भारतीय रेल आज दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्कों (Rail Networks) में से एक है। यह एक बड़ी आबादी को नौकरी मुहैया कराती है और इसके साथ ही भारत की सबसे ज़्यादा भीड़ रेल मार्ग से ही सफ़र करती है जिसकी सालाना संख्या करोड़ों में है। यह विभाग मूलतः सरकारी तंत्र द्वारा ही चालित है। अभी हाल ही में सरकार ने रेलवे के निजीकरण की कई बड़ी योजनाओं की घोषणा की है। इसके तहत कई रेलवे स्टेशनों को निजी कम्पनियों को देने की कवायद की जा रही है। अभी कुछ वर्ष पहले ही भोपाल के हबीबगंज स्टेशन को निजी कंपनी के हाथ में दे दिया गया है जहाँ पर कई इमारतों आदि का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है। जैसा कि निजीकरण की बात है, तो बहुत कम लोगों को ही पता है कि भारत में पहले से ही कुछ हिस्सों में निजी तौर पर रेल सेवायें चालू थीं। तो आइये उसी के बारे में थोड़ा अध्ययन करते हैं।
निजी रेलवे जो कि आज भी कार्यरत है, उसका नाम है ‘शकुंतला रेलवे’। आइये जानते हैं शकुंतला रेलवे के बारे में। हुआ कुछ यूँ कि सन 1952 में समस्त भारत की तमाम रेलवे लाइनें व ट्रेनों का सरकारीकरण हो रहा था उस समय महाराष्ट्र के विदर्भ में स्थित एक रेलवे लाइन छूट गयी जिसका नाम था शकुंतला रेलवे। शकुंतला रेल अंग्रेज़ों के काल की उन कुछ बची हुई रेलवे की निशानी है जिसे अंग्रेज़ों ने बनवाया था। यह रेल आज भी एक निजी रेल लाइन पर दौड़ती है। यह यवतमाल से लेकर अचलपुर के मध्य चलती है जिसके बीच की दूरी 190 किलोमीटर है और ट्रेन के दौड़ने की औसत गति कुछ 20 किलोमीटर प्रतिघंटा है। यह ट्रेन गरीबों के लिए एक जीवन रेखा का कार्य करती है।
1910 का वह दौर था जब रेल लाइनें निजी कंपनियाँ (Companies) बिछाया करती थीं उसी दौर में शकुंतला रेल की भी नीव एक ब्रिटिश कंपनी ने रखी जिसका नाम था किल्लिक-निक्सन (Killick-Nixon)। इस कंपनी ने ब्रिटश भारत सरकार के संयुक्त तत्वाधान के अंतर्गत कार्य कर के सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी (Central Province Railway Company - CPRC) की नीव रखी। यह लाइन बनाने का मुख्य कार्य था विदर्भ क्षेत्र से रूई को बम्बई के बंदरगाह तक भेजना और फिर वहां से रूई मेनचेस्टर (इंग्लैंड) में भेजा जाना। शुरूआती दौर में इस लाइन पर मात्र मालगाड़ी दौड़ती थी परन्तु बाद में यह सवारी भी लेने का कार्य करने लगी। इस लाइन पर पहले जो ट्रेने दौड़ाई जाती थी वो ग्रेट इंडियन पेनिनसुलर रेलवे (Great Indian Peninsular Railway - GIPR) द्वारा चलवाई जाती थी। आज़ादी के बाद जी. आई. पी. आर. भारतीय रेल का हिस्सा हो गया परन्तु शकुंतला रेलवे आज भी सी. पी. आर. सी. के अंतर्गत ही आती है। सी. आर. पी. सी. आज भी किल्लिक-निक्सन के ही मालिकाने हक़ में आता है।
यह ट्रेन पहले भाप के इंजन (Engine) से चलती थी जिसे अप्रैल 15, 1994 को हटा दिया गया था और उसकी जगह पर डीज़ल (Diesel) का इंजन लगा दिया गया। आज ये रेलवे लाइन मध्य रेल के भुसावल रेल क्षेत्र के अंतर्गत आता है, इन लाइनों पर जो वर्तमान में ट्रेन चलाई जाती है, वह भारतीय रेल की है और लाइन का प्रयोग करने के लिए आज भी रेल विभाग सी. पी. आर. सी. को पैसे देती है। भारतीय रेल और सी. पी. आर. सी. के मध्य प्रत्येक 10 वर्ष पर करार होता है। हाल ही में इस ट्रेन की लाइन को ब्रॉड गेज (Broad Gauge) बनाने के लिए सरकार ने 1,500 करोड़ रूपए देने की घोषणा की है। यह रेल लाइन फिलहाल नैरो गेज (Narrow Gauge) की है। निजी रेल की बात की जाए तो अमेरिका, कनाडा, ब्राज़ील, संयुक्त अरब अमीरात में निजी रेल सेवायें चलती हैं और इटली, जापान, जर्मनी आदि देशों में सरकारी और निजी दोनों के संयोग से रेल सेवायें दी जाती हैं। भारत में भी निजी और सरकारी दोनों के संयोग से रेल में कई सेवायें प्रदत्त हैं।
संदर्भ:
1. https://www.quora.com/Which-countries-have-privatised-railways
2. https://bit.ly/2M68chk
3. https://bit.ly/328qZ1g
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Shakuntala_Railway
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.youtube.com/watch?v=ldrOGfrd79o
2. https://bit.ly/2MwRhUr
3. https://bit.ly/318J269
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.