कबूतरों का नाम सुनते ही हिंदी फिल्मों का एक अत्यंत ही मशहूर गाना याद आ जाता है- ‘कबूतर जा जा जा कबूतर जा’। कबूतरों को सन्देश वाहक के रूप में जाना जाता है। कबूतरों में एक खास आदत पायी जाती है और वो यह है कि ये अपने घर तक लौटने में सक्षम होते हैं और यही कारण है की इन्हें एक कुशल सन्देश वाहक के रूप में देखा जाता है। कबूतरों को सैन्य गतिविधियों के लिए भी प्रयोग में लाया जाता रहा है और ऐसे कबूतरों को ‘वॉर पिजन’ (War Pigeon) अर्थात युद्ध के कबूतर के नाम से जाना जाता है। ऐतिहासिक रूप से यदि देखा जाए तो फारसियों ने पक्षियों को प्रशिक्षित करना शुरू किया था और एक अन्य लेख के अनुसार रोमनों ने करीब 2000 वर्ष पहले सन्देश भेजने और सन्देश पाने के लिए कबूतर को सन्देश दूतों का प्रयोग किया था।
इतिहासकार फ्रंटीनस के अनुसार जूलियस सीज़र ने गॉल की विजय में दूतों के रूप में कबूतरों का प्रयोग किया था। यूनानियों ने तो ओलंपिक खेलों के विजेताओं के नामों को कबूतरों के ज़रिये ही उनके शहरों तक पहुंचाया था। 12वीं शताब्दी के बग़दाद में भी कबूतरों को सन्देश वाहक के रूप में उपयोग में लाया गया था। नौसेना के पादरी हेनरी टेयोंगे यहाँ तक कहते हैं कि अलेप्पो और अन्य देशों के बीच कबूतर डाक का प्रयोग व्यापारियों द्वारा किया जाता रहा है। भारत में मुगलों ने भी कबूतर डाक सेवा का प्रयोग किया था।
वर्तमान जगत की तरह के संचार मध्यकाल में न होने के कारण कबूतर एक ऐसी सेवा प्रदान करते थे जो कि अत्यंत तीव्र थी। उस समय में किसी भी प्रकार की गुप्त जानकारी को भी प्रेषित करने के लिए कबूतरों की ही मदद ली जाती थी। कारण यह था कि यदि किसी राज्य या देश पर कोई हमला होने वाला रहता था और जासूसों को इसकी भनक लग जाती थी तो कबूतर ही एक ऐसी सेवा प्रदान करते थे जो कि अत्यंत तीव्र होती थी जिससे उस राज्य या देश के लोग सतर्क हो जाते थे।
कबूतरों के सन्देश वाहक होने का प्रयोग स्टॉक (Stock) की कीमतों और शेयर (Share) बाज़ार के आंकड़ों को भी जानने और बताने के लिए किया गया था। कबूतर मध्य काल के सबसे ज़्यादा प्रचलित संचार तंत्र के रूप में भी जाने जाते थे। टेलीग्राफ (Telegraph) और अन्य सेवाओं के आ जाने के बाद कबूतरों का प्रयोग अत्यंत कम हो गया और वे एक सीमित दूरी तक ही सिमट के रह गए और कालांतर में उनका पूर्ण रूप से लोप हो गया। वर्तमान में राफ्टिंग फोटोग्राफी (Rafting Photography) में अभी भी कबूतरों का प्रयोग किया जाता है।
वहीं उड़ीसा पुलिस ने कबूतरों की एक चौकी बना कर रखी है जिसकी शुरुवात सन 1946 में हुयी थी जिसमें 200 कबूतरों को सेना के द्वारा दान में दिया गया था। इन कबूतरों का मुख्य प्रयोग इस प्रकार से था कि जहाँ पर डाक या अन्य संचार सुविधा उपलब्ध नहीं थी वहाँ पर संपर्क बनाए रखना। एक कागज़ पर सन्देश लिख कर उसे एक कैप्सूलनुमा बक्से में भरकर कबूतर के पैर से बांधकर भेजा जाना कबूतरों द्वारा कराया जाता था। अप्रैल 13 1948 में उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने संबलपुर से एक कबूतर के द्वारा एक सन्देश कटक में स्थित राज्य कर्मचारियों को भेजा। यह पहले पहाड़ी क्षेत्र के कोरापुट जिले में शुरू हुआ और जल्द ही कबूतर पुलिस मुख्यालय को कटक में बसा दिया गया और यहाँ पर बेल्जियन होमर कबूतरों के प्रजनन का केंद्र स्थापित किया गया।
कबूतरों का प्रशिक्षण जब वे 6 सप्ताह के हो जाते हैं तब से शुरू किया जाता है और उनके स्थानों को चिह्नित करना तथा उनके उड़ने की दिशा का चयन करना सिखाया जाता है। एक बार वे पूर्ण रूप से प्रशिक्षित हो जाते हैं तब उसके बाद उनको उस हवालदार की आवाज़ से परिचित कराया जाता है जिसको सन्देश पहुँचाना है और जो सन्देश पंहुचा रहा है। ये कबूतर 1982 में अत्यंत सहायक हुए थे जब एक बड़ी बाढ़ से बाकी के संचार तंत्र पूर्ण रूप से अस्त व्यस्त हो गए थे। 1999 के चक्रवात के दौरान भी कबूतरों ने अत्यंत ही महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया था। यह चौकी आज भी अनवरत कार्य कर रही है और कबूतर अपनी सेवाएं प्रदान करने में पीछे नहीं हैं। रामपुर भी अपने कबूतरों के लिए जाना जाता है यहाँ पर कई नस्ल के कबूतर पाए जाते हैं जैसे कि हरियल, गोला, याहू कापुचिन आदि। ये सभी कबूतर यहाँ की खूबसूरती में चार चाँद लगाने का कार्य करते हैं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Pigeon_post#Great_Barrier_Island_(New_Zealand)
2. https://www.thebetterindia.com/138025/odisha-police-pigeon-service-india/
3. https://bit.ly/2nVHT3R
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.amazon.com/FRANCE-Siege-Paris-Prussia-AVIATION/dp/B07N5ZD1QH
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Pigeon_post
3. https://pixabay.com/images/search/pigeon/
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