क्या हैं मछलियों की आबादी में आ रही गिरावट के प्रमुख कारण

मेरठ

 12-09-2019 10:30 AM
मछलियाँ व उभयचर

धरती के पारिस्थितिक तंत्र में जीव-जंतुओं की विविधताओं का संतुलन बहुत ही अधिक आवश्यक है क्योंकि सभी जीव अपने पोषण, विकास और अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं। पारिस्थितिक तंत्र में मछलियों की विविधता भी शामिल है जो जलीय तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मछली प्रजातियों की विविधता को प्रायः इक्थायोडाईवर्सिटी (Ichthyodiversity) के नाम से जाना जाता है।

भारतीय मछली की आबादी 11.72% प्रजातियों, 23.96% वंशों और 57% मछली परिवारों के साथ विश्व की 80% मछलियों का प्रतिनिधित्व करती है। मानव भी अपने कई उद्देश्यों की पूर्ति के लिये मछलियों पर निर्भर है। इनमें अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन तथा पॉली-अनसेचुरेटेड फैटी एसिड (Poly-unsaturated fatty acids) होते हैं जो मानव पोषण के उत्कृष्ट स्रोत हैं। मेरठ शहर भी मछलियों की विविध प्रजातियों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। जिनमें एंब्लीफ्रींगोडोन मोला (Amblypharyngodon mola), एम्फ़िप्नस कुचिया (Amphipnous cuchia), एनाबस टेस्टुडाइनस (Anabas testudineus), बैगरियस बगारियस (Bagarius bagarius), बारिलियस बेंडेलिसिस (Barilius bendelesis), बारिलियस बोला (Barilius bola), कैटला कैटला (Catla catla), चंदा बैकालिस (Chanda baculis), चन्ना गचुआ (Channa gachua) आदि प्रजातियां शामिल हैं। किंतु ये प्रजतियां वर्तमान कई प्रकार के जीवाणुओं, विषाणुओं, कवकों, प्रोटोजोआ आदि के प्रभाव से ग्रसित हैं।

वर्तमान में मनुष्य की मछलियों पर निर्भरता इतनी अधिक बढ़ गयी है कि मछलियों की विविधताओं को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है और इनकी संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। मेरठ तथा भारत की अन्य मछली आबादी में आ रही गिरावट के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
मछलीघरों का निर्माण : मछलीघरों के निर्माण के लिए मछलियों की विविध प्रजातियों को समुद्रों और नदियों से पकडकर मछलीघर जिसे एक्वेरियम (Aquarium) कहा जाता है, में रखा जाता है। इस गतिविधि को निरंतर बढ़ाया जा रहा है जो मछलियों की घटती संख्या का प्रमुख कारण है।
मछलियों का शिकार : मछली बाजारों में मछलियों की विविध किस्मों को उपलब्ध करवाने के लिए शिकारियों द्वारा इनका अत्यधिक दोहन किया जाता है जो इनकी विविधता में हुयी हानि का अन्य प्रमुख कारण है।
विदेशी प्रजातियों का स्थानांतरण : स्थानीय मत्स्य क्षमता में सुधार लाने और प्रजातियों की विविधता को व्यापक बनाने के लिए मछलियों को उनके मूल स्थान से उठाकर दूसरे स्थान में स्थानांतरित किया जाता है जिससे मूल क्षेत्र वाली मछलियों की प्रजातियों में कमी आ जाती है। इसके अतिरिक्त किसी स्थान में अवांछित जीवों को नियंत्रित करने के लिये भी विदेशी प्रजातियों का स्थानांतरण किसी जलीय तंत्र में कराया जाता है।
इन विदेशी मछलियों को एलियन (alien) प्रजाति के नाम से जाना जाता है। इनके प्रभाव से हालांकि लाभ भी प्राप्त हुए हैं किंतु कई मूल प्रजातियों की संख्या में कमी भी आंकी गयी है। दूसरे क्षेत्र में इनके प्रवेश से जलीय तंत्र में असंतुलन उत्पन्न होता है। भोजन और आवास के लिए संघर्ष होता है जिसमें कई मूल प्रजातियां मारी जाती हैं। प्रजातियों के बीच संकरण की सम्भावना भी बहुत कम हो जाती है जिससे नयी प्रजाति की उत्पत्ति की सम्भावना कम हो जाती है। पिछले कई दशकों के दौरान 300 से भी अधिक प्रजातियों को विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विदेशों से भारत लाया गया है।

परजीवी संक्रमण : मछलियों की संख्या में गिरावट का एक अन्य कारण परजीवी संक्रमण भी है जिससे मछलियां मृत होती जाती हैं।
जीवाण, विषाणु, कवक, प्रोटोजोआ रोग : कई बार समुद्र में पायी जाने वाली मछलियों को जीवाण, विषाणु, कवक, प्रोटोजोआ इत्यादि के कारण रोग हो जाते हैं जिससे मछलियां बीमार हो जाती हैं और इनके स्वास्थ्य को नुकसन पहुंचता है।
मछलियों की संख्या में आयी कमी का प्रभाव जहां जीव विविधता पर पड़ता है वहीं इसका खामियाजा मछुआरों को भी भोगना पड़ता है। मछलियों की आबादी में कमी से उनके व्यवसाय भारी हानि पहुंचती है। मछलियों की सुरक्षा और इनके संरक्षण के लिए सतत मछली अभ्यास एक प्रयास है जिसे बनाए रखना बहुत ही आवश्यक है। इसके तहत समुद्रों में पर्याप्त मछलियों को छोड़ा जाता है और उनके निवास स्थान को भी सुरक्षित रखने का प्रयास किया जाता है। मछली पकड़ने पर निर्भर रहने वाले लोगों की आजीविका को बनाए रखना भी इसका एक अन्य लक्ष्य है। इसके तहत मत्स्य पालन को भी प्रोत्साहित किया जा सकता है। मत्स्य पालन मछलियों के पोषण, उनके जीवन और मजबूत समुद्री अर्थव्यवस्था के प्रावधान के लिए आवश्यक हैं। इस अभ्यास से जलीय मछलियों की संख्या में निरंतर आ रही गिरावट को कम किया जा सकता है।

संदर्भ:
1. http://iosrjournals.org/iosr-javs/papers/vol6-issue4/D0642025.pdf?id=7269
2. https://www.msc.org/what-we-are-doing/our-approach/what-is-sustainable-fishing
3. http://wwf.panda.org/our_work/oceans/solutions/sustainable_fisheries/

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id