भारतीय स्वास्थ्य सेवा द्वारा एंटीबायोटिक प्रतिरोध से लड़ने की पहल

बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ, क्रोमिस्टा और शैवाल
18-09-2019 11:08 AM
भारतीय स्वास्थ्य सेवा द्वारा एंटीबायोटिक प्रतिरोध से लड़ने की पहल

एंटीबायोटिक (Antibiotic) प्रतिरोधक यकीनन वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जो संक्रमण की बढ़ती संख्या, उच्च रोगों की संख्या, मृत्यु दर, वित्तीय लागत और रोगों को ठीक करना काफी कठिन या लगभग असंभव बना रही है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध के उद्भव और प्रसार को सीमित करने की आवश्यकता को देखते हुए फेज थेरेपी (Phage Therapy) को हाल ही में भारत में शुरू किया गया है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध भारत में पहले से ही एक स्वास्थ्य आपातकाल स्थिति है। हर साल, अनुमानित 58,000 नवजात बच्चे सेप्सिस (Sepsis) के कारण मर जाते हैं क्योंकि एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) बैक्टीरिया (Bacteria) के संक्रमण का इलाज नहीं कर पाते हैं। वहीं फेज थेरेपी, बैक्टीरिया के संक्रमण का इलाज करने के लिए स्वाभाविक रूप से पैदा होने वाले वायरस (Virus) का उपयोग करती है जिसे ‘बैक्टीरियोफेज (Bacteriophages), या बैक्टीरिया खाने वाले’ कहा जाता है। फेज को आधिकारिक तौर पर 1917 में फ्रांसिसी वैज्ञानिक फ़ीलिक्स डी'हेरेल द्वारा खोजा गया था, लेकिन उनके एंटी-बैक्टीरियल के रूप में किए जाने वाले कार्य की पहचान 1896 में गंगा और यमुना नदियों के पानी में बहुत पहले ही हो गई थी।

फेज थेरेपी काफी सरल होती है। फेज प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जीवाणु परजीवी के रूप में होते हैं, जो स्वतंत्र रूप से प्रजनन करने में असमर्थ होते हैं (यानी, निर्जीव) और अंततः जीवित रहने के लिए एक मेज़बान जीवाणु पर निर्भर होते हैं। फेज को शरीर में छोड़ने पर वह बीमारी करने वाले बैक्टीरिया से जुड़ जाता है तथा उसके सहारे जीने लगता है। और इस प्रकार बैक्टीरिया को नष्ट किया जाता है।

मेरठ में घर-घर जा कर जांच करने पर 258 व्यक्तियों में तीसरे चरण के टी.बी. के लक्षण पाए गए। 7 जनवरी से 17 जनवरी तक चलाए गए अभियान में, डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों की 163 टीमों ने 4.74 लाख लोगों की जांच करने के लिए हज़ारों घरों का दौरा किया था। 2017 में किये गए दौरे में ट्यूबरक्लोसिस (Tuberculosis) से पीड़ित 357 रोगी और 2018-2019 के चरण में 392 रोगी पाए गए। केंद्र सरकार ने 2025 तक इस बीमारी को जड़ से खत्म करने का लक्ष्य रखते हुए सभी राज्यों को "सक्रिय खोज" शुरू करने का निर्देश दिया है।

भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग दुनिया भर में सबसे अधिक होता है जिस कारणवश हमें भी फेज थेरेपी का उपयोग करना ज़रूरी है। सामान्य जीवाणु रोगजनकों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के उच्च स्तर दिखाई देते हैं। हाल में एक अध्ययन के अनुसार, 38% एमआरएसए (MRSA) संक्रमण एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी हैं, जबकि 43% स्यूडोमोनस एरुगिनोसा (Pseudomonas Aeruginosa) संक्रमण एंटीबायोटिक दवाओं के कार्बापेनम (Carbapenem) वर्ग के लिए प्रतिरोधी हैं। फेज थेरेपी भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ज़रूरत है। पश्चिमी दुनिया ने इसे अपनाना शुरू कर दिया है, और भारत को भी अब इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2keUCx5
2.https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5547374/
3.https://cmr.asm.org/content/32/2/e00066-18
4.http://www.nirt.res.in/pdf/bulletin/2019/NB_V.2_(4).pdf
चित्र सन्दर्भ:
1.
https://unsplash.com/search/photos/bacteria