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विश्व की कई सभ्यताओं के साथ-साथ प्राचीन काल से ही भारत में खेलों की एक समृद्ध परंपरा रही है। ये खेल पीढ़ी दर पीढ़ी और सांस्कृतिक माध्यमों के द्वारा न केवल मनोरंजन के लिए, बल्कि मानसिक क्षमताओं के विकास और शरीर को चुस्त दुरुस्त बनाए रखने के लिए भी खेले जाते रहे हैं। ऐसे ही मानसिक क्षमताओं के विकास के लिए प्राचीन समय में ‘पच्चीसी’ और ‘चौपड़’ खेलों को खेला जाता था।
पच्चीसी खेल का इतिहास और नियम
पच्चीसी एक तिरछे और गोल आकार का बोर्ड गेम (Board game) है जिसकी उत्पत्ति मध्यकालीन भारत में हुई थी और इसे "भारत का राष्ट्रीय खेल" के रूप में वर्णित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि पच्चीसी का खेल भगवान शिव और देवी पार्वती द्वारा भी खेला जाता था। उत्तर भारत के फतेहपुर सीकरी में 16वीं सदी में इसे अकबर के दरबार में भी खेला जाता था। दरबार को ही लाल और सफेद वर्गों में विभाजित किया हुआ था और दासों को खिलाड़ियों की गोटी के रंग के कपड़े पहनाए जाते थे, जो पासे के अनुसार चाल चलते थे। 1938 में, अमरीकी खिलौना कंपनी ट्रांसोग्राम (Transogram) ने बाज़ार में बेचने योग्य इस बोर्ड गेम संस्करण की शुरुआत की, जिसे गेम ऑफ इंडिया (Game of India) नाम दिया गया। उसे बाद में पा-चिज़-सी: द गेम ऑफ़ इंडिया (Pa-Chiz-Si: The Game of India) के रूप में विपणन किया गया था।
पच्चीसी को दो, तीन या चार खिलाड़ियों के साथ खेला जाता है, चार आमतौर पर दो टीमों में खेलते हैं। एक टीम के पास पीली और काली गोटियाँ होती हैं, वहीं दूसरी टीम में लाल और हरे रंग की गोटियाँ होती हैं। जो टीम अपने सभी टुकड़ों को सबसे पहले अंतिम स्थान पर ले जाती है, वह खेल जीत जाती है। इस खेल के बोर्ड को आमतौर पर कपड़े पर कढ़ाई करके बनाया जाता है। खेल का क्षेत्र क्रॉस (Cross X) या प्लस (Plus +) के आकार का होता है। केंद्र में एक बड़ा वर्ग होता है, जिसे चरकोनी कहा जाता है। यह गोटियों का शुरुआती और अंतिम स्थान होता है।
प्रत्येक खिलाड़ी का उद्देश्य अपनी सभी चार गोटियों को पूरी तरह से एक बार बोर्ड के चारों ओर (काउंटर-क्लॉकवाइज़ / Counter-clockwise अर्थात घड़ी की सुईं की दिशा के विपरीत) ले जाना होता है। प्रत्येक खिलाड़ी द्वारा पासा फेंकने पर खेलने का क्रम तय किया जाता है। उच्चतम अंक वाला खिलाड़ी दुबारा से शुरू करता है, और बोर्ड के चारों ओर काउंटर-क्लॉकवाइज़ खेलना आरंभ करता है। कुछ संस्करणों में, प्रत्येक खिलाड़ी पासे को फेंकता है और 2, 3 या 4 आने तक गोटी को आगे नहीं बढ़ाते हैं। इसे खेलने के कई सारे संस्करण मौजूद हैं।
चौपड़ खेल का इतिहास और नियम
वहीं चौपड़ की उत्पत्ति भारत में पच्चीसी के खेल से हुई थी। चौपड़ को युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच महाकाव्य महाभारत में खेले गए पासे वाले खेल का रूपांतर भी माना जाता है। इस खेल को अधिकतम चार खिलाड़ी खेलते हैं। प्रत्येक एक पट्टी के सामने बैठते हैं और पट्टी के केंद्र को घर कहा जाता है। शुरू करने के लिए, प्रत्येक खिलाड़ी को पासे को फेंकना होता है। उच्चतम अंकों वाला खिलाड़ी पहले शुरू करता है। एक खिलाड़ी खेल में अपनी गोटी तभी ला सकता है जब उसके पास ‘उचित’ अंक हों, जैसे, 11, 25 या 30 अंक या उससे अधिक।
गोटी बाहरी परिधि स्तंभों के चारों ओर काउंटर क्लॉकवाइज़ दिशा में चल सकती है। इससे पहले कि कोई खिलाड़ी अपनी किसी भी गोटी को ‘घर’ ला सके, उसे दूसरे खिलाड़ी की कम से कम एक गोटी को मारना होगा। इसे ‘तोड़’ कहा जाता है। केवल खिलाड़ी की अपनी गोटी ही उस खिलाड़ी के घर के खाने में प्रवेश कर सकती हैं। एक बार जब गोटी फूल की आकृति को पार कर लेती है, तो यह इंगित करता है कि वो गोटी अब सुरक्षित है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Chaupar
2. https://www.penn.museum/sites/expedition/the-indian-games-of-pachisi-chaupar-and-chausar/
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Pachisi
चित्र सन्दर्भ:
1. https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/d/df/Pachisi_fatehpur_m.jpg
2. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Senior_wives_chaupar_1790.jpg
3. https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/3/3b/Dhaayam_play.JPG/800px-Dhaayam_play.JPG