दशहरा अर्थात असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म तथा बुराई पर अच्छाई की जीत। यह एक ऐसा पर्व है जो निरंतर सत्य और धर्म के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है क्योंकि यह सर्वविदित है कि इस दिन भगवान राम ने रावण को मारकर लोगों को भयमुक्त किया और रावण की बुराई और अधर्म का अंत करके यह संदेश दिया कि बुराई पर अच्छाई की सदैव जीत होती है। यह त्यौहार पूरे देश में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। जहां भगवान राम की पूजा की जाती है वहीं सांय काल में रावण के पुतले जलाए जाते हैं। किंतु क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में ऐसे कई स्थान हैं जहां दशहरा के दिन रावण को जलाया नहीं बल्कि उसकी पूजा की जाती है। यह जानकर आप अवश्य ही आश्चर्य-चकित हुए होंगे। दरअसल इन क्षेत्रों में रावण की पूजा के पीछे कई किवदंतियां मौजूद हैं। यहाँ तक कि हमारा मेरठ भी इन स्थानों में से एक है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर यह स्थान कौन से हैं और यहां रावण की पूजा क्यों की जाती है?
मंदसौर, मध्य प्रदेश
मंदसौर मध्य प्रदेश-राजस्थान सीमा पर स्थित है। रामायण के अनुसार, मंदसौर रावण की पत्नी मंदोदरी का पैतृक घर था और मंदोदरी से विवाह के कारण रावण मंदसौर का दामाद बना। इसलिए यहाँ उन्हें भगवान शिव के प्रति उनके अद्वितीय ज्ञान और समर्पण के लिए पूजा जाता है। यहां रावण की 35 फुट ऊंची प्रतिमा भी है। दशहरे के दिन यहां के लोग रावण की मृत्यु पर शोक मनाते हैं और प्रार्थना करते हैं।
बिसरख, उत्तर प्रदेश
बिसरख का नाम ऋषि विश्रव के नाम से व्युत्पन्न हुआ है जोकि दानव राजा रावण के पिता थे। बिसरख रावण का जन्मस्थान है और यहां उसे महा-ब्राह्मण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि विश्रव ने यहां खुद से एक शिव लिंग प्रकट किया था। इस प्रकार यहां के स्थानीय लोग ऋषि विश्रव और रावण का सम्मान और उनकी पूजा करते हैं। नवरात्रि उत्सव के दौरान यहां रावण की दिवंगत आत्मा के लिए यज्ञ और शांति प्रार्थना की जाती है।
गढ़चिरौली, महाराष्ट्र
यहां के गोंड आदिवासी दशानन यानि रावण और उसके पुत्र मेघनाद को भगवान के रूप में पूजते हैं। इनका मानना है कि रावण को कभी भी वाल्मीकि रामायण में चित्रित नहीं किया गया था और ऋषि वाल्मीकि ने स्पष्ट रूप से यह उल्लेखित किया था कि रावण ने सीता के साथ कुछ भी गलत या दुर्भावनापूर्ण नहीं किया। किंतु तुलसीदास रचित रामायण में रावण को एक क्रूर और शैतानी राजा के रूप में उल्लेखित किया गया।
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के इस खूबसूरत स्थान में भी रावण दहन नहीं मनाया जाता। ऐसा माना जाता है कि रावण ने अपनी भक्ति और तपस्या से बैजनाथ, कांगड़ा में भगवान शिव को प्रसन्न किया था जहां भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया। तभी से रावण भगवान शिव के एक महान भक्त के रूप में प्रतिष्ठित हो गये।
मांड्या और कोलर, कर्नाटक
यहां भगवान शिव के कई मंदिर हैं जहां भगवान शिव के साथ उनकी अगाध भक्ति के लिए रावण की भी पूजा की जाती है। फसल उत्सव के दौरान, कर्नाटक के कोलर जिले के लोगों द्वारा लंकादिपति रावण की पूजा की जाती है। इसी तरह कर्नाटक के मांड्या जिले के मालवल्ली तालुका में भी भगवान शिव के प्रति समर्पण की भावना रखने के लिए हिंदू भक्तों द्वारा रावण के मंदिर का दौरा किया जाता है।
जोधपुर, राजस्थान
कहा जाता है कि जोधपुर, राजस्थान के मौदगिल ब्राह्मण रावण के साथ लंका से तब आये जब रावण का मंदोदरी से विवाह हो रहा था। यहां रावण के पुतले जलाने के बजाय मौदगिल ब्राह्मणों के वंशजों द्वारा श्राद्ध और पिंड दान जैसे रीति-रिवाज़ निभाए जाते हैं।
चिखली:
यह उज्जैन जिले का एक गाँव है जहाँ रावण के पुतले को जलाया नहीं जाता। तथा उसकी मूर्ति रूप में पूजा की जाती है। ग्रामीणों का मानना है कि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो गाँव में प्राकृतिक आपदा आ जायेगी तथा सब कुछ खत्म हो जाएगा।
काकीनाडा:
आंध्र प्रदेश में स्थित, काकीनाडा उन कुछ स्थानों में से एक है जहाँ रावण का मंदिर मौजूद है। रावण की पूजा यहाँ ज़्यादातर मछुआरों के समुदाय द्वारा की जाती है।
मेरठ में भी कई स्थान ऐसे हैं जहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है। माना जाता है कि रावण का ससुराल मेरठ में है जिस कारण यहां राम और रावण दोनों के अनुयायी रहते हैं। इसलिए यहां रावण की पूजा भी होती है और रावण का पुतला भी फूंका जाता है। मेरठ का प्राचीन नाम मयराष्ट्र है और इसे लंकेश की महारानी मंदोदरी का पीहर कहा जाता है। मेरठ में रावण से जुड़ी किंवदंती यह है कि यह शहर रावण का ससुराल और उसकी पत्नी मंदोदरी का मायका है। मायके के नाम से ही इसे प्राचीनकाल में मयराष्ट्र और फिर मेरठ कहा जाने लगा। यहां रावण की पूजा दामाद के रूप में नहीं, बल्कि अपने काल के महाविद्वान और परमज्ञानी होने के रूप में की जाती है। दशहरे के दिन सुबह घर के लोग अनुष्ठान करते हैं जिसमें एक लकड़ी के पटरे पर रावण के 10 सिर बनाए जाते हैं। रावण के 10 सिर गाय के गोबर से स्थापित किए जाते हैं और फिर मंत्रोच्चारण के साथ इन सिरों की पूजा की जाती है। घर के लोग, खास करके पढ़ने-लिखने वाले बच्चे, इस पूजा के माध्यम से रावण से बुद्धि और ज्ञान का दान मांगते हैं। रावण की इस पूजा के बाद गाय के गोबर से बनाए हुए सिरों को बहते जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। शाम को रामलीला के मंचन के साथ रावण के पुतले फूंके जाते हैं। यहां के लोग कहते हैं कि भगवान राम ने रावण के वध के बाद लक्ष्मण से रावण के चरणों की ओर खड़े होकर ज्ञान मांगने को कहा। श्रीराम के अनुयाई आज भी इस पूजा के ज़रिए रावण से ज्ञान की अभिलाषा रखते हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2pL2Gbg
2. https://bit.ly/35cbirL
3. https://bit.ly/2LWMSep
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