प्रमुख है जिसे भौगोलिक सांकेतिक टैग (GI Tag) भी दिया गया है। राम रतन सिंह ठाकुर के इस पारिवारिक व्यवसाय को उनके पोते बाबू सिंह ठाकुर द्वारा आगे बढ़ाया गया जिसे अब स्थानीय रूप से "लाइन बाज़ार पेड़ा" भी कहा जाने लगा है। अब यह मिठाई विश्व व्यापक हो चुकी है जिनमें से अधिकांश की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश से ही हुई है।
किसी भी चीज़ की लोकप्रियता उसकी बिक्री और उपभोग से पता चलती है। मूल रूप से मथुरा का यह धारवाड़ पेड़ा वर्षों पहले रोज़ाना लगभग 10 किलो की मात्रा में ही बनाया जाता था जिसके लिए लोग सुबह के 5 बजे से कतार में खड़े हो जाते थे और दुकान खुलते ही केवल 1 घंटे में सारा पेड़ा समाप्त हो जाता था। इस बात से इसके स्वाद और इसकी लोकप्रियता का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Peda
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Dharwad_pedha
3. https://www.inditales.com/dharwad-pedha/
4. https://www.thehindu.com/features/metroplus/Food/in-search-of-dharwad-pedha/article3844209.ece
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.indiamart.com/proddetail/dharwad-pedha-11563389788.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Dharwad_pedha
3. https://www.indiamart.com/jadhavpawar-kandi-pedewale/products.html#kandi-pedha
4. https://www.amazon.in/Brijwasi-Sweets-Mathura-Peda-Grams/dp/B07JYKJCYX
5. https://www.youtube.com/watch?v=Ztr0Q652nAY
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