मनुष्यों के गुणसूत्रों में मौजूद जीन (Gene) अनुवांशिकता की जैविक इकाई हैं जो शरीर के कई लक्षणों को निर्धारित करते हैं। गुणसूत्रों में मौजूद इन जीनों का समूह जीनोम (Genome) कहलाता है जो एक साथ एकत्रित होकर हमारे शरीर का अनुवांशिक पदार्थ बनाता है जिसमें ढेर सारी सूचनाएं निहित होती हैं। जीनोम न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide) की 6 बिलियन से भी अधिक ईकाईयों से मिलकर बना होता है जो शरीर के 46 गुणसूत्रों में विभाजित होता है। विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए शरीर में प्रोटीन (Protein) और अन्य अणुओं का निर्माण इन विशिष्ट जीन क्रमों या डीएनए (DNA) क्रमों के द्वारा ही किया जाता है। अगर इन डीएनए क्रमों में अंतर आ जाए तो शरीर में अनावश्यक या हानिकारक प्रोटीन का निर्माण होता है जो हमारे शरीर की क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। डीएनए क्रम में अचानक आए इस परिवर्तन को उत्परिवर्तन कहा जाता है जो कुछ परिस्थितियों में लाभकारी होते हैं, किन्तु अधिकांश उत्परिवर्तन शरीर में अनुवांशिक रोगों की संभावनाओं को बढ़ा देते हैं जो फिर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित हो सकते हैं।
प्रायः उत्परिवर्तन, कोशिका विभाजन के समय होते हैं लेकिन कई परिस्थितियों में ये कुछ पर्यावरण कारकों जैसे पराबैंगनी विकिरण, रसायन, विषाणु आदि के कारण हो सकते हैं।पर्यावरण कारकों से होने वाले उत्परिवर्तन आनुवांशिक रोगों जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic fibrosis), सिकल सैल एनीमिया (Sickle cell anemia), वर्णांधता (Color blindnes) आदि को जन्म देते हैं। इस प्रकार के उत्परिवर्तन विभिन्न कैंसर (Cancer) का कारण भी बनते हैं।
यह बीमारियां पीढ़ी दर पीढ़ी संचरित हो सकती हैं। उत्परिवर्तन के कारण हो रहे अनुवांशिक रोगों से बचने के लिए आवश्यक है कि आप अपने परिवार के स्वास्थ्य इतिहास की पूरी जानकारी रखें और इसे अपने स्वास्थ्य चिकित्सक से भी साझा करें। आपका चिकित्सक फिर आपको इससे संबंधित कुछ ज़रूरी बातों जैसे रोगों की पहचान के लिए उचित स्वास्थ्य परीक्षण, स्वस्थ आहार सूची, नियमित व्यायाम, तंबाकू और शराब का सेवन न करना आदि के बारे में बताएगा ताकि इन रोगों के प्रभाव पर नियंत्रण पाया जा सके। इसके लिए आपके कुछ अनुवांशिक परीक्षण भी किए जाएंगे जो रोग की पहचान और उसे दूर करने के लिए प्रभावशाली होंगे। उत्परिवर्तन के उपचार इसके प्रकार के आधार पर किए जाते हैं।
वर्तमान में आनुवांशिक रोगों के उपचार के लिए क्रिस्पर (CRISPR) तकनीक का उपयोग किया जा रहा है जो आनुवांशिक रोगों के उपचार के लिए प्रभावी तकनीक है। इस तकनीक का प्रयोग सर्वप्रथम 2012 में किया गया था। इस तकनीक में कुछ नए जीनों को सम्पादित किया जाता है जो आनुवांशिक रोगों की संभावना को कम कर देता है। भविष्य में इस प्रकार की तकनीक कैंसर, रक्त विकारों, रंजक हीनता, एड्स (AIDS) आदि बीमारियों के उपचार के लिए बहुत कारगर सिद्ध हो सकती है।
संदर्भ:
1. https://genetics.thetech.org/about-genetics/mutations-and-disease
2. https://bit.ly/2EBmEw4
3. https://www.genome.gov/FAQ/Genetics-Disease-Prevention-and-Treatment
4. https://ghr.nlm.nih.gov/primer/consult/treatment
5. https://labiotech.eu/tops/crispr-technology-cure-disease/
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.